वन्य जीव एवं जैव विविधता

फसलों के लिए काल, पर सोनचिरैया पक्षी के लिए वरदान है टिड्डियां

Ishan Kukreti

टिड्डी दल का हमला राजस्थान के किसानों के लिए काल बनकर आया है, लेकिन यही टिड्डी जैव विविधता और राजस्थान में पाई जानेवाली पक्षी सोनचिरैया के लिए वरदान है।

टिड्डी में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जिसका सेवन कर स्थानीय पशु-पक्षी अपनी आबादी बढ़ाते हैं। ये इतना पौष्टिक होती है कि वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के एक प्रोजेक्ट के तहत रखे गए सोनचिरैया पक्षियों को टिड्डी ही खिलाई जाती है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के डीन प्रोजेक्ट के प्रमुख वाईवी झाला ने बताया, सोनचिरैया पक्षी के लिए टिड्डी सबसे अहम भोजन है। टिड्डी में पौष्टिक तत्व बहुत ज्यादा होने के कारण सोनचिरैया की प्रजनन क्षमता में काफी वृद्धि हो जाती है। ये पक्षी सलाना 4 से 5 अण्डे देते हैं, लेकिन पिछले साल 12 अण्डे दिए थे।

उन्होंने जोड़ा, पिछले साल हमने ये भी देखा था कि अण्डा हटने के बाद सोनचिरैया ने दोबारा घोंसला बनाया था। दोबारा घोंसला बनाना सीधे तौर पर पौष्टिक आहार के अधिक सेवन से जुड़ा हुआ है।

हालांकि, सोनचिरैया इकलौता पक्षी नहीं है, जो टिड्डी खाती है। गिरगिट, लोमड़ी, रेगिस्तानी बिल्ली, सियार और भेड़ियों के लिए भी ये आहार का काम करता है। 

झाला कहते हैं, “जब भी टिड्डी का हमला होता है, जैसा कि अभी हुआ है, तो झिंगुर और लोमड़ी की संख्या में इजाफा देखा जाता है।” 

प्रोटीन शारीरिक विकास के लिए अहम पौष्टिक तत्व है, जिसे पशु अपने बच्चों को खिलाते हैं। वन्यजीव बायोलॉजिस्ट गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर सुमित डूकिया ने कहा,  “हमने तो ये भी देखा है कि जो पक्षी मांसभक्षी नहीं होते हैं, वे भी अपने नवजातों को टिड्डी खिलाते हैं क्योंकि इससे नवजात का विकास तेजी से होता है।” 

डूकिया जैसलमेर के स्वयंसेवी संगठन इकोलॉजी, रूरल डेवलपमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी फाउंडेशन के मानद वैज्ञानिक सलाहकार हैं। ये संगठन सोनचिरैया पक्षी के संरक्षण के लिए काम करता है। 

झाला हालांकि ये भी कहते हैं कि टिड्डी दल के हमले से जैवविविधता में जो उभार आता है, वो हमले के एक-दो साल बाद दोबारा ध्वस्त हो जाता है। 

वह कहते हैं, “टिड्डी सबकुछ खा जाते हैं और वे इलाका छोड़ते हैं तो वहां कुछ भी नहीं बचता है। इससे पशु-पक्षियों की प्रजनन दर दोबारा घट जाती है और उनकी आबादी में गिरावट जाती है।” 

विज्ञानियों का ये भी कहना है कि टिड्डी दल पर नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का छिड़काव स्थानीय जैवविविधता और सोन चिरैया पक्षी के लिए नुकसानदेह होता है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के फैकल्टी और सोन चिरैया प्रोजेक्ट के सदस्य सुतीर्थ दत्त ने कहा, “कीटनाशकों का छिड़काव खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इससे टिड्डी की मौत हो जाती है और सोनचिरैया पक्षी इसे ही खा सकती है।”

दत्ता आगे कहते हैं, सोनचिरैया पक्षी जिन इलाकों में रहती है, वहां वन विभाग पिछले साल ज्यादा सतर्क था। वन विभाग ने उन इलाकों से कीटनाशक के चलते मरी टिड्डियों को हटा दिया था। कीटनाशक के चलते मरी टिड्डियों को सोनचिरैया खा पाए, इसके लिए एहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं।

वर्ष 1999 के बाद राजस्थान टिड्डी के सबसे भयावह हमले का सामना कर रहा है। पिछले साल मई से टिड्डी दल का हमला शुरु हुआ था और अब तक इससे 5,94,808 हेक्टेयर खेत की फसल बर्बाद हो चुकी है।

राजस्थान के कृषि विभाग के प्लांट प्रोटेक्शन डिविजन के ज्वाइंट डायरेक्टर सुवालाल जाट ने कहा, राजस्थान के 33 जिलों में से अब तक 24 जिले टिड्डी दल की चपेट में चुके हैं। ये अनुमान सरसरी तौर पर पर लगाया गया है। असल नुकसान का आकलन रेवेन्यू विभाग कर रहा है। 

टिड्डी दल ने मूल रूप से श्री गंगानगर (4500 हेक्टेयर), हनुमानगढ़ (9000 हेक्टेयर), नागौर (70 हेक्टेयर) और बीकानेर (830 हेक्टेयर) में  कपास की फसल बर्बाद कर दी है। एक हेक्टेयर में औसतन 20 क्विंटल कपास का उत्पादन होता है और बाजार में एक क्विंटल कपास 6000-7000 रुपए में बिकता है।