वन्य जीव एवं जैव विविधता

पॉलिनेटर वीकः मधुमक्खियों और तितलियों का बचा रहना है बेहद जरूरी

Meenakshi Sushma

दुनिया भर में फसलों की 12 हजार किस्मों सहित एक लाख अस्सी हजार से अधिक पौधों की प्रजातियां प्रजनन के लिए परागणकों पर निर्भर हैं। मधुमक्खियों और तितलियों की तरह छोटे जीवों पर भी तेजी से खतरा बढ़ा है। पॉलिनेटर वीक ऐसे ही जीवों की तरफ ध्यान खींचने के लिए 22 से 28 जून तक राष्ट्रीय परागणक सप्ताह (नेशनल पॉलिनेटर वीक) के रूप में मनाया जाता है।

पॉलिनेटर की दो श्रेणियां हैं: अकशेरुकी (इनवर्टीब्रेट) और कशेरुक (वर्टीब्रेट)। अकशेरूकीय पॉलीनेटर में मधुमक्खियां, पतंगे, मक्खियां, ततैया (बर्र), भौरा और तितलियां शामिल हैं। बंदर, कृंतक (चूहा, गलहरी आदि कुतरने वाले जीव) और पक्षी भी परागण करते हैं और कशेरुक पॉलिनेटर में से हैं।

खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, दुनिया भर में पॉलिनेटर की डेढ़ लाख प्रजातियां हैं, जो सिर्फ फूलों पर मंडराती हैं, जिनमें 25 से 30 हजार प्रजातियां तो मधुमक्खियों की हैं। 

पॉलिनेटर वीक (22-28 जून) को गैर-लाभकारी पॉलिनेटर पार्टनरशिप और यूनाइटेड स्टेट्स सीनेट द्वारा आज से तेरह साल पहले 2007 में शुरू किया गया था।

संख्या में कमी

खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 40 फीसदी अकशेरूकीय पॉलिनेटर प्रजातियां - विशेष रूप से मधुमक्खियां और तितलियां विलुप्त हो रही हैं।

2017 में एक अध्ययन : पॉलिनेटर्स अननोन: पीपुल परसेप्शन ऑफ नेटिव बी इन एग्रेरियन डिस्ट्रिक्ट ऑफ बंगाल, इंडिया में कहा गया कि भारत में, जंगली मधुमक्खियों की एपिस प्रजाति (जीनस) की संख्या में पिछले 30 सालों में काफी गिरावट देखी गई है। इनमें एशियाई मधुमक्खी सेराना और छोटे आकार वाली मधुमक्खी फ्लोरिया भी शामिल है। 

खराब कचरा प्रबंधन के कारण हर दिन लगभग 168 मक्खियों की मृत्यु हो गई, दक्षिण भारत में मधुमक्खी आबादी में गिरावट देखी गई। 2014 के एक अध्ययन ‘रोल ऑफ डिस्पोजेबल पेपर कप’ को दक्षिण भारत में मधुमक्खियों की संख्या में कमी के कारण के रूप में देखा गया। अध्ययन में कहा गया है कि कुल मिलाकर हर महीने 35,211 मक्खियों की मौत हुई।

अमेरिका ने भी अपनी मधुमक्खी आबादी में गिरावट देखी: 2017 में एफएओ के अनुसार, 2012 में देश में 32 लाख 80 हजार मधुमक्खियों की कालोनी थी जो कि पांच सालों में 12 प्रतिशत की गिरावट के साथ 28 लाख 80 हजार ही रह गई।

इसी तरह  एफएओ के अनुसार, लगभग 16.5 प्रतिशत कशेरुकी परागणकों के विलुप्त होने का खतरा है।

एफएओ के आकलन के अनुसार तेजी से खत्म हो रहे परागणकों में चमगादड़ों की 45 प्रजातियां, गैर-उड़ने वाले स्तनधारियों की 36 प्रजातियां, 26 प्रजाति के हमिंगबर्ड, सात प्रजाति के सनबर्ड और 70 प्रजाति के पर्शियन बर्ड खत्म होने को हैं ।

परागणकों की प्रजाति में गिरावट के प्रमुख कारण

  • परागणकों की संख्या में गिरावट के कई कारण हैं। उनमें से अधिकांश मानव गतिविधियों में  बढ़ोत्तरी का परिणाम हैं।
  • भूमि-उपयोग परिवर्तन और विखंडन।
  • रासायनिक कीटनाशकों, फफूंदनाशकों और कीटनाशकों के उपयोग सहित कृषि विधियों में परिवर्तन।
  • फसलों और फसल चक्र में परिवर्तन जैसे जेनेटिकली मॉडीफाइड ऑर्गेनिज्म (जीएमओ)   और मोनोक्रॉपिंग (एक फसल की खेती) करना।
  • भारी धातुओं और नाइट्रोजन से उच्च पर्यावरण प्रदूषण।
  • विदेशी फसलों को उगाना।