वन्य जीव एवं जैव विविधता

प्रदूषण, कीटनाशक या जलवायु परिवर्तन में से कौन है भौंरे, मधुमखियों और तितलियों जैसे परागणकों के लिए सबसे बड़ा खतरा

रिसर्च से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन परागणकों के लिए प्रमुख खतरा बनकर उभरा है, जिसे नियंत्रण करना सबसे कठिन है

Lalit Maurya

क्या आपको फूलों के जीवंत रंगों से प्यार है या शहद का स्वाद, रसदार आम और सेब पसंद हैं तो इसके लिए आपको परागणकों का शुक्रगुजार होना चाहिए। भौरें, मधुमखियां, ततैया और तितलियां और यहां तक की कुछ पक्षी और चमगादड़ जैसे परागणक न केवल जैवविविधता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। साथ ही फसलों की पैदावार और खाद्य सुरक्षा के लिए भी बेहद मायने रखते हैं।

आज हम फूलों की जितनी भी विविधता देखते हैं, यह इन्हीं शुरूआती फूलों और उनके परागण की देन है। वैज्ञानिकों का दावा है कि 14 करोड़ वर्षों से भी ज्यादा समय पहले जब धरती पर पहले फूल खिले थे तो उनका परागण कीटों ने किया था।

वैज्ञानिकों के मुताबिक दुनिया में फूलों के पौधों की 87 फीसदी प्रजातियां और 87 प्रमुख खाद्य फसलें, पैदावार के लिए इन्हीं परागणकों पर निर्भर करती हैं, जो दुनिया में इंसानों के लिए उगाई जाने वाली फसलों की पैदावार के 35 फीसदी के बराबर है। लेकिन जिस तरह से इन परागणकों में गिरावट आ रही है, वो जैवविविधता को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ कृषि पैदावार और खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है।

इन जीवों में आती गिरावट की वजह से खाद्य फसलों, विशेषकर फलों और सब्जियों की उपलब्धता और विविधता में उल्लेखनीय कमी आ सकती है, जो फलने के लिए परागण पर निर्भर करती हैं। इन परागणकों के बिना, पौधे अपने अस्तित्व और प्रसार के लिए आवश्यक बीज और फल पैदा करने के लिए संघर्ष करेंगे।

यह गिरावट न केवल हमारे आहार को कम कर देगी बल्कि इन पौधों पर निर्भर पूरे पारिस्थितिक तंत्र को भी प्रभावित करेगी। इनके घटने से दूसरी प्रजातियां भी प्रभावित हो सकती हैं, जिससे पर्यावरण में मौजूद संतुलन बिगड़ सकता है।

डॉक्टर फैबियाना फ्रैगोसो के मुताबिक अगर हम परागणकों को खो देते हैं तो लोग ज्यादातर गेहूं, चावल, जई और मक्का जैसी फसलों पर निर्भर हो जाएंगें, क्योंकि उनको परागणकों की आवश्यकता नहीं पड़ती। देखा जाए तो खाद्य पदार्थों में घटती विविधता स्वास्थ्य पर भी असर डालेगी।

ऐसे में यह समझने से कि क्यों दुनिया में परागण करने वाले यह जीव कम हो रहे हैं, वो न केवल इन जीवों की सुरक्षा, बल्कि साथ ही उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली आवश्यक सेवाओं को बनाए रखने में भी मददगार साबित हो सकता है।

यही वजह है कि अपने नए अध्ययन में शोधकर्ता डॉक्टर जोहान ब्रुनेट और डॉक्टर फैबियाना फ्रैगोसो ने परागणकों को प्रभावित करने वाले कई तनावों पर प्रकाश डाला गया है, जिनमें से कई इंसानी गतिविधियों का प्रत्यक्ष परिणाम हैं। उन्होंने अपने इस अध्ययन में परागणकों की विविधता, उनकी गिरावट के मुख्य कारणों और उनके प्रभावों को कैसे सीमित किया जा सकता है उसकी रणनीतियों की पड़ताल की है।

जर्नल सीएबीआई रिव्यूज में प्रकाशित इस नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि जलवायु परिवर्तन परागणकों के लिए सबसे प्रमुख खतरा बनकर उभरा है, जिसे नियंत्रण करना सबसे कठिन है। ऐसे में इसे नियंत्रित करने के प्रयासों को वैश्विक स्तर पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

दुनिया से तेजी से गायब हो रहे हैं परागणक, कौन है अपराधी?

रिसर्च में इस बात पर भी चर्चा की गई है कि कैसे पाली जा रही मधुमखियां, जंगली मधुमखियों को नुकसान पहुंचा रही हैं। इसी तरह इन जीवों के आवासों को होता नुकसान, कीटनाशक, कीट, बीमारियां, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन इन परागणकों को नुकसान पहुंचा रहा है। इनकी वजह से दुनिया भर में इन नन्हें जीवों की आबादी चिंताजनक दर से घट रही है।

जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर आधारित अंतर सरकारी मंच यानी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (आईपीबीईएस) ने भी पुष्टि की है कि पक्षी और चमगादड़ जैसे 16 फीसदी कशेरुकी परागणकर्ता और मधुमक्खियों और तितलियां जैसे 40 फीसदी अकशेरुकी परागणकर्ताओं पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।

