वन्य जीव एवं जैव विविधता

नागालैंड में मिली रंग बदलने वाली मछली की नई प्रजाति बादिस लिमाकुमी

इस मछली की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह प्रजाति प्रजनन या तनाव के समय गिरगिट की तरह अपना रंग बदल सकती है

Lalit Maurya

जीव विज्ञानियों ने नागालैंड के मोकोकचुंग जिले में मछलियों की एक विचित्र प्रजाति की खोज की है, जो गिरगिट की तरह अपना रंग बदल सकती है। वैज्ञानिकों ने मछली की इस नई प्रजाति को ‘बादिस लिमाकुमी’ नाम दिया है। यह मछली पूर्वोत्तर भारत में बहने वाली ब्रह्मपुत्र की सहायक मिलक नदी में पाई गई है।

इस मछली को सबसे पहले नागालैंड के फजल अली कॉलेज के प्राणी विज्ञानी लिमाकुम ने देखा था, उन्हीं के नाम पर इस प्रजाति को बादिस लिमाकुमी नाम मिला है। लिमाकुम ने इस प्रजाति की कुछ मछलियों को एक फिश टैंक में रख उसकी जांच की है, जहां उन्होंने पाया कि यह मछलियां अपना रंग बदलने में सक्षम हैं। यह व्यवहार इस प्रजाति की दूसरी मछलियों से अलग है।   

अपने एक सहयोगी प्रवीणराज जयसिम्हन के साथ इस मछली की सभी विशेषताओं की बारीकी से जांच की है, जिसमें पता चला है कि यह मछली बादिस समूह की अन्य मछलियों से अलग है। जर्नल जूटाक्सा में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि यह मछली बादिस परिवार का हिस्सा है, लेकिन यह अपनी विशिष्ट विशेषताओं के कारण अन्य बादिस प्रजातियों से अलग है।

गौरतलब है कि बादिस या बादिडे, मीठे पानी में पाई जाने वाली छोटी मछलियों का एक समूह है। आमतौर पर इस परिवार की मछलियां धीमे या जल प्रवाह वाली नदियों में पाई जाती हैं। अब तक भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड और म्यांमार जैसे देशों में छोटी खाइयों और शांत जल में इस परिवार से सम्बन्ध रखने वाली मछलियां पाई गई हैं।

कैसे परिवार की दूसरी प्रजातियों से अलग है ‘बादिस लिमाकुमी’

इस मछली के शरीर पर दस ऊर्ध्वाधर धारियां होती हैं। साथ ही इसके गलफड़ों को ढकने वाले हड्डी के एक हिस्से पर बड़ा अलग सा पैच या निशान होता है। यह निशान अन्य मछलियों में मौजूद नहीं होता है। इस मछली की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह प्रजाति प्रजनन या तनाव के समय गिरगिट की तरह अपना रंग बदल सकती है। जो खतरे के समय इसे परिवेश में घुलने मिलने में मदद करता है।

इस बारे में साझा की गई जानकारी से पता चला है कि बादिस लिमाकुमी नामक इस मछली के किनारों और पंखों पर कोई धब्बे नहीं होते। वहीं क्षेत्र की दूसरी मछलियों की तुलना में, इसके किनारे पर कहीं ज्यादा शल्क होते हैं। वहीं मादा मछलियां का पेट बड़ा होता है, लेकिन वे तुलनात्मक रूप से आकार में नर मछलियों से छोटी होती हैं।

रिसर्च से पता चला है कि भारत में इससे पहले बादिस परिवार से सम्बन्ध रखने वाली मछलियों की 14 अन्य प्रजातियों की खोज हो चुकी है। इस तरह इस नई खोज ने इन प्रजातियों की संख्या में इजाफा कर दिया है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के सेंट्रल आइलैंड एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईसीएआर-सीआईएआरआई) और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रवीणराज जयसिम्हन का इस प्रजाति के बारे में कहना है कि खोज इस बात को उजागर करती है कि नागालैंड की नदियों में जांच से इस तरह की और नई प्रजातियों का पता चल सकता है।