भारत में विश्व की सभी प्रकार की जलवायु के पौधे, वृक्ष, वनस्पतिया एवं प्राणी जगत की प्रजातियां थल, जल एवं पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है। प्राणी समूह की लगभग 81000 प्रजातियां होती है जो कि विश्व स्तर का 6.4 प्रतिशत है। हम भले ही अंतरिक्ष तक पहुंच गए हैं, परंतु हम प्रकृति के वरदान के साथ अन्याय भी कर रहे हैं।
10,000 साल पहले प्रकृति पर 600 करोड़ हेक्टेयर पर यानी करीब 57 प्रतिशत हिस्से में जंगल ही था लेकिन अब यह केवल 400 करोड़ हेक्टेयर ही बचा है। जैव आकलन करने वाली संस्था आईयूसीएन की रेड डाटा बुक में शामिल 1,42,500 प्रजातियों में से 40,000 प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
यह ज्ञात प्रजातियों का 28 प्रतिशत है। इसी तरह 454 करोड़ साल पहले निर्मित हुई पृथ्वी पर 70 प्रतिशत से अधिक पानी था लेकिन अब पानी का भार केवल 1 प्रतिशत ही रह गया है।
यह लेख एक ऐसी ही विलुप्त होती जा रही गिद्ध प्रजाति पर है। वर्ष 2003 के बाद भारत समेत दुनिया भर से गिद्ध विलुप्त होते जा रहे हैं। वर्ष 1990 के दशक से भारतीय गिद्धों का लगभग विलुप्त होना मनुष्य के लिए घातक साबित हो रहा है, क्योंकि गिद्ध प्राकृतिक तौर पर सफाई में मदद करते हैं। उनके आहार में मुख्य तौर पर मरे हुए जानवर शामिल होते हैं।
गिद्धों की कमी का कारण यह रहा है कि किसानों ने अपने मवेशियों का इलाज करने के लिए डाइक्लोफेनाक नामक दवा का उपयोग शुरू कर दिया था। इस दवा से मवेशी और मनुष्यों दोनों के लिए कोई खतरा नहीं था। लेकिन जो पक्षी डाइक्लोफेनाक से उपचारित मरे हुए जानवरों को खाते थे उन पक्षियों के गुर्दे खराब होने लगे व कुछ ही हफ्तों में उनकी मृत्यु होने लगी।
अब गिद्धों की संख्या में कमी होने के कारण इन सबको जंगली कुत्तों और चूहों ने खाना शुरू कर दिया लेकिन ये गिद्धों की तरह पशुओं के शव को पूरी तरह खत्म करने में सक्षम नहीं होते हैं। जबकि गिद्धों का समूह एक जानवर के शव को लगभग 40 मिनट में साफ कर सकता है क्योंकि गिद्ध हमेशा झुंड में रहता है।
गिद्ध का समूह एक किलोमीटर की ऊंचाई से भी मरे हुए जानवर की गंध सूंघ लेता हैं और उसे देख लेता हैं। सबसे ऊंची उड़ान भी यही पक्षी भरता है। इनका रंग काला और कत्थई होता है, इनके पंख 5 से 7 फीट तक होते हैं एवं इनका वजन 6 से 7 किलोग्राम तक होता है।
अब गिद्धों की संख्या कम हो रही है क्योंकि बढ़ते प्रदूषण और घटते जंगलों के चलते भी उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हुए हैं। गिद्ध का मुख्य भोजन मृत पशु होता है लेकिन इन मृत जानवरों को खाने से गिद्ध के शरीर में यूरिक अम्ल बनता है जो इनकी किडनी और लीवर को नुकसान पहुंचता है। यही इन गिद्धों की मौत का कारण बन रहा है एक दूषित पशु से कई गिद्धों की एक साथ मौत हो रही है। मध्य प्रदेश में अब केवल 6700 गिद्ध ही बचे हैं व देश में भी अपेक्षाकृत इनकी संख्या कम हुई है।
