वन्य जीव एवं जैव विविधता

70 फीसदी प्रजातियां संरक्षित क्षेत्रों में नहीं पाई गई: अध्ययन

मौजूदा संरक्षित क्षेत्रों की सुरक्षा को बढ़ाकर 1,191 जानवरों की प्रजातियों के जरूरी आवासों की रक्षा की जा सकती है जो विशेष रूप से विलुप्त होने के कगार पर हैं

Dayanidhi

जंगलों को काटने और कृषि जैसी मानवजनित गतिविधियों के कारण दुनिया के प्राकृतिक वातावरण में लगातार बदलाव आ रहा है। नतीजतन, प्रजातियों की एक बड़ी संख्या के विलुप्त होने की आशंका है। वर्तमान अनुमान के मुताबिक 13 से 41 फीसदी या 7400 से अधिक स्थलीय कशेरुकी प्रजातियां खतरे में हैं। लेकिन जैव वैज्ञानिकों ने एक नए अध्ययन में कहा है कि इस स्थिति से निपटा जा सकता है।

जैव वैज्ञानिकों का तर्क है कि जैव विविधता की सुरक्षा के लिए कानून बनाना या स्थानीय समुदायों द्वारा पहले से संरक्षित क्षेत्रों को दी गई सुरक्षा को मजबूत करना लगभग उतना ही जरूरी है, जितना नए संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण करना।

शोध टीम में डरहम विश्वविद्यालय, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (एनयूएस) और प्रिंसटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि अध्ययन में शामिल लगभग 5,000 प्रजातियों में से लगभग 70 फीसदी या तो संरक्षित क्षेत्रों से गायब हैं या संरक्षित क्षेत्रों में होते हुए भी उन्हें नजरअंदाज किया गया है। इस तरह भविष्य में होने वाले भूमि उपयोग में बदलाव से इनके विलुप्त होने से उन्हें कोई नहीं बचा पाएगा।

लेकिन, मौजूदा संरक्षित क्षेत्रों की सुरक्षा को बढ़ाकर और भूमि क्षेत्र के सिर्फ एक फीसदी में मौजूदा पार्क नेटवर्क को बढ़ाकर, 1,191 जानवरों की प्रजातियों के जरूरी आवासों की रक्षा की जा सकती है जो विशेष रूप से विलुप्त होने के के कगार पर हैं।

वन्यजीव संरक्षण के लिए सही बदलाव या राजनीतिक समर्थन की कमी होने पर संरक्षित क्षेत्र हानिकारक मानवजनित गतिविधियों के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं।

पार्क इनमें रहने वाली प्रजातियों की रक्षा करने में कम प्रभावी हो जाते हैं जब वे पार्क के आकार को घटाने तथा नजरअंदाज की गई घटनाओं का अनुभव करते हैं। यह तब होता है जब सरकार किसी पार्क को नियंत्रित करने वाले कानूनी सुरक्षा को वापस लेने का निर्णय लेती है, जिससे सुरक्षा की सीमा कम हो जाती है।

इन बदलावों के परिणामस्वरूप बुनियादी ढांचे के विस्तार, खनन या अन्य गतिविधियों के लिए वन मंजूरी मिल सकती है और आवासों की नुकसान या गिरावट हो सकती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि 2021 तक, 278 मिलियन हेक्टेयर से अधिक पार्क आकार को घटाने तथा नजरअंदाज किए जाते हैं।

उदाहरण के लिए, मेजोफ्रिश डमेरी गंभीर रूप से लुप्तप्राय मेंढक है जो केवल कंबोडिया में पाया जाता है और दुनिया में कहीं और नहीं। भले ही इसके निवास स्थान की रक्षा की जाती है, फिर भी यह क्षेत्र राष्ट्रीय उद्यान की सीमाओं के भीतर और आस-पास के परिवेश में निवास स्थान के नुकसान का अनुभव करता है।

इसके अतिरिक्त, संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क का विस्तार करने से उन प्रजातियों को लाभ मिल सकता है जिनके आवासों में वर्तमान में पर्याप्त सुरक्षा का अभाव है। उदाहरण के लिए, अध्ययन में पाया गया कि इंडोनेशिया के भीतर अतिरिक्त 330 वर्ग किलोमीटर प्राकृतिक परिदृश्य की रक्षा करने से 53 प्रजातियों के उपयुक्त आवासों की रक्षा होगी, जिनमें वर्तमान में संरक्षित क्षेत्र कवरेज की कमी है और निवास का सीमित क्षेत्र है।

उदाहरण के लिए, सांगी हे गोल्डन बुलबुल एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय सोंगबर्ड प्रजाति है जो केवल इंडोनेशिया के सांगीहे द्वीप पर पाई जाती है और दुनिया में कहीं और नहीं पाई जाती है। अनुमानों ने प्रजातियों की पूरी आबादी को एक जगह पर शेष 50 से  230 के बीच रखा है, जो संरक्षित नहीं है। यह प्रजाति वृक्षारोपण न होने के कारण गायब होने की कगार पर है। यह सुझाव देती है कि यह एक संवेदनशील प्रजाति है जो केवल अच्छे वनों में पनप सकती है और संवर्धित संरक्षण से इसे फायदा पहुंचेगा।

शोध के निष्कर्षों पर विचार करते हुए, डरहम विश्वविद्यालय की डॉ. रेबेका सीनियर ने कहा, प्रजातियों की रक्षा के लिए लड़ने वाले लोगों के संरक्षण में कई अद्भुत उदाहरण हैं, लेकिन हमेशा एक खतरा होता है कि जब आप अपनी नजर गेंद से हटा लेते हैं, तो दबाव बनता है और कड़ी मेहनत से मिली सुरक्षा गायब हो जाती है।

केवल कागज पर पार्कों का नाम उकेर देना काफी नहीं है, उन्हें सही प्रबंधन करने के साथ इसका सही जगह पर होना भी अहम है, उन्हें टिके रहने की आवश्यकता है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. ज़ेंग यिवेन ने कहा, यह अध्ययन बड़ी जगहों का भूगोल स्थापित करता है, जहां नए पार्क बनाए जा सकते हैं और जहां वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा पार्कों को पुनर्स्थापित और सुदृढ़ करना है।

संरक्षण पर कई वैश्विक चर्चाएं नए संरक्षित क्षेत्रों को बनाने की आवश्यकता के आसपास केंद्रित हैं। इनमें दिसंबर 2022 में कॉप15 संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन में चर्चा शामिल है, जहां धरती की 30 फीसदी भूमि और समुद्रों की रक्षा करने का लक्ष्य अपनाया गया था। लेकिन हमारा अध्ययन यह सुनिश्चित करने के महत्व को भी दर्शाता है कि संरक्षित क्षेत्र हानिकारक मानवीय गतिविधियों को दूर रखने में प्रभावी बने रहें।

नए संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण करके धरती की जैव विविधता के संरक्षण की आवश्यकता की बढ़ती मान्यता के बीच नए अध्ययन के निष्कर्ष सामने आए हैं। दिसंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन कॉप15 में, उदाहरण के लिए, देश संरक्षित क्षेत्रों के रूप में धरती और समुद्र के 30 फीसदी को अलग करने के लक्ष्य पर सहमत हुए थे।

अध्ययनकर्ता ने बताया कि, यह नवीनतम शोध वन्यजीव संरक्षण के एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डालता है, यह सुनिश्चित करना कि पहले से ही संरक्षित क्षेत्र, या पार्क, जैव विविधता के लिए एक सुरक्षित स्थान बने रहें। यह अध्ययन साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।