वन्य जीव एवं जैव विविधता

धधकता हिमालय: सर्दियों में भी जल रहे हैं उत्तराखंड के जंगल, पीने के पानी का भी संकट बढ़ा

9 से 16 जनवरी के बीच उत्तराखंड में 600 से अधिक वनाग्नि के अलर्ट जारी किये जा चुके हैं

Varsha Singh

9 से 16 जनवरी के बीच उत्तराखंड में 600 से अधिक वनाग्नि के अलर्ट जारी किये जा चुके हैं। देशभर में सबसे ज्यादा फायर अलर्ट उत्तराखंड में आए। 400 से अधिक फायर अलर्ट के साथ हिमाचल प्रदेश दूसरे और तकरीबन 250 अलर्ट के साथ जम्मू-कश्मीर तीसरे स्थान पर है। अरुणाचल प्रदेश में भी 200 के आसपास अलर्ट जारी किए गए हैं।

दिसंबर और जनवरी में बारिश और बर्फबारी न होने से हिमालयी राज्यों का संकट बढा है। जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग में बर्फ की चादर नहीं बिछी। विंटर गेम्स का इंतजार कर रहे चमोली के औली में बर्फ की जगह सूखे मैदान नजर आ रहे हैं। सर्दियों की गर्माहट से जंगल में आग का संकट बढ़ गया है।

टिहरी निवासी जयप्रकाश कुकरेती बताते हैं “सर्दियों में जंगल सुलग रहे हैं। दिन में तेज धूप के चलते वनाग्नि इतनी ज्यादा है कि चारों तरफ धुंध की परत छा गई है”। वह कहते हैं कि ग्रामीण इस समय खेतों की सफाई करते हैं और घास के इंतजाम के लिए आग जलाते हैं लेकिन तापमान अधिक होने से ये आग बेकाबू हो जा रही है।

टिहरी के जिला वन अधिकारी सुमित तोमर भी मानते हैं कि बारिश न होने से सर्दियों में वनों में जगह-जगह आग लगने की सूचनाएं मिल रही हैं। वन विभाग भी इस समय कंट्रोल बर्निंग कर रहा है। मॉनसून के बाद बारिश न होने से जंगल में सूखी पत्तियों का ढेर जमा है जिससे गर्मियों में आग भड़क जाती है। इसलिए विभाग नियंत्रित आग के जरिये जंगल की सफाई करता है। इससे भी लोगों को धुआं दिख रहा है।

डीएफओ कहते हैं कि ग्रामीणों को आग के प्रबंधन के लिए जागरूक किया जा रहा है। वे इस समय खेतों की सफाई या जंगल में चारापत्ती के लिए आग लगाकर न छोडें।

टिहरी में सकलाना पट्टी के मझगांव के किसान भागचंद रमोला कहते हैं “हमने दीवाली के दस दिन पहले आखिरी बारिश देखी थी। उसके बाद से बिलकुल भी बारिश नहीं है। सर्दियों में हमारे गांव में 5 बजे के बाद बर्फीली हवाओं के चलते घर से बाहर नहीं निकल सकते थे। इस समय वह ठंड गायब है। दोपहर की धूप इतनी तेज है और मौसम इतना खुश्क है कि हमारे गांव के चारों तरफ के जंगल जल चुके हैं”।

सूखी सर्दियां 

इस वर्ष 1 से 16 जनवरी के बीच राज्य में बारिश-बर्फबारी देखने को नहीं मिली। नैनीताल में नाममात्र 0.8 मिमी बारिश हुई, जबकि सामान्यतः इस दौरान 14 मिमी. तक बारिश होती है। इसी तरह अल्मोड़ा, बागेश्वर में 15 मिमी से अधिक, चमोली में 20 मिमी और रुद्रप्रयाग उत्तरकाशी में इस समय तक 28 और 26 मिमी तक बारिश होनी चाहिए लेकिन देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़  समेत सभी पर्वतीय जिलों में सामान्य से 100 प्रतिशत कम यानी कोई बारिश नहीं हुई।

