वन्य जीव एवं जैव विविधता

केरल में विदेशी आक्रामक पौधों को जड़मूल से खात्मे की तैयारी

केरल वन अनुसंधान संस्थान ने एक वृहद कार्य योजना तैयार की है

Anil Ashwani Sharma

केरल ने सेन्ना स्पेक्टाबिलिस जैसे विदेशी आक्रामक पौधे को जड़मूल से खत्म करने की तैयारी कर ली है। इसके लिए एक शोध परख प्रबंधन कार्य योजना विकसित की गई है। यह प्रबंधन कार्य योजना केरल वन अनुसंधान संस्थान ने विस्तृत शोध के बाद तैयार की है। राज्य में यह देखा जा रहा है पिछले कुछ वर्षों से विदेशी आक्रमक पौधों के कारण राज्य के वन्यजीव आवासों को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। ऐसी विपरीत परिस्थिति से मुकाबला करने के लिए संस्थान ने वृहद प्रबंधन कार्य योजना को अंतिम रूप दिया है।

हालांकि संस्थान ने यह भी कहा है कि इस कार्य योजना के क्रियान्वयन के पूर्व वृक्षों को खत्म करने का प्रयास तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि विस्तृत वनीकरण योजना और इसे लागू करने के लिए संसाधन की व्यवस्था न हो जाए।

संस्थान ने अपने इस शोध का परीक्षण राज्य के पेरियार टाइगर रिजर्व में सफलता पूर्वक किया। शोध में कहा गया है कि प्रबंधन कार्य योजना को विकसित करने में दो प्रमुख कारकों पर विचार किया गया। इनमें पहला है प्राकृतिक वनों में वृक्षों के प्रसार की तीव्र प्राकृतिक बढ़ोतरी और दूसरा है प्राकृतिक वनों की बहाली। द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस शोध के क्षेत्रीय परीक्षणों के परिणाम हाल ही में केरल राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में जारी किए गए। संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक टी.वी. संजीव ने कहा कि प्रबंधन कार्य योजना यह सुनिश्चित करती है कि विस्तृत वनीकरण कार्यक्रम से पहले पेड़ों को खत्म करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस कार्य योजना के तहत पर्याप्त संख्या में देशी वृक्षों के बड़े आकार के पौधे विकसित करना और ऐसे स्थलों की पहचान करना, जहां रोपण किया जाना है। साथ ही उन्होंने कहा कि एक बार संसाधन और सामग्री तैयार हो जाने के बाद आक्रामक प्रजातियों के बड़े पेड़ और छोटे पौधों को हटाया जाएगा। इस प्रकार की स्थिति को पेरियार टाइगर रिजर्व में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है।

बताया गया है कि बड़े पेड़ों को पूरी तरह से सूखने में कम से कम 18 महीने लगेंगे जबकि वायनाड वन्यजीव अभयारण्य और आसपास के जंगलों में सेन्ना स्पेक्टेबिलिस पौधों का आक्रमण सबसे गंभीर समस्या बना हुआ है। ध्यान रहे कि इस आक्रमक विदेशी पेड़ की उपस्थिति राज्य के कई अन्य वन क्षेत्रों में पाई जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रजनन आयु तक पहुंचने से पहले ही इस प्रकार के पेड़ों को नष्ट करने की जरूरत है।

ध्यान रहे कि यह देखा गया है कि आक्रामक प्रजातियों के ये पौधे नए वातावरण में पारिस्थितिकी और आर्थिक नुकसान का कारण बन रहे हैं। आक्रमण प्रजाति के पौधे देशी पौधों के विलुप्त होने, जैव विविधता में कमी, सीमित संसाधनों के लिए स्थानिक प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने और निवास स्थान में बदलाव करने में सक्षम होते हैं। भारत में अनेक आक्रामक प्रजातियां के पौधें हैं। जैसे- चारु मुसेल, लैंटाना झाड़ियां, इंडियन बुलफ्रॉग आदि शामिल हैं।