लंबी पूंछ वाला मैकाक दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे कि भारत, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, बर्मा, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस और थाईलैंड का मूल निवासी है फोटो साभार : सीएसई
वन्य जीव एवं जैव विविधता

विलुप्त हो रहे हैं मैकाक बंदर, अपेक्षा से 80 फीसदी कम पाई गई आबादी

भारत, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, बर्मा, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस और थाईलैंड में ये बंदर पाए जाते हैं

Dayanidhi

शोधकर्ताओं की एक टीम ने मुक्त-विचरण करने वाले जानवरों की आबादी का अनुमान लगाने के लिए एक नया तरीका विकसित किया है, जिससे पता चला कि प्राचीन बंदर, मैकाक की संख्या अपेक्षा से कहीं कम हो गई है।

शोधकर्ताओं ने कैमरों से लिए गए चित्रों का उपयोग करके स्वतंत्र रूप से घूमने वाले जानवरों की आबादी के आकार का अनुमान लगाया। हालांकि इसमें कुछ कमियां रह गई जैसे कि हर एक की पहचान न कर पाना, सर्वेक्षण किए गए क्षेत्रों की कम संख्या और डेटासेट के आकार का सीमित होना।

साइंस एडवांसेज में प्रकाशित शोध के मुताबिक शोधकर्ताओं ने एक मॉडल बनाया और इसका उपयोग लंबी पूंछ वाले मैकाक की आबादी की ऊपरी सीमा का अनुमान लगाने के लिए किया।

लंबी पूंछ वाला मैकाक, जिसका वैज्ञानिक नाम मैकाका फेसिकुलरिस है, ये दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे कि भारत, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, बर्मा, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस और थाईलैंड का मूल निवासी है और मनुष्यों के साथ रहने का इनका एक लंबा इतिहास है।

शोध के मुताबिक इनके अलग-अलग जगहों में रहने, जिसे वितरण मॉडल कहते हैं, इसकी संभावना का उपयोग करके पर्यावरण और जीपीएस डेटा के आधार पर आवास वरीयता मानचित्र बनाए और अनुमान लगाने के लिए कैमरों का उपयोग किया। इन सभी को लाइन ट्रांज़ेक्ट डिस्टेंस सैंपलिंग और प्रत्यक्ष रूप से देखें गए आंकड़ों के साथ जोड़ा गया।

अध्ययन में पाया गया कि लंबी पूंछ वाले मैकाक की आबादी पहले की अपेक्षा 80 फीसदी तक कम हो गई है। शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, हम इस प्रजाति के लिए संरक्षण उपायों को प्राथमिकता देने और सुधार करने की सलाह दे रहे हैं। शोधकर्ता ने शोध के हवाले से इनकी आबादी गतिशीलता में रुझानों की निगरानी और अध्ययन जारी रखने की भी बात कही ।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, इसके अलावा, हम सिटीजन साइंस के आंकड़ों का उपयोग के प्रति आशावादी हैं तथा आंकड़ों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए इसे वन्यजीव संरक्षण में शामिल करने को लेकर उत्साहित हैं।

शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई मॉडलिंग प्रणाली को कई प्रजातियों के अध्ययन के लिए उपयोग किया जा सकता है। वन्यजीव संरक्षण के लिए एक मापे जाने योग्य, जानवरों को हानि पहुंचाए बिना यह उपकरण काम कर सकता है।