वन्य जीव एवं जैव विविधता

जिम कार्बेट में एक और बाघ की मौत, क्या हैं कारण

जिम कार्बेट सहित उत्तराखंड के दूसरे टाइगर रिजर्व में बाघों की मौतों को लेकर शिकारियों व वन विभाग अधिकारियों के बीच मिलीभगत के आरोप भी लगते रहे हैं।

DTE Staff

त्रिलोचन भट्‌ट 

शिकारियों और वन विभाग के अधिकारियों के बीच मिलीभगत होने के कई आरोपों के बीच 3 मई को उत्तराखंड के जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व के रामनगर डिवीजन में एक और बाघ की मौत हो गई। हालांकि कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने पोस्टमार्टम से पहले ही इस बाघों के आपसी संघर्ष में हुई मौत माना था। बाद में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से उन्होंने बताया कि बाघ के सिर में चोट थी और शरीर पर कई जगह नाखूनों के निशान पाये गये हैं, जिससे आपसी संघर्ष की बात पुष्ट होती है। वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट राजीव मेहता कहते हैं कि यदि कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक का आपसी भिड़ंत का यह दावा सही है तो इसका अर्थ यह भी निकलता है कि दूसरा बाघ भी गंभीर हालत में होगा और कुछ दिनों में उसकी भी मौत हो सकती है। इस थ्योरी के अनुसार दूसरा बाघ भी घटनास्थल के आसपास ही कहीं होना चाहिए, क्योंकि गंभीर जख्मी हालत में वह बहुत ज्यादा दूर तक जाने की स्थिति में नहीं होगा, लेकिन टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार का कहना है कि दूसरा बाघ अभी ट्रेस नहीं हो पाया है।

आपसी संघर्ष में पहले भी बाघों की मौत होती रही है। वन विभाग के आंकड़ों को माने तो बाघों सहित अन्य वन्य जीवों की मौत का सबसे बड़ा कारण आपसी संघर्ष ही दर्ज किया जाता रहा है। लेकिन, हाल के वर्षों में उत्तराखंड के दोनों टाइगर रिजर्व में शिकारियों द्वारा बाघ, गुलदार और हाथियों को मारे जाने की घटनाएं सामने आती रही हैं और खुद वन विभाग के अधिकारी साक्ष्य मिटाने के आरोपों में अदालती कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट दिनेश पांडेय कहते हैं कि लगातार होने वाली वन्य जीवों की मौतों को नेचुरल डेथ कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनका कहना है कि बाघों और गुलदारों की एक-एक मौत के मामले में गहन जांच की जानी चाहिए।

वन विभाग के रिकाॅर्ड में ऐसे कई मामले दर्ज हैं, जब किसी बाघ, गुुलदार अथवा हाथी की मौत का कारण पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर प्राकृतिक अथवा आपसी संघर्ष का नतीजा बताया गया, लेकिन बाद में कहानी कुछ और सामने आई। पिछले वर्ष राजाजी टाइगर रिजर्व में दो गुलदारों की मौत के मामले में ऐसा हो चुका है, इन मामलों में पहले प्राकृतिक मौत होने की ही बात कही गई है। फिलहाल दोनों को शिकार का मामला मानते हुए जांच की जा रही है। पिछले पांच वर्षों के दौरान दोनों टाइगर रिजर्व में कई अन्य वन्य जीवों की मौतों को भी संदिग्ध माना गया है और इनकी जांच के लिए विन विभाग ने एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन भी किया है।

कैमरा ट्रैप विधि से एकत्र की गई जानकारियों के अनुसार वर्ष 2017 में उत्तराखंड में बाघों की कुल संख्या 361 दर्ज की गई थी। इनमें 208 बाघ कार्बेट टाइगर रिजर्व में और 34 राजाजी टाइगर रिजर्व में थे। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद बाघों की मौत का आंकड़ा चौंकाने वाला है। 2001 से लेकर अब तक यहां के जंगलों में कुल 141 बाघों की मौत दर्ज की गई है। हालांकि सबसे ज्यादा 79 बाघों की मौत का कारण प्राकृतिक बताया गया है। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस दौरान बाघों के शिकार की घटनाएं मात्र 6 हुई हैं, लेकिन 19 बाघों की मौत का कोई कारण ही नहीं मिल पाया है। खास बात यह है कि पिछले कुछ सालों में अज्ञात कारणों से हुई बाघों की मौतों की संख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इस साल अभी तक 4 बाघों की मौत हो चुकी है। इनमें दो की मौत का कारण अज्ञात बताया गया है, जबकि एक की मौत को प्राकृतिक बताया गया है और 3 मई की घटना का कारण फिलहाल आपसी संघर्ष का नतीजा बताया जा रहा है। पिछले वर्ष अज्ञात कारणों से 2 बाघों की मौत हुई थी, जबकि 2017 में 5 बाघों की मौत के कारणों का पता नहीं चल पाया था। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार 2001 से लेकर अब तक आपसी संघर्ष में कुल 24 बाघों की मौत हुई, इनमें 8 बाघों की मौत एक ही साल 2011 में हुई।

राज्य में सड़क दुर्घटनाएं भी बाघों की मौत की बड़ी वजह बन रही हैं। राज्य गठन के बाद 15 बाघों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हो चुकी है। इसके अलावा 2 बाघों की मौत जंगल की आग से और एक की सांप के काटने से दर्ज की गई है।