राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 11 मार्च को उत्तराखंड सरकार की महत्वकांक्षी कंडी रोड परियोजना के कार्बेट टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से ले जाने पर रोक लगा दी। एनजीटी ने कहा कि वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार जिस तरह सड़क का खाका तैयार किया गया था, इसका निर्माण उसी तरह होगा। कार्बेट टाइगर रिजर्व के कोर एरिया से इस सड़क को ले जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
उत्तराखंड के दो मंडल गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ने के लिए कंडी रोड की मांग कई दशक पुरानी है। चूंकि इस मार्ग के बीच में कार्बेट टाइगर रिजर्व पड़ता है, जहां बाघों का बसेरा है, इसलिए इस सड़क को बनाने में बाधा आ रही है।
वर्ष 2001 में कंडी रोड का मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा था। न्यायालय के आदेश के बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने संयुक्त तौर पर इस सड़क का अध्ययन किया और सड़क के लिए जो अलाइनमेंट तैयार किया गया, वो कार्बेट के बाहर और उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने इसी अलाइनमेंट के आधार पर सड़क निर्माण की मंजूरी दी।
राज्य बनने के बाद से कंडी रोड निर्माण को लेकर हर सरकार पर भारी जन दबाव रहा है। समय-समय पर इसके लिए लोगों ने प्रदर्शन भी किए हैं। वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गढ़वाल-कुमाऊं को जोड़ने के लिए कंडी रोड खोलने का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि अगर ये सड़क खुल जाएगी तो कुमाऊं के लिए उत्तर प्रदेश होकर नहीं जाना पड़ेगा। करीब 2,000 करोड़ की इस परियोजना के लिए पिछले वर्ष कुछ धनराशि भी स्वीकृत की गई।
इसके बाद, दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता गौरव बंसल ने इस मुद्दे पर एनजीटी में याचिका दायर की। गौरव बंसल का कहना है कि उत्तराखंड सरकार ने अपने हिसाब से सड़क का निर्माण करने की कोशिश की। सरकार कार्बेट टाइगर रिजर्व के कोर एरिया से सड़क ले जाना चाहती थी। इसकी फिजिबिलिटी के लिए अध्ययन भी शुरू कर दिया गया था। उन्होंने बताया कि सड़क को लेकर वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट से सलाह ली गई। उन्हीं के मुताबिक रोड मैप तैयार किया जा रहा था। कहां से फ्लाईओवर गुजरेंगे, कहां एलिवेटेड रोड बनेगी, इसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी। गौरव बंसल की याचिका पर एनजीटी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ही सड़क बनाने का आदेश दिया।
गौरव बंसल ने तर्क दिया कि ये परियोजना कार्बेट टाइगर रिजर्व के कोर ब्रीडिंग एरिया से होकर गुजरती है। इसका प्रभाव बाघों के साथ जैव विविधता पर भी पड़ता। इसके अलावा ये वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट का भी उल्लंघन है।
क्या है कंडी मार्ग परियोजना
गढ़वाल के कोटद्वार को कुमाऊं के नैनीताल से जोड़ने वाले कंडी रोड पिछले 200 साल से अस्तित्व में है। लेकिन सड़क का करीब 18 किलोमीटर तक का झिरना-कालागढ़ मार्ग कार्बेट टाइगर रिजर्व से होकर जाता है। कच्ची सड़क की वजह से मानसून के समय जिस पर आवाजाही आसान नहीं होती। 1996 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने इस सड़क को पक्की सड़क में बदलन का निर्णय लिया, ताकि कार्बेट पार्क की सुरक्षा और प्रबंधन में सहूलियत हो। 1999 में वन सलाहकार समिति और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सड़क बनाने की अनुमति दे दी।
लेकिन जब उत्तराखंड सरकार ने 18 किलोमीटर के मार्ग को ऑल वेदर रोड में बदलने का प्रस्ताव रखा, तो वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी और कार्बेट फाउंडेशन ने इसका विरोध किया। फिर ये मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा। न्यायालय ने सड़क निर्माण पर रोक लगा दी। साथ ही इसके पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करने को भी कहा। इसके बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार की संयुक्त समिति ने सड़क को कार्बेट के बाहर से ले जाने का खाका तैयार किया।
कंडी मार्ग के फायदे
इस सड़क के बनने से कोटद्वार से रामनगर सीधी आवाजाही हो सकेगी। कोटद्वार से हरिद्वार-देहरादून के लिए 40 किलोमीटर की दूरी कम होगी। साथ ही गढ़वाल से कुमाऊं की करीब 82 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी। अभी कोटद्वार से रामनगर जाने के लिए उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद क्षेत्र से होकर जाना पड़ता है और करीब 172 किमी. दूरी तय करनी होती है। आम लोगों के साथ-साथ व्यापारियों को भी मुश्किल होती है। व्यापारियों को अपना सामान ले जाने के लिए सीमा शुल्क देना पड़ता है।
पुराने अलाइनमेंट के आधार पर क्यों नहीं बनाते मार्ग
कंडी मार्ग परियोजना त्रिवेंद्र सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई थी। सरकार अपनी योजनाओं को पंख देने के लिए पर्यावरण नियमों को ताक पर रख रही है। सवाल है कि वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने कंडी मार्ग के लिए जिस नक्शे को अनुमति दे दी थी, उसके आधार पर सड़क निर्माण क्यों नहीं हो रहा।
कंडी रोड बनाओ-उत्तराखंड बचाओ संघर्ष समिति के साथ जुड़े पूर्व विधायक शैलेंद्र सिंह रावत कंडी मार्ग के लिए पदयात्रा निकाल चुके हैं। उनका कहना है कि वर्ष 2005 के रोड अलाइनमेंट के आधार पर कंडी मार्ग के निर्माण से राज्य को बहुत फायदा नहीं होने वाला क्योंकि तब भी सड़क को उत्तर प्रदेश की सीमा से ही गुजरना होगा। ऐसे में सीमा पार करना और सीमा शुल्क देना ही पड़ेगा। उनका कहना है कि कार्बेट टाइगर रिजर्व से होकर गुजरने पर ही कंडी मार्ग का फायदा राज्य के लोगों को मिलेगा।
जबकि एनजीटी में ये मामला उठाने वाले अधिवक्ता गौरव बंसल कहते हैं कि जिस जगह 200 से अधिक बाघों की मौजूदगी हो, वहां वाइल्ड लाइफ की जरूरतें दरकिनार कर सड़क मार्ग नहीं बनाया जाना चाहिए।