वन्य जीव एवं जैव विविधता

क्षमता से अधिक चीतों को छोड़ा जा रहा है कूनो नेशनल पार्क में, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

Dayanidhi

साल 2022 के शरद ऋतु और 2023 के सर्दियों में, नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीतों को लाकर भारत के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था। ताकि 70 साल पहले भारत से विलुप्त होने के बाद इन्हें फिर से स्थापित किया जा सके। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना कि यह सोच बहुत अच्छी है, लेकिन इसे ठीक से हासिल करना इतना आसान नहीं है।

नामीबिया में लीबनिज-आईजेडडब्ल्यू के चीता अनुसंधान परियोजना के वैज्ञानिक इनके फिर से स्थापित करने की योजना में कमियां होने की बात कर रहे हैं। दक्षिणी अफ्रीका में, चीते काफी बड़े इलाकों में फैले हुए हैं और प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में एक से भी कम चीता रहता है।

कूनो नेशनल पार्क में चीतों के लिए बनाई गई योजना में माना गया है कि अधिक शिकार, चीतों को बनाए रखेगा, हालांकि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि चीतों की अधिक संख्या शिकार की अधिक संख्या पर निर्भर करती है।

शोध टीम ने कहा, क्योंकि कुनो राष्ट्रीय उद्यान छोटा है, इसलिए इस बात की आशंका अधिक है कि छोड़े गए जानवर पार्क की सीमाओं से बहुत आगे निकल जाएंगे और पड़ोसी गांवों के लोगों के साथ इनका संघर्ष हो सकता है

एशियाई चीता (एसिनोनिक्स जुबेटस वेनाटिकस), विश्व स्तर पर लुप्तप्राय चीता की एक उप-प्रजाति है। यह 70 साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप में रहती थी, उसके  बाद यह विलुप्त हो गई।

सितंबर 2022 और फरवरी 2023 में, नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से एसिनोनिक्स जुबेटस-जुबेटस उप-प्रजाति के कुल 20 चीतों को भारत के मध्य प्रदेश राज्य के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया था। जिसे भारत में इन बिल्लियों की एक नई आबादी के पहले केंद्र के रूप में देखा जा रहा है। 

कुनो राष्ट्रीय उद्यान लगभग 17 गुणा 44 किलोमीटर (लगभग 750 वर्ग किमी) का एक बिना बाड़ वाला जंगली इलाका है। स्थानीय शिकार की संख्या के आधार पर, गणना की गई कि कुनो नेशनल पार्क में 21 वयस्क चीतों को रखा जा सकता है। जो कि प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में लगभग तीन चीतों के घनत्व के बराबर का इलाका है।

नामीबिया में चीतों के स्थानीय व्यवहार पर लंबे समय तक अध्ययन तथा शोध किए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि किसी भी जगह पर क्षमता से अधिक चीतों को नहीं रखा जाना चाहिए। साथ ही पूर्वी अफ्रीका में तुलनात्मक शोध के आधार पर, लाइबनिज इंस्टीट्यूट फॉर जू एंड वाइल्डलाइफ रिसर्च (लीबनिज-आईजेडडब्ल्यू) के वैज्ञानिक भी पार्क में जरूरत से ज्यादा चीतों को रखने के खिलाफ हैं।

जीव वैज्ञानिकों ने बताया कि, प्राकृतिक परिस्थितियों में आमतौर पर प्रति 100 वर्ग किमी में एक वयस्क चीता रहता है। यह न केवल नामीबिया के लिए सच है, बल्कि पूर्वी अफ्रीका में सेरेन्गेटी पारिस्थितिकी तंत्र में पारिस्थितिक रूप से बहुत अलग-अलग स्थितियों के लिए भी सही है, जहां शिकार का घनत्व बहुत अधिक है।