शोधकर्ताओं का मानना है कि जलवायु में आते बदलावों से जुड़े कारक जैसे तापमान और बारिश के पैटर्न में आता बदलाव परागणकों के आवासों और उनके लिए उपलब्ध संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। इसकी वजह से मौसम और खाद्य स्रोतों के बीच मौजूद नाजुक संतुलन बिगड़ सकता है जो फूलों के खिलने की अवधि, उसमे पराग की उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है। इसी पराग पर परागणकों और उनके लार्वा का अस्तित्व निर्भर करता है।

इसी तरह वनों का बढ़ता विनाश और शहरीकरण इनके आवास को नुकसान पहुंचा रहा है। नतीजन इन परागणकों के भोजन और प्रजनन के लिए अनुकूल आवास सीमित क्षेत्रों में सिकुड़ गए हैं। इसी तरह कंक्रीट और डामर प्राकृतिक आवासों की जगह ले रहा है, जिससे ऐसे क्षेत्र कम हो गए हैं जहां यह परागण करने वाले जीव पनप सकते हैं। आवासों का यह विखंडन परागणकों की आबादी को अलग-थलग कर देता है, जिससे उनके लिए साथी ढूंढना और आनुवंशिक विविधता बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।

इसी तरह कृषि में कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग ने भी परागणकों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। यह कीटनाशक परागणकों के लिए जानलेवा होते हैं, जिससे वे मर सकते हैं या उनकी आहार खोजने या प्रजनन करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

इतना ही नहीं खरपतवारनाशी जंगली फूलों और अन्य पौधों की उपलब्धता को कम कर देते हैं, जो इन नन्हे जीवों को आवश्यक खाद्य स्रोत प्रदान करते हैं। इन रसायनों की वजह से परागणकों के लिए प्रतिकूल वातावरण बनता है, जिससे उनका जीवित रहना या पनपना कठिन हो जाता है।

इसके साथ ही विदेशी प्रजातियां और बीमारियां भी परागणकों की आबादी को प्रभावित करती है। यह आक्रामक प्रजातियां संसाधनों के लिए देशी परागणकों से प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं, जबकि नई बीमारियां तेजी से फैल सकती हैं और आबादी को नष्ट कर सकती हैं। इन सभी कारकों का संयोजन परागणकों के लिए चुनौतीपूर्ण वातावरण तैयार कर रहा है, जो इनकी गिरावट में योगदान दे रहा है। नतीजन इन पर निर्भर पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा पैदा हो गया है।

कैसे बचेगा जीवन

शोधकर्ताओं के मुताबिक स्थिति गंभीर है, लेकिन परागणकर्ताओं के लिए अभी भी आशाएं बरकरार हैं। उनके मुताबिक कृषि के ऐसी तरीकों पर जोर देने की जरूरत है जो पर्यावरण के अनुकूल हों। ऐसी कृषि पद्धतियों की जरूरत है जिनमें हानिकारक रसायनों का कम से कम सहारा लिया जाए और जो दूसरे पौधों और जीवों को पनपने का मौका दें। अध्ययन में जंगली और पाली जा रही मधुमखियों दोनों के सावधानीपूर्वक प्रबंधन का भी सुझाव दिया है।

डॉक्टर फ्रैगोसो ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि, "पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों का उपयोग करने और कीटनाशकों में कटौती करने से परागणकों को बचाने में मदद मिलेगी।" साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पाली जा रही मधुमखियां जंगली मधुमक्खियों को नुकसान न पहुंचाएं।

उनके मुताबिक जलवायु परिवर्तन को संबोधित करना भी महत्वपूर्ण है। यह परागणकों के आवास और खाद्य स्रोतों को बदलकर उन्हें प्रभावित करता है। तापमान और बारिश में आता बदलाव परागणकों और पौधों के जीवन चक्र को बाधित कर सकता है, जिससे फूलों के खिलने और परागणकों के सक्रिय होने के समय में गड़बड़ी हो सकती है, नतीजन परागण कठिन हो जाता है।

अध्ययन के मुताबिक परागणकों में आती गिरावट एक वैश्विक संकट है, जिसके निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की दरकार है। हम सभी इन महत्वपूर्ण जीवों को बचाने में योगदान दे सकते हैं। आम आदमी भी ऐसे पौधों को लगाकर इनकी मदद कर सकता है जो परागणकर्ताओं को आकर्षित करते हैं। इसी तरह कृषि में पर्यावरण अनुकूल तरीकों को अपनाकर इन जीवों को बचाया जा सकता है। इसी तरह इनके आवासों की सुरक्षा और उनसे जुड़ी नीतियां एक ऐसा भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं जिनमें इंसान और परागणकर्ता दोनों पनप सकें।

शोधकर्ताओं के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के लिए उठाए कदम परागणकों की रक्षा के लिए बेहद मायने रखते हैं। इस बारे में डॉक्टर ब्रुनेट ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि जलवायु परिवर्तन परागणकों के लिए सबसे विकट समस्या है, जो उन्हें अलग-अलग तरीकों से प्रभावित कर रहा है।"

उनके मुताबिक इस खतरे को नियंत्रित करना सबसे कठिन है। लेकिन अगर हम अभी कुछ नहीं करते तो हमारे लिए पर्याप्त भोजन प्राप्त करना मुश्किल हो जाएगा। साथ ही इसकी वजह से वैश्विक स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी। ऐसे में जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के प्रयासों को वैश्विक स्तर पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।