वन्य जीव एवं जैव विविधता

मैंग्रोव वनों को हो रहा है नुकसान, बढ़ता समुद्र स्तर और लोग है जिम्मेदार: अध्ययन

Dayanidhi

दुनिया के सबसे मूल्यवान पारिस्थितिक तंत्रों में से मैंग्रोव वन एक है, ये लंबे समय तक रहने और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। एक नए अध्ययन में पाया गया कि मैंग्रोव के जंगल, उनकी जैव विविधता और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली तटीय सुरक्षा पर तीन अलग-अलग खतरों से दबाव पड़ रहा है, जिनमें - समुद्र का स्तर बढ़ना, गीली मिट्टी (सेडीमेंट) का अभाव और इनका सिकुड़ता क्षेत्र शामिल हैं।  

इंगलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के डॉ. बारेंड वान मेनन सहित विशेषज्ञों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने यह अध्ययन किया। इसमें पता चलता है कि तटीय मैंग्रोव के जंगल लगातार कम हो रहे हैं और उनकी विविधता को नुकसान हो रहा है।

नदी में बने बांधों का मैंग्रोव पर सबसे अधिक बुरा प्रभाव पड़ा है, जिसके कारण कीचड़ (सेडीमेंट) की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, जिससे इनका क्षेत्र लगातार सिकुड़ रहा है। इमारतों और समुद्र को रोकने के लिए तटों पर बनाई गई दीवार ने बड़े पैमाने पर उस स्थान पर कब्जा कर लिया है जो मैंग्रोव के जीवित रहने के लिए आवश्यक होती है। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

समुद्र किनारे के मैंग्रोव वन बहुमूल्य है, ये अत्यधिक जैव विविधता वाले पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो तूफानों के खिलाफ समुद्र के किनारे रहने वाले लोगों की रक्षा करते हैं। मैंग्रोव ज्वार के कारण आने वाली बाढ़ का सामना करते हैं और जमीनी क्षेत्र को बढ़ाने के लिए कीचड़ पर मजबूती से पकड़ बनाते हैं। यदि मैंग्रोव वन लंबे समय तक पानी के नीचे रहते है तो वे जीवित नहीं रह सकते हैं, समुद्र के स्तर में वृद्धि और नदियों से बहने वाली मिट्टी की कमी दोनों ही इनके लिए गंभीर खतरा बन जाता है।

नए कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चलता है कि समुद्र के स्तर में वृद्धि से तटीय जंगल घट रहे हैं, खासकर तटीय इलाकों में जहां पानी में कीचड़ घट रहा है। सिमुलेशन में ज्वार और मैंग्रोव के परस्पर प्रभाव, मिट्टी के बहने, पहली बार अलग-अलग मैंग्रोव प्रजातियों को शामिल किया गया है।

एक्सेटर विश्वविद्यालय में वरिष्ठ व्याख्याता और परियोजना के पर्यवेक्षक डॉ. वैन मानेन ने कहा  फैलते शहर, कृषि या बाढ़ सुरक्षा कार्यों के विस्तार से मैंग्रोव क्षेत्र और इनकी विविधता दोनों की हानी होती है।

मॉडल यह भी दर्शाता है कि घनी जड़ों वाले मैंग्रोव वन कीचड़ को अधिक मजबूती से जकड़ सकते है, जिससे मिट्टी बहकर बाहर नहीं निकलती है।

जिस क्षेत्र में मैंग्रोव वनों का फैलाव कम होता है वहां ये तूफानों के खिलाफ तट की रक्षा करने में बहुत कम प्रभावी होते है। डेलावेयर विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. क्रिश्चियन श्वार्ज़ ने कहा मैंग्रोव प्रजातियों के नुकसान से पारिस्थितिक और आर्थिक प्रभाव होंगे, लेकिन इन पारिस्थितिक तंत्रों को बचाने के तरीके उपलब्ध हैं।

किस तरह बचा सकते हैं मैंग्रोव वनों को

समुद्र-स्तर में वृद्धि के बुरे प्रभावों का मुकाबला करने के लिए तटों तक कीचड़ (सेडीमेंट) पहुंचाना या इसे बनाए रखना आवश्यक है। तटों में जहां कीचड़ की आपूर्ति सीमित है, मैंग्रोव वनों और जैव विविधता के नुकसान से बचने के लिए लोगों को तटों को छोड़ कर किसी अन्य जगह बसना चाहिए। ऐसे कारणों का भी पता लगाया जाना चाहिए कि तटों को छोड़कर दूसरी जगह प्रवास को रोकने में किस तरह की बाधाएं आ रहीं हैं, इनको दूर करना बहुत महत्वपूर्ण है।

हाल ही में उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव कवरेज न केवल समुद्री किनारों पर बढ़ी है, बल्कि इनका भूमिगत विस्तार भी हु़आ है। अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि हमारे मॉडल सकारात्मक पहलुओं को दिखाते है इसके अलावा, वे उन स्थितियों पर भी प्रकाश डालते हैं जिनसे मैंग्रोव जंगलों के समुद्र-स्तरीय वृद्धि हो सकती हैं। 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार मैंग्रोव वनों को बहाल करना संभव है लेकिन यह चुनौतीपूर्ण है, संयुक्त राष्ट्र के तंजानिया, मोजाम्बिक, मेडागास्कर, मॉरीशस और सेशेल्स से मैंग्रोव बहाली परियोजनाओं पर संयुक्त राष्ट्र के केसिंग केस अध्ययन के अनुसार मैंग्रोव को बहाल करना संभव है लेकिन यह  चुनौतीपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र ने केन्या के अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि मैंग्रोव के नष्ट हुए जंगलों को वापस बहाल करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।