वन्य जीव एवं जैव विविधता

धरती का केवल 2.8 फीसदी हिस्सा ही रह गया है अनछुआ, पिछले अनुमान से 10 गुना है कम

जो क्षेत्र आज भी अनछुए हैं उनका केवल 11 फीसदी हिस्सा संरक्षित क्षेत्रों के अंदर आता है| इनमें काफी क्षेत्र ऐसे हैं जो आज भी उनके मूल निवासियों द्वारा संरक्षि

Lalit Maurya

धरती का केवल 2.8 फीसदी हिस्सा ही अनछुआ रह गया है जोकि इससे पहले लगाए गए अनुमान से करीब 10 गुना कम है| शोध के अनुसार अब धरती पर केवल 3 फीसदी से भी कम हिस्से पर जानवर अपनी मूल और प्राकृतिक अवस्था में रह रहे हैं| जो स्वस्थ हैं और फल-फूल रहे हैं| वहां उनके प्राकृतिक आवासों को छेड़ा नहीं गया है| जिसका मतलब है कि इन स्थानों पर जीवों की आबादी को इतना नुकसान नहीं हुआ है, जिससे वहां का पारिस्थतिकी तंत्र प्रभावित हो|

इंसानी गतिविधियों से अप्रभावित जंगल के यह टुकड़े मुख्य रूप से अमेज़न और कांगो के उष्णकटिबंधीय जंगलों, पूर्वी साइबेरियाई और उत्तरी कनाडा के जंगलों, टुंड्रा और सहारा रेगिस्तान के कुछ हिस्सों में बचे हैं। इससे जुड़ा शोध जर्नल फ्रंटियर्स इन फॉरेस्ट एंड ग्लोबल चेंज में प्रकाशित हुआ है। इस नए शोध के अनुसार ऊपर उपग्रहों से देखने पर लगता है कि सवाना और टुंड्रा में जंगल पहले की तरह ही बरकरार हैं, लेकिन जमीन पर वहां महत्वपूर्ण प्रजातियां गायब हैं|

इससे पहले, उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर किए विश्लेषण के अनुसार धरती का करीब 20 से 40 फीसदी हिस्सा, अभी भी इंसानों के हस्तक्षेप से बचा हुआ है| यह स्थान आज भी इंसानी शोर, प्रकाश, आबादी और निर्माण के जंगल से बचे हुए हैं| ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क 2020 में भी प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों को बनाए रखने के महत्त्व को एक महत्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में मान्यता दी है| यह स्पष्ट रूप से जैव विविधता के संरक्षण और पारिस्थितिकी सेवाओं को बनाए रखने में अनछुए जंगलों के महत्त्व को दर्शाता है|

अभी बाकी हैं उम्मीदें

इस शोध में दो तरह के मानचित्रों पहला जहां इंसानों ने प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुंचाया है और दूसरा जहां जानवर अपने प्राकृतिक आवासों से गायब हो गए हैं या फिर उनकी आबादी इतनी कम है जिसका वहां के स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है| इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता एंड्रयू प्लम्प्रे के अनुसार हम जानते हैं कि यह अनछुए आवास जैवविविधता और इंसानों के लिए कितने जरुरी हैं इसके बावजूद यह तेजी से खत्म हो रहे हैं| इस शोध से पता चला है कि जिन स्थानों को हम अनछुआ मानते हैं वहां प्रजातियां गायब हो रही हैं जिनके लिए या तो इंसानों द्वारा किया जा रहा शिकार या बीमारियों और आक्रामक प्रजातियां जिम्मेवार हैं|

शोध से पता चला है कि यह जो क्षेत्र आज भी अनछुए हैं उनका केवल 11 फीसदी हिस्सा संरक्षित क्षेत्रों के अंदर आता है| इनमें से काफी सारे क्षेत्र ऐसे हैं जो आज भी उनके मूल निवासियों द्वारा संरक्षित हैं जो उनको बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं|

शोधकर्ताओं का मानना है कि इसके बावजूद उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई हैं| जिन क्षेत्रों पर अभी भी इंसानी प्रभाव कम है वहां यदि चुनिंदा प्रजातियों को दोबारा बसाया जाता है तो धरती पर करीब 20 फीसदी हिस्से को फिर से उसके प्राकृतिक अनछुए स्वरुप में वापस लाया जा सकता है|