इस परिप्रेक्ष्य को लेकर, टीम ने नए निवास स्थान में चीतों के स्थानीय व्यवहार के बारे में पूर्वानुमान लगाया, विवादास्पद मुद्दों की पहचान की और दोबारा उन जगहों पर उन्हें स्थापित करने की योजना की छिपी हुई मूल धारणाओं की पहचान की गई। शोध के मुताबिक ये मान्यताएं चीता की सामाजिक-स्थानिक प्रणाली के महत्वपूर्ण पहलुओं को नजरअंदाज करती हैं।

नर चीते दो अलग-अलग स्थानीय तरीको को अपनाते हैं। नर आमतौर पर अपने इलाके पर कब्जा कर लेते हैं। जबकि यहां मौजूदा नर बिना कब्जा किए इलाकों में घूमते और रहते हैं, जैसा कि अक्सर मादाएं करती हैं। ये नर पहचानी गई जगहों को लेकर कभी-कभार दूसरों पर आक्रमण भी करते हैं।

चीता रिसर्च प्रोजेक्ट के डॉ. जॉर्ग मेल्जाइमर कहते हैं, चीतों के इलाके एक-दूसरे की सीमा से सटे नहीं होते हैं, वे हमेशा एक दूसरे से लगभग 20 से 23 किलोमीटर दूर होते हैं। इलाकों के बीच की जगह का किसी भी नर द्वारा बचाव नहीं किया जाता है, यह बिना इलाके वाले नर जिसे फ्लोटर्स कहते है और मादाओं के लिए रहने और गुजरने की जगह होती है।

चीता रिसर्च प्रोजेक्ट से डॉ. बेटिना वाचर कहते हैं, यह दूरी शिकार के आधार के वास्तविक आकार से स्वतंत्र है। नामीबिया में, इलाके बड़े हैं और शिकार का घनत्व कम है, पूर्वी अफ्रीका में क्षेत्र छोटे हैं और शिकार का घनत्व अधिक है। लेकिन प्रदेशों के बीच की दूरी स्थिर है और बीच में कोई नया क्षेत्र स्थापित नहीं किया गया है। जबकि कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों को फिर से स्थापित करने की योजना के तहत, इन दूरियों को नजरअंदाज किया गया है।

वाचर, मेल्ज़ाइमर और उनकी टीम ने कहा कि, साल 2022 की शरद ऋतु में नामीबिया से लाए गए चीते, जिनमें तीन नर भी शामिल थे, इनके चलते पहले ही कुनो राष्ट्रीय उद्यान की वहन करने की क्षमता पूरी हो गई है।

उन्होंने कहा कि, भारत में स्थापित उनके क्षेत्रों के आकार के बावजूद, तीन नामीबिया के नरों ने पूरे राष्ट्रीय उद्यान पर कब्जा कर लिया होगा, जिससे हाल ही में दक्षिण अफ्रीका से भेजे गए अतिरिक्त चीतों के लिए वहां कोई जगह नहीं बची है।

वैज्ञानिकों ने कहा है, इसलिए हमारा अनुमान हैं कि चीते राष्ट्रीय उद्यान के बाहर भी पाए जा सकते हैं और पार्क के आसपास के किसानों के साथ संघर्ष कर सकते हैं। उनकी स्थानीय प्रणाली को स्थापित करने की प्रक्रिया में शायद कई महीने लगेंगे और इससे पार्क के बाहर इनके द्वारा कब्जा किया जाएगा, यही वजह है कि फ्लोटर्स और मादा अक्सर पार्क के बाहर भी पाए जाते हैं।

वर्तमान शोध के निष्कर्षों के आधार पर, टीम ने सिफारिश की है कि भविष्य में भारत में चीतों के दोबारा स्थापित की जाने वाली प्रजातियों के स्थानीय संगठन को ध्यान में रखा जाए। यह सक्रिय रूप से संघर्षों को हल करने में मदद करेगा और दोबारा स्थापित किए जाने के बाद चीता प्रादेशिक प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया में अहम जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी। यह शोध कंजर्वेशन साइंस एंड प्रैक्टिस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।