अरुणाचल प्रदेश में 4992 मीटर से ऊपर की ऊंचाई पर पहली बार कैमरे में कैद हुई रहस्यमयी पल्लास बिल्ली फोटो साभार: डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया
वन्य जीव एवं जैव विविधता

अरुणाचल प्रदेश की चोटियों में पहली बार कैमरे में कैद हुई रहस्यमयी 'पल्लास बिल्ली'

पल्लास बिल्ली दुनिया के सबसे रहस्यमयी जंगली बिल्लियों में से एक है। यह बर्फीले और ठंडे इलाकों में पाई जाती है, लेकिन अब तक इसे बहुत कम जगहों पर देखा गया है।

Dayanidhi

  • पहली बार पल्लास बिल्ली कैमरे में कैद – अरुणाचल प्रदेश के तवांग और पश्चिम कामेंग में राज्य की पहली तस्वीरें मिली।

  • छह जंगली बिल्लियों की मौजूदगी – हिम तेंदुआ, साधारण तेंदुआ, क्लाउडेड लेपर्ड, लेपर्ड कैट, मार्बल्ड कैट और पल्लास बिल्ली एक ही परिदृश्य में दर्ज।

  • रिकॉर्ड ऊंचाई पर प्रजातियां – साधारण तेंदुआ 4,600 मीटर और क्लाउडेड लेपर्ड 4,650 मीटर पर कैमरे में कैद, भारत में अब तक का सबसे ऊंचा रिकॉर्ड।

  • अनोखा व्यवहार दर्ज – हिम तेंदुआ और साधारण तेंदुआ एक ही जगह पर गंध-चिह्न करते हुए पाए गए।

  • समुदाय की अहम भूमिका – ब्रोपा चरवाहा समुदाय और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने मिलकर सर्वे सफल बनाया, जिससे पारंपरिक ज्ञान और संरक्षण एक साथ जुड़ पाए।

तवांग और पश्चिम कामेंग में हुआ सर्वे न केवल पल्लास बिल्ली की मौजूदगी का सबूत सामने लाया, बल्कि छह जंगली बिल्लियों के साथ कई प्रजातियों के रिकॉर्ड तोड़ ऊंचाई वाले दस्तावेज भी सामने आए।

अरुणाचल प्रदेश के तवांग और पश्चिम कामेंग जिलों में किए गए एक ऐतिहासिक वन्यजीव सर्वे ने हैरान कर देने वाली खोजें की हैं। इस सर्वे के दौरान पहली बार राज्य में पल्लास बिल्ली की तस्वीरें कैमरे में कैद हुई। यह बिल्ली बहुत रहस्यमयी और कम दिखाई देने वाली प्रजाति है। इसके साथ ही पांच और जंगली बिल्लियों, हिम तेंदुआ, कॉमन तेंदुआ, घने बादलों वाली बिल्ली (क्लाउडेड लेपर्ड), लेपर्ड कैट और मार्बल्ड कैट की भी मौजूदगी दर्ज हुई।

यह उपलब्धि दिखाती है कि अरुणाचल का ऊंचाई वाला इलाका जंगली बिल्लियों के लिए कितना खास है और इसे वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट क्यों कहा जाता है।

अब तक का सबसे बड़ा हाई-एल्टीट्यूड सर्वे

यह सर्वे डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने 2024 में वन विभाग, अरुणाचल प्रदेश सरकार और स्थानीय समुदायों की मदद से किया। जुलाई से सितंबर 2024 के बीच डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की टीम ने लगभग 2,000 वर्ग किलोमीटर के ऊंचे, कठिन और दुर्गम इलाकों में 136 कैमरा ट्रैप लगाए। इन्हें 83 जगहों पर रखा गया और ये आठ महीने तक सक्रिय रहे। भारी बारिश, बर्फबारी, दुर्गम रास्ते और ऊंचाई के बावजूद टीम ने स्थानीय गाइडों और चरवाहा समुदाय की मदद से यह चुनौती पूरी की।

रिकॉर्ड ऊंचाई पर दर्ज हुई प्रजातियां

इस सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले रहे। कई प्रजातियों को अब तक की सबसे अधिक ऊंचाई पर दर्ज किया गया-

