वन्य जीव एवं जैव विविधता

पिछले तीन दशकों में 11 लाख से ज्यादा समुद्री कछुओं का किया गया अवैध शिकार

पिछले तीन दशकों में जिन 11 लाख कछुओं का अवैध शिकार किया गया है उनमें से 95 फीसदी केवल दो प्रजातियों हरे समुद्री कछुए और हॉक्सबिल समुद्री कछुओं की प्रजाति के थे

Lalit Maurya

1990 से 2020 के बीच पिछले तीन दशकों में 11 लाख से ज्यादा समुद्री कछुओं का अवैध शिकार किया गया था। यह जानकारी एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है। इतना ही नहीं इनमें से कुछ कछुओं को तो तस्करी के लिए पकड़ा गया था।

इस बारे में जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि पिछले एक दशक में हर साल 44000 से ज्यादा कछुओं का शोषण किया जा रहा है। पता चला है कि यह कछुए दुनिया में कछुओं की 58 प्रमुख प्रजातियों में से 44 से संबंध रखते हैं।

रिसर्च से यह भी पता चला है कि पिछले तीन दशकों में जिन 11 लाख कछुओं का अवैध शिकार किया गया है उनमें से 95 फीसदी कछुओं की केवल दो प्रजातियों हरे समुद्री कछुए (किलोनिया मिडास) और हॉक्सबिल समुद्री कछुओं (एरेत्मोचेलीज इम्ब्रिकाटा) की प्रजाति के थे। इनमें से करीब 56 फीसदी हरे समुद्री कछुए और 39 फीसदी हॉक्सबिल थे। गौरतलब है कि इन दोनों ही प्रजातियों को अमेरिका की लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए बनाए कानून के तहत सूचीबद्ध किया गया है।

देखा जाए तो इंसान पिछले कई दशकों से भोजन, दवाओं, कलाकृतियों और अपनी जिज्ञासा के लिए जीवों का शोषण करता रहा है। जो 21वीं सदी में संरक्षण के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। इस मामले में कछुएं भी अन्य जीवों से अलग नहीं हैं, जिनका हर साल बड़े पैमाने पर अवैध शिकार और शोषण किया जा रहा है।

विडम्बना देखिए कि दुनिया में 65 देशों या क्षेत्रों में इनके शिकार और उपयोग पर प्रतिबंध है और इसके लिए कानून बनाए गए हैं। इसके बावजूद आज भी इन जीवों का बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा है। रिसर्च के अनुसार समुद्री कछुओं की अवैध तस्करी के मामले में वियतनाम सबसे आम देश है, जबकि करीब-करीब सभी समुद्री कछुओं की तस्करी का गंतव्य चीन और जापान थे।

इसी तरह पिछले तीन दशकों में वियतनाम से चीन इन सभी कछुओं की तस्करी के लिए सबसे आम व्यापार मार्ग था। जानकारी मिली है कि दक्षिण पूर्व एशिया और मेडागास्कर समुद्री कछुओं के अवैध व्यापार के लिए प्रमुख हॉट स्पॉट के रूप में उभरे हैं। विशेष रूप से गंभीर रूप से लुप्तप्राय स्थिति में आ चुके हॉक्सबिल कछुओं के लिए, जो अपने सुंदर खोल के लिए अवैध वन्यजीव व्यापार में बेशकीमती समझे जाते हैं।

10 वर्षों में इनके शिकार और तस्करी के मामलों में दर्ज की गई 28 फीसदी की गिरावट

हालांकि साथ ही रिसर्च में यह भी सामने आया है कि पिछले 10 वर्षों 2000 से 2010 के बीच इन कछुओं के अवैध शिकार और तस्करी के मामलों में 28 फीसदी की गिरावट आई है। इनके शिकार और तस्करी के मामले में पिछले एक दशक में आई गिरावट के बारे में इस रिसर्च से जुड़ी शोधकर्ता कायला बर्गर का कहना है कि इसमें इनकी सुरक्षा के लिए बनाए कानूनों के साथ संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों में आई वृद्धि का बड़ा हाथ है।

 साथ ही इनके बारे में लोगों में बढ़ती जागरूकता और स्थानीय परम्पराओं में आता बदलाव भी गिरावट की वजह हो सकता है। यह भी पता चला है कि पिछले एक दशक में रिपोर्ट किए गए अवैध शिकार और तस्करी के ज्यादातर मामले समुद्री कछुओं की उन प्रजातियों में देखने को मिले हैं जिनकी आबादी ज्यादा, स्थिर और आनुवंशिक रूप से विविधता भरी है।

इस बारे में शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता जेसी सेनको का कहना है कि किसी भी अवैध गतिविधि का आकलन करना मुश्किल है, समुद्री कछुओं का व्यापार भी इसका अपवाद नहीं है। खासकर जब यह अपराध संगठित या किसी सिंडिकेट से जुड़ा होता है। उन्होंने बताया कि उनके इस अध्ययन में अंडे या कछुए के बने उत्पाद जैसे कछुओं के खोल से बने कंगन, झुमके आदि शामिल नहीं थे, क्योंकि इन उत्पादों को देखकर यह नहीं बताया जा सकता कि वो कछुओं की किस प्रजाति के हैं।

देखा जाए तो सिर्फ इनकी कालाबाजारी और अवैध शिकार ही इनके लिए खतरा नहीं है। जलवायु में आता बदलाव भी इन प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में इन सुन्दर जीवों के संरक्षण पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरुरत है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके लिए उन सरकारों की मदद करने की जरुरत है जो इनके संरक्षण के लिए संसाधनों की कमी से जूझ रही हैं। साथ ही इनके संरक्षण के लिए हमें ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो समुदायों और कछुओं दोनों के लिए फायदेमंद हों।