वन्य जीव एवं जैव विविधता

ओडिशा के समुद्री तट पर छह लाख से अधिक कछुए अंडे देने पहुंचे

Anil Ashwani Sharma

ओडिशा के रशिकुल्या समुद्री तट पर इस बार रिकॉर्ड संख्या में ओलिव राइडली कछुए पहुंचे हैं। वन विभाग द्वारा इनकी संख्या इस बार 6.37 लाख आंकी गई है। ये कछुए बड़े पैमाने पर यहां अपने घोंसले बनाने के लिए पहुंचे हैं। ओडिशा के गंजम जिले में समुद्र तट के लिए अपने आप में यह एक नया रिकॉर्ड है।

बेरहामपुर डिवीजनल के वन अधिकारियों के अनुसार 23 फरवरी से 2 मार्च के बीच ये कछुए पहुंचे हैं। पिछले साल 5.5 लाख कछुए ही घोंसला बनाने के लिए रुशिकुल्या आए थे। वन अधिकारियों ने कहा इस साल समुद्री तट चक्रवातों और भारी बारिश से अप्रभावित रहे हैं। यही स्थिति कुछओं की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

रशिकुल्या नदी के मुहाने पर कछुओं की वास्तविक संख्या दो मार्च से और बढ़ी है। वन अधिकारियों का कहना है कि हमारा विभाग कछुओं की गिनती लगातार कर रहा है। इसके अलावा वन डिवीजन ने कछुओं की मृत्यु को रोकने के लिए कई वन अधिकारियों की तैनाती भी की है।

दी हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार समुद्री तट पर पहुंचने के बाद ऑलिव राइडली कछुए समुद्र तटों पर गड्ढा खोदते हैं। और इसी गुफानुमा गड्ढे में वे एक बार में दर्जनों अंडे दे देते हैं और साथ ही उन्हें कवर करते हैं। ध्यान रहे कि इस प्रकार के कछुए ओडिशा के केंड्रापरा जिले के गाहिमाथा समुद्र तट पर भी पहुंचते हैं।

भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (जेडएसआई) के शोधकर्ता गहिरमाथा, देवी नदी के मुहाने पर और रुशिकुल्या में इन कछुओं की टैगिंग कर रहे हैं। अध्ययन के लिए जेडएसआई के शोधकर्ताओं ने इन तीनों स्थानों पर कछुओं की टैगिंग को जारी रखा हुआ है।

वन विभाग के अनुसार 2023 में अब तक 3,200 कछुओं को टैग करने का लक्ष्य रखा गया है। यह नहीं है पहले किए गए 150 कछुए, जिन्हें टैग किया गया था, इस साल ओडिशा के समुद्र तटों पर अंडे देने के लिए लौटे हैं।

इसके अलावा ओडिशा में टैग किए गए दो कछुए विभाग को श्रीलंका और तमिलनाडु के समुद्री तट पर भी देखा गया है। जेडएसआई के अनुसार आने वाले 10 वर्षों के दौरान 30,000 से अधिक कछुओं को टैग करने का लक्ष्य रखा गया है।

जेडएएसआई अपने इस अध्ययन में इस बात पर विशेष ध्यान केंद्रित कर रहा कि घोंसले के लिए कछुए कितनी बार ओडिशा समुद्र तटों पर लौटते हैं। ध्यान रहे कि जनवरी 2021 में ओडिशा में 1,556 कछुओं को टैग किया गया था। कछुओं पर लगे धातु के टैग को बाद में हटाया जा सकता है और वे कछुओं के शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते। इन टैग में संगठन का नाम, देश-कोड और ईमेल का पता होता है।

यदि अन्य देशों के शोधकर्ताओं को टैग किये गए कछुओं का पता चलता है, तो वे भारत के शोधकर्त्ताओं को अपने स्थान से ईमेल द्वारा सूचित करते हैं। यह कछुओं पर काम करने वालों का एक बड़ा नेटवर्क है। ध्यान रहे क ओलिव कछुए विश्व में पाए जाने वाले सभी समुद्री कछुओं में सबसे छोटे और संख्या में सबसे अधिक पाए जाते है।

ये कछुए मांसाहारी होते हैं और इनकी पीठ ओलिव रंग की होती है, इसी के आधार पर इनका यह नाम भी पड़ा है। ये कछुए अपने सामूहिक रूप से घोंसले बनाने के लिए जाने जाते हैं। अंडे देने के लिए हजारों की संख्या में मादा कछुए एक ही समुद्र तट पर एक साथ ही पहुंचते हैं।

ये मुख्य रूप से प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागरों के गर्म पानी में पाए जाते हैं। ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य को विश्व में समुद्री कछुओं के सबसे बड़े प्रजनन स्थल के रूप में भी जाना जाता है।