वन्य जीव एवं जैव विविधता

“द चंपा मैन”: केबीसी विजेता सुशील कुमार की नई पहचान

केबीसी में 5 करोड़ जीतने वाले सुशील कुमार अब तक 80 हजार चंपा के पौधे लगा चुके हैं

DTE Staff

शशि शेखर 

हर सुबह शहर के किसी मोहल्ले या गांव में कोई परिवार इनका इंतजार कर रहा होता है। सुशील कुमार हर दिन अपनी सफेद स्कूटी पर दो बड़े थैले लटका कर घर से निकल जाते हैं। एक में चंपा-पीपल-बरगद के पौधे और दूसरे थैले में लकड़ी के बने गोरैया के घोंसले। साथ में, कील- हथौड़ी। यह सिलसिला पिछले 2 साल से बिना किसी रूकावट के जारी है। अब तक वह 80 हजार चंपा के पौधे, तकरीबन 400 पीपल-बरगद के पौधे और अब करीब 500 गोरैया के घोंसले वितरित कर चुके हैं।

सुशील कुमार को अब तक कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) में 5 करोड़ रुपए जीत कर इतिहास रच चुके हैं। लेकिन मोतीहारी, बिहार के सुशील कुमार का अब यह नया काम है। इस काम ने उन्हें एक नई पहचान दी है और एक नया नाम दिया है, “द चंपा मैन”।  

डाउन टू अर्थ से बात करते हुए सुशील कुमार बताते हैं, “बचपन से सुनता आ रहा था कि हमारे चंपारण का नाम चंपा के अरण्य (जंगल) पर पडा, लेकिन 2 साल पहले तक बमुश्किल कहीं चंपा का पेड़ दिखता था और इसी बात ने मुझे चंपा का पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया।”

उनकी प्रेरणा और लगन आज रंगा दिखा रही है। चंपारण के सिटी टाऊन मोतीहारी हो या कोई कस्बाई इलाका या गांव, वहां के हर तीसरे-चौथे घर में आज चंपा का पेड़ दिख जाता है।

इस मुहिम की शुरुआत के बारे में पूछने पर सुशील कुमार कहते है, “सामुदायिक सहयोग और भागीदारी से ये मुहिम काफी आसानी से शुरु हो गई और आज भी बिना किसी समस्या के जारी है। केबीसी विनर होने के नाते मुझे अपना मैसेज लोगों तक पहुंचाने में भी आसानी हुई।” इस मुहिम की सबसे खास बात ये है कि वे बिना एक पैसा लिए लोगों के बीच न सिर्फ पौधे वितरित करते है, बल्कि खुद उनके घर जा कर पौधारोपण करते है, उसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते है, ताकि लोग इससे प्रेरणा ले कर पर्यावरण रक्षा के प्रति गंभीर हो सके।

सुखद बात ये है कि इलाके के लोग अब उनके इस काम को मान्यता भी दे रहे हैं और स्वीकार कर रहे है कि इंसानी गलती ने पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुंचाई है, जिसका नतीजा भी वे भुगत रहे हैं। सुशील कुमार कहते हैं, “चंपारण के कई गांवों में लोगों ने उन्हें बताया कि पेड़ की अधिक कटाई से इलाके का भूजल-स्तर काफी नीचे चला गया है। लोग अपनी गलती स्वीकार भी रहे हैं और चंपा से चंपारण मुहिम के बहाने ही सही, अब पर्यावरण सुरक्षा के महत्व को लेकर जागरूक हो रहे है।”

लेकिन क्या सरकार और सरकारी अमला भी जागरूक हो रहा है। ये एक ऐसा सवाल है, जिस पर सुशील कुमार इतना भर कहते है, “बिहार में चल रहे सरकारी जल-जीवन-हरियाली अभियान को अगर सफल बनाना है तो इसमें जनभागीदारी को प्राथमिकता देनी होगी।”

जब इस संवाददाता ने मोतीहारी शहर के प्रशासनिक हृदयस्थली गांधी मैदान का मुआयना किया तो पाया कि जिस गांधी मैदान के चारों तरफ दो साल पहले करीब 300 से 400 चंपा के पेड़ लगाए गए थे, वहां मुश्किल से कुछेक पेड़ जीवित बचे हुए हैं। गौरतलब है कि गांधी मैदान में चंपा पौधारोपण अभियान में स्थानीय प्रशासन की भी सहभागिता थी और इस इलाके में जिले के आला अधिकारियों का निवास स्थल है। इससे पर्यावरण रक्षा के प्रति प्रशासनिक रूख का अन्दाजा लगाया जा सकता है।

बहरहाल, सुशील कुमार के चंपा से चंपारण अभियान का सामाजिक स्तर पर ये एक अच्छा असर हुआ है कि लोग अब सामाजिक या पारिवारिक समारोहों में उपहार के तौर पर चंपा के पौधों का आदान-प्रदान करने लगे हैं।

गोरैया रक्षा के लिए मांसाहार छोड़ दिया

पटना के एक पत्रकार संजय कुमार से प्रेरित हो कर जब सुशील कुमार गोरैया सुरक्षा की मुहिम पर निकले तो लोगों ने ये ताना दिया कि पहले खुद तो मुर्गा-चिड़िया खाना छोड़ो। सुशील कुमार ने उसी वक्त मांसाहार छोडने का फैसला किया और पिछले कुछ महीनों से लगातार घर-घर घूम कर लोगों के बीच गोरैया के लिए रेडीमेड (लकड़ी का बना) घोंसला बांट रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि इस 20 मार्च को जब दुनिया अंतरराष्ट्रीय गोरैया दिवस मना रही होगी, तब लुप्तप्राय गोरैया के कलरव से मोतीहारी के कई घर गुलजार हो रहे होंगे।