वन्य जीव एवं जैव विविधता

देश में 7,506 वर्ग किलोमीटर वन भूमि पर हुआ अतिक्रमण, एनजीटी में मामले पर सुनवाई

सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि दिल्ली से करीब पांच गुणा अधिक वन भूमि पर अधिक्रमण हुआ है। दक्कन हेराल्ड में छपी इस खबर के आधार पर एनजीटी में सुनवाई हुई है

Susan Chacko, Lalit Maurya

भारत में वन भूमि पर बड़े पैमाने पर हो रहे अतिक्रमण का मुद्दा नौ फरवरी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में उठाया गया है। गौरतलब है कि पांच फरवरी 2024 को दक्कन हेराल्ड में प्रकाशित एक खबर के आधार पर यह एनजीटी के समक्ष यह मामला उठाया गया है।

इस रिपोर्ट में देश भर में वन भूमि पर बड़े पैमाने पर हुए अतिक्रमण पर प्रकाश डाला गया है। खबर के मुताबिक सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि देश में दिल्ली से करीब पांच गुणा अधिक वन भूमि पर अधिक्रमण किया गया है।

रिपोर्ट  में जानकारी दी गई है कि देश में कुल 7,75,288 वर्ग किलोमीटर वन भूमि में से  7,506.33 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर अतिक्रमण हुआ है। हालांकि अधिकारियों ने इस मामले पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। इस अतिक्रमित वन क्षेत्र का करीब 56 फीसदी हिस्सा असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर में है।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) के ओर से पेश वकील ने अदालत को सूचित किया है कि चूंकि इस मामले में कई राज्य सरकारें शामिल हैं, इसलिए मंत्रालय ने उन सरकारों से उचित कार्रवाई करने को कहा है। साथ ही उन्होंने पर्यावरण मंत्रालय द्वारा की गई कार्रवाइयों का विवरण देते हुए प्रतिक्रिया देने के लिए अदालत से कुछ समय मांगा है।

चूंकि यह मुद्दा देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़ा है, इसलिए अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पर्यावरण और वन के अतिरिक्त मुख्य सचिव या प्रधान सचिवों को प्रतिवादी के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई 19 अप्रैल 2024 को होगी।

सुनिश्चित करें कि औद्योगिक अपशिष्टों को मुजफ्फरनगर के बरसाती नालों में न बहाया जाए: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को यह जांचने का निर्देश दिया है कि क्या मेसर्स इंडियन पोटाश लिमिटेड सिंचाई के लिए उपचारित औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट जल का उपयोग कर रहा है।

कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि सभी तरह का उपचारित अपशिष्ट, चाहे वह उद्योगों से निकल रहा हो या घरों से, कंपनी द्वारा सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है और इसे बरसाती पानी की निकासी के लिए बनाई नालियों में नहीं जाने दिया जाता।

एनजीटी ने यूपीपीसीबी को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि मुजफ्फरनगर में उद्योगों से निकलने वाले दूषित जल को बरसाती नालों में न छोड़ा जाए। साथ ही उन्हें नदी तक पहुंचने वाले पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने का भी निर्देश दिया गया है। कोर्ट का यह भी कहना है कि इन नियमों का उल्लंघन करने वाले किसी भी उद्योग के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

ट्रिब्यूनल का यह भी कहना है कि कोयले से उत्पन्न फ्लाई ऐश में हानिकारक भारी धातुएं होती हैं और ऐसे में इसका उपयोग किसी भी कृषि क्षेत्र को भरने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय, इसका उपयोग सीमेंट या ईंट बनाने वाले उद्योगों द्वारा किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से छह महीनों के भीतर ऐसे सभी उद्योगों से निकलने वाली फ्लाई ऐश के उचित निपटान के लिए योजना को अंतिम रूप देकर एक रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करने को कहा है, जिनसे वायु प्रदूषण हो रहा है।