संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि प्रकृति को संरक्षित करने और पृथ्वी की महत्वपूर्ण जैव विविधता को बचाने के लिए, एक दशक पहले सभी देशों ने खुद के लिए लक्ष्य निर्धारित किए थे। जिन्हें एक तय समय सीमा में पूरा किया जाना था, लेकिन आज भी सभी लक्ष्य अधूरे हैं।
हाल ही के डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के आकलन के अनुसार, पिछले पांच दशकों में प्राकृतिक दुनिया पर मानवता का प्रभाव तबाही से कम नहीं रहा है। 1970 के बाद से 70 प्रतिशत के करीब जंगली जानवर, पक्षी और मछलियां गायब हो गई हैं।
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता पर पैनल आईपीबीईएस ने चेतावनी दी थी कि मानव निर्मित गतिविधि के रूप में 10 लाख (एक मिलियन) प्रजातियां विलुप्ति का सामना कर रही हैं। पृथ्वी पर तीन चौथाई भूमि को गंभीर रूप से खराब कर दिया गया है।
2010 में हुए संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी में 190 सदस्य देशों ने 2020 तक प्राकृतिक दुनिया में हो रहे नुकसान को सीमित करने के लिए योजना बनाई थी।
20 उद्देश्यों में जीवाश्म ईंधन की सब्सिडी को समाप्त करना, जीवों के निवास स्थान को होने वाले नुकसान को सीमित करना और मछली के भंडार की रक्षा करना शामिल था। लेकिन मंगलवार को जारी अपने नवीनतम ग्लोबल बायोडायवर्सिटी आउटलुक (जीबीओ) में यूएन ने कहा कि इनमें से एक भी लक्ष्य पूरा नहीं किया गया है।
आईपीबीईएस के कार्यकारी सचिव ऐनी लैरीगुडीरी ने बताया कि हम इस समय एक व्यवस्थित तरीके से मनुष्यों को छोडंकर सभी जीवित प्राणियों को नष्ट कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए आगे आने वाला वर्ष प्रकृति और जलवायु की कूटनीति के लिए महत्वपूर्ण है। मूल्यांकन में पाया गया कि जैव विविधता के किसी भी लक्ष्य को पूरी तरह से पूरा नहीं किया गया है।
कोरोनोवायरस महामारी के कारण इस साल होने वाले दो बड़े जैव विविधता शिखर सम्मेलन की योजनाओं को स्थगित कर दिया है। कॉप 15 वार्ता और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्ज़र्वेशन ऑफ़ नेचर कांग्रेस दोनों जिनमें से अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से था, अब इन्हें 2021 तक के लिए टाल दिया गया है।
कन्वेंशन के कार्यकारी सचिव एलिजाबेथ मारूमा म्रेमा ने बताया कि समाज प्रकृति के महत्व के बारे में जाग रहा है। कोविड ने स्थिति को बहुत स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया है कि वनों की कटाई, जंगलों में मानव अतिक्रमण का हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन पर प्रभाव पड़ता है।
लोगों ने महसूस किया है कि सबसे खतरनाक प्रजाति हम अथवा मनुष्य हैं और उन्हें खुद भूमिका निभाने और उद्योगों में बदलाव के लिए दबाव डालना होगा।
यह आकलन एक दशक से 2030 के दौरान प्रकृति को हो रहे नुकसान को दूर करने के लिए तरीका बताता है, जिसमें हमारी कृषि प्रणाली में व्यापक बदलाव और भोजन की बर्बादी और खपत में कमी शामिल है। संरक्षण में एक प्रमुख घटक स्वदेशी आबादी है जो दुनिया भर में लगभग 80 प्रतिशत जैव विविधता को नियंत्रित करती है।
राइट्स एंड रिसोर्सेज इनिशिएटिव के समन्वयक एंडी व्हाइट ने बताया कि स्वदेशी सशक्तीकरण पर जोर देने वाले 150 से अधिक समूहों का एक वैश्विक गठबंधन है। व्हाइट ने कहा कि उन्हें स्वदेशी भूमि अधिकारों को बढ़ावा देकर संरक्षित किया जाना चाहिए। पृथ्वी और उसके लोगों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणालियों की रक्षा के लिए यह एक आजमाया हुआ समाधान है।
ग्लोबल बायोडायवर्सिटी आउटलुक (जीबीओ) में कहा गया है कि पिछले दशक में प्रकृति की रक्षा की दिशा में कुछ प्रगति हुई है। उदाहरण के लिए, वनों की कटाई की दर पिछले दशक की तुलना में लगभग एक तिहाई कम हो गई है।
2000 के बाद से 20 साल की अवधि में संरक्षित क्षेत्रों में 10 प्रतिशत भूमि से 15 प्रतिशत और तीन प्रतिशत महासागरों से कम से कम सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
लेकिन रिपोर्ट में विस्तृत प्रकृति के खतरों के बीच जीवाश्म ईंधन सब्सिडी का निरंतर प्रचलन बताया गया है। जिसका अनुमान अध्ययनकर्ताओं ने लगभग 3,68,71,25 करोड़ रुपये (500 बिलियन डॉलर) सालाना लगाया है। उन्होंने कहा कि सब्सिडी जैव विविधता के लिए और ज्यादातर मामलों में आर्थिक और सामाजिक रूप से हानिकारक है।
संयुक्त राष्ट्र के आकलन पर प्रतिक्रिया करते हुए, ब्रिटेन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में जीवन विज्ञान विभाग के एंडी पुर्विस ने कहा कि यह चौंकाने वाला है कि दुनिया अपने स्वयं के प्रकृति संरक्षण के सभी 20 लक्ष्यों को अधूरे छोड़ने के लिए तैयार है। इससे न केवल प्रजातियां मर जाएंगी, बल्कि यह भी कि समाज की जरूरतों को पूरा करने वाला पारिस्थितिक तंत्र भी क्षतिग्रस्त हो जाएगा।