जेबरा और विल्डबीस्ट का सामाजिक व्यवहार उन्हें शिकारियों के आक्रमण से सुरक्षित रखता है; फोटो: आईस्टॉक 
वन्य जीव एवं जैव विविधता

लम्बे अरसे तक जीवित रहती हैं अधिक सामाजिक प्रजातियां, रिसर्च में हुआ खुलासा

ज्यादातर सामाजिक प्रजातियां लंबे समय तक जीवित रहती हैं, वो देर से परिपक्व होती हैं, और समूह में इनके सफल होने की सम्भावना अधिक होती है

Lalit Maurya

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा किए नए शोध से पता चला है कि जो प्रजातियां अधिक सामजिक होती हैं वे लम्बे समय तक जीवित रहती हैं। इतना ही नहीं इनकी प्रजनन अवधि भी लंबी होती है और वे लम्बे समय तक संतान पैदा कर सकती हैं।

गौरतलब है कि यह अपनी तरह का पहला शोध है, जिसमें इंसानों से लेकर जेलीफिश तक सभी जीवों का अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल फिलॉसॉफिकल ट्रांजेक्शंस ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जीवों के सामाजिक व्यवहार और जीवन से जुड़े लक्षणों जैसे पीढ़ी का समय, जीवन प्रत्याशा और प्रजनन अवधि की लंबाई बीच के संबंधों की जांच की है। इसमें पक्षियों, स्तनधारियों, कीड़ों और कोरल सहित विभिन्न जीवों की 152 प्रजातियों का मूल्यांकन किया है।

अध्ययन के मुताबिक जहां सामाजिक होने के अपने कुछ फायदे हैं, वहीं साथ ही इसकी कुछ कीमत भी चुकानी पड़ती है। उदाहरण के लिए जहां सामाजिक जीवों को साझा संसाधन, शिकारियों से बेहतर सुरक्षा और संतान के पालन-पोषण में सहायता जैसे लाभ मिलते हैं।

वहीं दूसरी तरफ नजदीकी समूहों में रहने के कुछ नुकसान भी हैं, जैसे इन जीवों में बीमारियों के फैलने, प्रतिस्पर्धा में वृद्धि, आक्रामकता और संघर्ष में वृद्धि जैसे प्रभावों से भी जूझना पड़ सकता है।

क्यों लम्बे समय तक जीवित रहते हैं सामाजिक जीव

इस अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि ज्यादातर सामाजिक प्रजातियां लंबे समय तक जीवित रहती हैं, वो देर से परिपक्व होती हैं, और अकेले रहने वाली प्रजातियों की तुलना में इनके सफलतापूर्वक प्रजनन करने की सम्भावना अधिक होती है। हालांकि सामाजिक प्रजातियां बदलते परिवेश के साथ जल्द अनुकूलन करने के लिए संघर्ष कर सकती हैं, लेकिन वे अक्सर एक समूह के रूप में इन बदलावों का कहीं बेहतर तरीके से सामना कर सकती हैं।

नतीजे इस बात की भी पुष्टि करते हैं कि हालांकि समूह में रहने के कुछ नुकसान हैं, फिर भी कुल मिलाकर देखें तो यह अधिक फायदेमंद होता है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि सामाजिक व्यवहार, उम्र बढ़ने के साथ जीवों की प्रजनन और जीवित रहने की क्षमता में आने वाली कमी को प्रभावित कर सकता है। इसकी वजह से समाजिक प्रजातियां लम्बे समय तक जीवित रह सकती हैं। इसकी वजह से जीवों के उम्र बढ़ने या 'बुढ़ापे' पर भी असर पड़ता है।

उदाहरण के लिए, सामाजिक समूह, जीवों को शिकारियों से बचा सकते हैं और उन्हें लंबे समय तक जीने में मदद कर सकते हैं, लेकिन समूहों में अपने पद और अन्य वजहों से होने वाले संघर्षों से विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता एसोसिएट प्रोफेसर रॉब सालगुएरो-गोमेज ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "सामाजिक व्यवहार कई जीवों के लिए एक बुनियादी पहलु है। हालांकि इसके फायदे नुकसान के बारे में अभी भी काफी कुछ अध्ययन करना बाकी है।

कई जीवों पर किए इस अध्ययन से पता चला है कि बंदर, इंसान, हाथी, राजहंस और तोते जैसी अधिक सामजिक प्रजातियां, सरीसृप, कुछ कीड़ों और मछलियों जैसी एकांतप्रिय प्रजातियों की तुलना में ज्यादा समय तक जीवित रहती हैं। साथ ही इनकी प्रजनन अवधि भी लम्बी होती है।

पिछले अध्ययनों में अक्सर जानवरों को सामाजिक या गैर-सामाजिक के रूप में वर्गीकृत किया गया था, हालांकि यह नया अध्ययन मानता है कि सामाजिक व्यवहार एक स्पेक्ट्रम पर मौजूद है। इसमें जीवों के विभिन्न प्रकार के सामजिक व्यवहारों को शामिल किया गया गया है, जैसे कि मिलनसार होना।

इसके कुछ उदाहरण वाइल्डबीस्ट, जेबरा और झुंड में रहने वाले पक्षी हैं। वहीं सामुदायिक होने का उदाहरण बैंगनी मार्टिन पक्षी हैं। वहीं कुछ ऐसे जीव हैं जो अपनी कॉलोनियां बनाते हैं जैसे घोंसले बनाने वाले पक्षी, ततैयों की कुछ प्रजातियां और कोरल पॉलीप्स आदि।

एसोसिएट प्रोफेसर गोमेज का कहना है कि, "कोविड के बाद, हमने देखा कि अकेले रहने से उन लोगों पर क्या असर पड़ता है, जो बेहद सामाजिक होते हैं। यह शोध दर्शाता है कि ज्यादा सामाजिक होने के वास्तविक फायदे हैं।"

इस कड़ी में शोधकर्ता अभी भी इस बात का अध्ययन करने में लगे हैं कि, सामाजिक समूह जलवायु में आते बदलावों के प्रति कैसे अनुकूलन करते हैं।