  • कॉमन तेंदुआ – 4,600 मीटर

  • क्लाउडेड लेपर्ड – 4,650 मीटर

  • मार्बल्ड कैट – 4,326 मीटर

  • हिमालयन वुड आउल – 4,194 मीटर

  • ग्रे-हेडेड फ्लाइंग स्क्विरल – 4,506 मीटर

ये सभी रिकॉर्ड भारत में अब तक दर्ज सबसे ऊंचे हैं। माना जा रहा है कि इनमें से कुछ वैश्विक रिकॉर्ड भी तोड़ सकते हैं।

पल्लास बिल्ली का महत्व

पल्लास बिल्ली दुनिया के सबसे रहस्यमयी जंगली बिल्लियों में से एक है। यह बर्फीले और ठंडे इलाकों में पाई जाती है, लेकिन अब तक इसे बहुत कम जगहों पर देखा गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में "चिंता" की श्रेणी में रखा गया है, पर इसके बारे में शोध बेहद सीमित है।

अरुणाचल प्रदेश में इसका कैमरे में आना इस प्रजाति के विस्तार को दर्शाता है। इससे पहले भारत में इसकी पुष्टि केवल सिक्किम से हुई थी, जबकि भूटान और पूर्वी नेपाल में भी इसके रिकॉर्ड मिले थे।

अनोखा व्यवहार: एक ही जगह दो बड़े शिकारी

कैमरों में एक रोचक दृश्य भी कैद हुआ, हिम तेंदुआ और साधारण तेंदुआ एक ही जगह पर गंध-चिह्न (सेंट मार्किंग) करते दिखाई दिए। यह इस बात की झलक देता है कि ये दोनों बड़े शिकारी कठिन और सीमित संसाधनों वाले अल्पाइन क्षेत्र को आपस में किस तरह बांटते हैं।

इंसान और प्रकृति का सहअस्तित्व

कैमरों में केवल जानवर ही नहीं, बल्कि ब्रोपा चरवाहा समुदाय और उनका पशुधन भी दर्ज हुआ। यह दिखाता है कि सदियों से यह समुदाय कैसे प्रकृति और वन्यजीवों के साथ संतुलन बनाकर जी रहा है। यही पारंपरिक ज्ञान और जीवनशैली इन नाजुक पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्रों को जीवित रखने में मदद करती है।

रिपोर्ट में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि “इतनी ऊंचाई पर कई जंगली बिल्लियों की खोज रोमांचक है। यह हमें नए शोध और संरक्षण की दिशा देता है। पल्लास बिल्ली का लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई पर मिलना हमें याद दिलाता है कि हिमालय के जीवन के बारे में हमारी जानकारी अभी भी अधूरी है। यह खोज विज्ञान, समुदाय और संरक्षण के एक साथ आने की अहमियत बताती है।

यह खोज अरुणाचल को एक बार फिर वैश्विक जैव विविधता केंद्र साबित करती है। यह भी दिखाती है कि वैज्ञानिक निगरानी, परंपरागत ज्ञान और आजीविका, तीनों मिलकर संरक्षण को सफल बना सकते हैं।

सामुदायिक मॉडल से संरक्षण

यह पहल डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के वेस्टर्न अरुणाचल लैंडस्केप कार्यक्रम का हिस्सा है। 2004 से यह कार्यक्रम मोनपा समुदायों के साथ मिलकर हिम तेंदुआ, लाल पांडा, ऊंचाई वाली झीलों और घास वाली जमीन के संरक्षण पर काम कर रहा है। कम्युनिटी कंजर्व्ड एरिया (सीसीए) मॉडल इसी पहल का नतीजा है, जो अब स्थानीय आजीविका और पारिस्थितिक तंत्र दोनों को सुरक्षित रखने का अनोखा तरीका माना जाता है।

पल्लास बिल्ली की खोज अरुणाचल प्रदेश के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है। यह साबित करती है कि हिमालय की ऊंचाई वाली भूमि न केवल दुर्लभ जीवों का घर है, बल्कि इंसान और प्रकृति का सहअस्तित्व भी यहां जीवित है। आने वाले समय में ऐसे सर्वे हमें इन रहस्यमयी इलाकों को समझने और बचाने में मदद करेंगे।