दुनिया भर में 23 प्रजाति के गिद्ध (वल्चर) पाए जाते हैं जिसमें से भारत में केवल 9 प्रजातियां है व मध्यप्रदेश में 7 प्रजातियों के गिद्ध देखे गए हैं। राजस्थान के झालावाड़ जिले में गिद्धों की लॉन्ग बिल्ड वल्चर प्रजाति पाई जाती है अब लॉन्ग बिल्ड गिद्ध राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में ही बचे हैं। मंदसौर जिले का गांधीसागर अभ्यारण वन्यजीवो के लिए स्वर्ग साबित हो रहा है। 6 फरवरी 2021 में गांधीसागर अभ्यारण में 684 गिद्ध मिले। वैसे तो सन 2010 के पूर्व गिद्धों की संख्या में गिरावट आई थी लेकिन पिछले वर्षों की तुलना में अभी कुछ वृद्धि हुई है।
गिद्धों की तस्करी का पहला मामला खंडवा से पकड़ा गया जो कि पिछले 10 वर्षों से चल रहा था। तस्करी में सात सफेद गिद्ध खंडवा से पकड़े गए। एक और तो देश में गिद्ध विलुप्त हो रहे है वही दूसरी तरफ खाड़ी देशों में इनकी जमकर तस्करी की जा रही है।
इन देशों में रसूखदार लोग, तंत्र क्रिया वाले और घरों में पालने के लिए लोग गिद्धों की मुंहमांगी कीमत देते रहे है। इसके चलते भारत से गिद्धों को समुद्र के रास्ते दुबई और अन्य खाड़ी देशों में तस्करी चल रही थी। उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी गिद्धों की तस्करी होती रही है।
यदि देखा जाए तो अभी के युवाओं को गिद्ध को देखने का अवसर नहीं मिला है। विगत 30 वर्षों पूर्व आसमान में मंडराते गिद्धों को आज के 45 से 50 से अधिक वर्ष के बुजुर्गों ने काफी संख्याओं में देखा है। अब गिद्धों की रक्षा में हर व्यक्ति व संस्थाओं को सहयोग हेतु आगे आना होगा। गिद्धों के संरक्षण से पर्यावरण स्वच्छता के फायदे ही होते हैं।
पर्यावरण हितैषी गिद्ध धरती पर जहां संक्रमण को रोकते हैं वही स्वच्छता में हमारे सहयोगी भी रहते हैं। गिद्धों से पर्यावरण संरक्षण तभी बना रहेगा जब हम गिद्ध प्रजाति को विलुप्त के कगार पर नही पहुंचने देंगे।
गिद्धों के संरक्षण की दिशा में 25 जून 2023 को हरियाणा के पिंजौर से 1100 किलोमीटर का सफर तय कर वहां से 20 गिद्ध भोपाल लाए गए। पिंजौर में गिद्धों के संरक्षण की बेहतरीन कयावत से प्रजनन द्वारा पिछले 22 साल में 365 गिद्धों का जन्म हो चुका है।
पिंजौर की देश में अहमियत इसलिए भी बढ़ गई है की विलुप्त होती हुई तीन प्रजाति के गिद्धों का प्रजनन यहाँ के केंद्र में हो रहा है। पिंजौर से ही मध्यप्रदेश, पश्चिमबंगाल, असम समेत कई राज्यों में गिद्धों को संरक्षण और और प्रजनन के लिए भेजा गया है।
गिद्धों की संख्या में वृद्धि के लिए देशभर में भोपाल सहित करीब 5 प्रजनन केंद्र भी बनाए गए हैं। फिर भी इनके संरक्षण के लिए जनजागृति बहुत आवश्यक है, तभी मनुष्य सुरक्षित पर्यावरण में जीवन बसर कर सकेगा।
(इस लेख के लेखक बीआर नलवाया शोध निदेशक हैं, जबकि प्रो. योगेश कुमार पटेल, शोधार्थी हैं)