वन्य जीव एवं जैव विविधता

भीमबेटका में मिले करोड़ों साल पुराने डिकिंसोनिया जीवाश्म

यहाँ लगातार हो रहे शोधों के बावजूद इस दुर्लभ जीवाश्म से अब तक परदा नहीं उठ सका था

India Science Wire

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 45 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध भीमबेटका की गुफाओं को आदि-मानव द्वारा पत्थरों पर की गई चित्रकारी के लिए जाना जाता है। यूनेस्को संरक्षित क्षेत्र भीमबेटका का संबंध पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल से जोड़कर देखा जाता है। एक नये अध्ययन में, भीमबेटका में दुनिया का सबसे दुर्लभ और सबसे पुराना जीवाश्म खोजा गया है। शोधकर्ता इसे भारत में डिकिंसोनिया का पहला जीवाश्म बता रहे हैं, जो पृथ्वी का सबसे पुराना, लगभग 57 करोड़ साल पुराना जानवर है।

अमेरिका की ऑरिगोन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक ग्रेगरी जे. रिटालैक के नेतृत्व में यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटर्सैंड, जोहान्सबर्ग और भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के शोधकर्ताओं के संयुक्त अध्ययन में डिकिंसोनिया के जीवाश्म की खोज की गई है। डिकिंसोनिया जीवाश्म से पता चलता है कि इस जानवर की लंबाई चार फीट से अधिक रही होगी, जबकि मध्य प्रदेश स्थित भीमबेटका की गुफा में जो जीवाश्म मिला है, वो 17 इंच लंबा है। डिकिंसोनिया को लगभग 54.1 करोड़ वर्ष पहले, कैम्ब्रियन काल में प्रारंभिक, सामान्य जीवों और जीवन की शुरुआत के बीच प्रमुख कड़ी में से एक के रूप में जाना जाता है। 

भारत में डिकिंसोनिया जीवाश्म भीमबेटका की ‘ऑडिटोरियम गुफा’ में पाया गया है। यह जीवाश्म भांडेर समूह के मैहर बलुआ पत्थर में संरक्षित है, जो विंध्य उप-समूह चट्टानों का हिस्सा है। शोधकर्ताओं को भीमबेटका की यात्रा के दौरान जमीन से 11 फीट की उँचाई पर चट्टान पर एक पत्‍तीनुमा आकृति देखने को मिली है, जो शैलचित्र की तरह दिखती है। इतने वर्षों तक इस जीवाश्म पर पुरातत्व-विज्ञानियों की नज़र नहीं पड़ने पर शोधकर्ताओं ने हैरानी व्यक्त की है। भीमबेटका की गुफा को 64 साल पहले वीएस वाकणकर ने ढूँढा था। तब से, हजारों शोधकर्ताओं ने इस पुरातत्व स्थल का दौरा किया है। यहाँ लगातार हो रहे शोधों के बावजूद इस दुर्लभ जीवाश्म से अब तक परदा नहीं उठ सका था। 

इस शोध में, शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के सबसे पुराने जीवों के इतिहास का अध्ययन किया है, जिनका संबंध इडिऐकरन काल से है। दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया की इडिऐकरा पहाड़ियों के नाम पर इस कालखंड नाम पड़ा है। पृथ्वी के इतिहास में यह कालखंड 64.5 करोड़ से 54.1 करोड़ वर्ष पूर्व माना जाता है, जब डिकिंसोनिया और अन्य कई बहु-कोशकीय जीव अस्तित्व में थे। इससे पहले डिकिंसोनिया जीवाश्म रूस और ऑस्ट्रेलिया में पाए गए हैं। 

अध्ययन में, जीवाश्म चट्टानों की आयु का निर्धारण आइसोटोप्स के उपयोग से किया गया है। मध्य प्रदेश में सबसे कम उम्र के मैहर बलुआ पत्थर की जिरकॉन डेटिंग से इसकी उम्र 54.8 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया है। जबकि, सोन एवं चंबल घाटियों में पाए जाने वाले चूना पत्थर की आइसोटोप डेटिंग से इनकी उम्र का अनुमान 97.8 करोड़ वर्ष से 107.3 करोड़ वर्ष के बीच माना जा रहा है, जिसका संबंध पुरातन टोनियाई कालखंड से है। इडिऐकरन काल, कैम्ब्रियन काल का अग्रदूत था (लगभग 54.1 करोड़ से 485.4 करोड़ वर्ष), जब पृथ्वी पर विभिन्न जीवन रूपों का विस्फोट देखा गया। 

मैहर बलुआ पत्थर में डिकिंसोनिया जीवाश्मों की आयु संबंधी प्रोफाइल, जिरकॉन डेटिंग का उपयोग करके निर्धारित की गई है, जो उन्हें रूस के श्वेत सागर क्षेत्र के लगभग 55.5 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टानों से तुलना योग्य बनाती है। इस तरह की तुलना से संबंधित अधिक साक्ष्य करीब 55 करोड़ वर्ष पुराने दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के डिकिंसोनिया टेन्यूइस और डिकिंसोनिया कोस्टाटा जीवाश्मों से मिलते हैं। भीमबेटका और इसके आसपास की चट्टानों के अध्ययन से पता चलता है कि उनकी कई विशेषताएं ऑस्ट्रेलियाई चट्टानों से मिलती-जुलती हैं। इन विशेषताओं में, ‘बूढ़े हाथी की त्वचा’ जैसी बनावट और ट्रेस जीवाश्म शामिल हैं। भारत में मिले डिकिंसोनिया जीवाश्म दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के रॉनस्ले क्वार्टजाइट से मिलते-जुलते हैं। 

यह अध्ययन शोध पत्रिका गोंडवाना रिसर्च में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में ग्रेगरी जे. रिटालैक के अलावा, यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटर्सैंड के शरद मास्टर और भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के शोधकर्ता रंजीत जी. खांगर एवं मेराजुद्दीन खान शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)