वहीं, दिसंबर-2023 भी तकरीबन सूखा गया। तीन हिमालयी राज्यों जम्मू कश्मीर और लद्दाख (-79), हिमाचल प्रदेश (-85) और उत्तराखंड (-75) में सामान्य से बेहद कम बारिश दर्ज हुई।  देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में मॉनसून के बाद बारिश और बर्फबारी में लगातार कमी दर्ज की जा रही है। नवंबर और दिसंबर में तकरीबन न के बराबर बारिश-बर्फबारी हुई। जनवरी में भी अब तक कोई बारिश नहीं मिली।

बिक्रम सिंह कहते हैं कि इससे पहले वर्ष 2006, 2007, 2008 और 2009 में भी मानसून के बाद काफी कम बारिश हुई। तकरीबन 4 साल सूखी सर्दियां रहीं। मानसून के बाद सर्दियों की जलवायु में इस तरह के उतार-चढाव लगातार देखने को मिल रहे हैं।

पेयजल संकट

सूखी सर्दियों के चलते पहाड़ के गांवों को इस साल पेयजल संकट का सामना करना पडेगा। चमोली के पीपलकोटी में ग्रामीण विकास और आजीविका के लिए कार्य कर रहे जेपी मैठाणी कहते हैं “मानसून की बारिश से भूमिगत जलस्रोत सर्दियों के लिए रिचार्ज हो जाते हैं और सर्दियों की बारिश में फरवरी-मार्च से लेकर मॉनसून आने तक जल स्रोतों में पानी की व्यवस्था होती है। लेकिन इस बार कोई बारिश नहीं हुई। यह आने वाले महीनों के लिए पेयजल संकट तो है ही। पशुओं के लिए भी चारे का भी संकट है। पानी और चारे की व्यवस्था करने में महिलाओं का श्रम बढने वाला है। उन्हें मीलों पैदल चलकर जंगल जाना होगा”।

सूखे पड़े खेत और बाग
खेती-बागवानी का संकट इस सबका असर पहाड़ में खेती और बागवानी पर भी है। सर्दियों में लगाए जाने वाले फलदार पौधों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा। पीपलकोटी के बागवान जयदीप कहते हैं “उनके पास सेब, आडू, प्लम, खुबानी और कीवी समेत 270 पेड़-पौधे हैं। बारिश न होने से सूखी मिट्टी में रोपे गए पौधों का बचना मुश्किल हो जाएगा”। वह उम्मीद करते हैं कि कुछ बारिश हो जाए जिससे किसानों-बागवानों को राहत मिले। 

बारिश न होने से पहाड़ों में असिंचित भूमि में गेहूं की बुवाई में देरी हो रही है। टिहरी के किसान रमोला कहते हैं कि बारिश पर निर्भर हमारे खेतों में किसानों ने अब तक गेहूं और जौ के बीज बाहर भी नहीं निकाले। जनवरी बीतने वाली है। पहाड के किसान अब क्या जौ बोएंगे। बारिश होने के 15 दिन बाद जौ जमती है और अप्रैल में कटाई होती है। गेहूं की बुवाई का समय भी निकल चुका है। बारिश न होने से नदियां बेपानी हो रही हैं। सिंचित खेतों में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।

पर्यटन प्रभावित किसान और बागवान से लेकर पर्यटन तक बारिश लोगों की आजीविका से जुड़ी है। होटल चलाने वाले व्यवसायी अतुल शाह कहते हैं “इस बार औली में बर्फ नहीं गिरी और पर्यटन 20 प्रतिशत भी नहीं रहा। पूरा विंटर टूरिज्म ठप हो गया”।  बद्रीनाथ में 17 जनवरी को बेहद हलकी बर्फ गिरी है। सबकी उम्मीद आने वाले दिनों और फरवरी की बारिश-बर्फबारी पर टिकी है। जलते जंगल से लेकर पेयजल संकट तक पहाड़ मौसमी चुनौतियों से घिरे हैं।