वन्य जीव एवं जैव विविधता

जीवों के देखने की क्षमता को विचित्र तरह से प्रभावित कर रहा है प्रकाश प्रदूषण

Lalit Maurya

पिछले कुछ दशकों में तकनीकी विकास के साथ प्रकाश प्रदूषण की समस्या भी बढ़ रही है। समय के साथ कृत्रिम प्रकाश के रंगों और तीव्रता में भी परिवर्तन आया है, जिसका जीवों की दृष्टि पर जटिल और अप्रत्याशित प्रभाव पड़ रहा है। आपने भी अपने आसपास कीट पतंगों को प्रकाश के प्रति आकर्षित होते देखा होगा पर यह प्रकाश सभी जीवों को आकर्षित नहीं करता, जबकि इसके विपरीत यह उनके जीवों को और मुश्किल बना रहा है।

यह कृत्रिम प्रकाश उन जीवों को अधिक प्रभावित कर सकता है, जो व्यवहार के लिए अपनी रात्रि में देख पाने की क्षमता पर भरोसा करते हैं। इन प्रभावों को समझने के लिए एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक शोध किया है, जिनमें उन्होंने पतंगों और उन्हें खाने वाले पक्षियों की दृष्टि पर 20 से अधिक प्रकार की रोशनी के प्रभावों की जांच की है।

शोध में पाया गया कि एलीफैंट हॉकमोथ के देखने की क्षमता कुछ प्रकार की रोशनियों में बढ़ गई थी, जबकि अन्य ने उन्हें बाधित किया गया था। वहीं इनका शिकार करने वाले पक्षियों की दृष्टि में लगभग सभी प्रकार के प्रकाश में सुधार देखा गया था। दुनिया भर में कृत्रिम रात्रि प्रकाश व्यवस्था में तेजी से वृद्धि हुई है, जो पिछले 20 वर्षों में नाटकीय रूप से बदल गई है। अब एम्बर (कम दबाव वाले सोडियम) स्ट्रीटलाइट्स को अब एलईडी जैसी विविध प्रकार की आधुनिक लाइट्स से बदल दिया गया है।

एक्सेटर विश्वविद्यालय और इस शोध से जुड़े शोधकर्ता जूलियन ट्रोसियांको ने बताया कि आधुनिक ब्रॉड-स्पेक्ट्रम लाइट हमें रात में रंगों को अधिक आसानी से देखने में मदद करती है। हालांकि यह कह जानना मुश्किल है कि प्रकाश के यह आधुनिक स्रोत अन्य जीवों के देखने की क्षमता को कैसे प्रभावित करते हैं।

क्यों होता है ऐसा

उनके अनुसार हॉकमोथ की आंखें नीले, हरे और पराबैंगनी रंगों के प्रति संवेदनशील होती हैं, और वो इसका उपयोग मधुमक्खियों की तरह फूलों को खोजने में मदद करने के लिए करते हैं। यहां तक कि वो इसकी मदद से अविश्वसनीय रूप से बहुत कम ऊंजाले जैसे तारों की रौशनी में भी फूलों को ढूंढ सकते हैं।

यदि पतंगों को देखें तो वो भी मधुमखियों के समान ही परागण में मददगार होते हैं। यही वजह है कि कृत्रिम प्रकाश उन्हें कैसे प्रभावित कर रहा है इसे समझने की जरुरत है। उन्होंने जानकारी दी कि इसे समझने के लिए हमने प्राकृतिक और कृत्रिम प्रकाश में जीवों के देखने की क्षमता की मॉडलिंग की थी, जिससे पता चल सके कि उस प्रकाश में पतंगे फूलों को किस तरह ढूंढते हैं और पक्षी इन पतंगों को कैसे देखते हैं।

यदि इंसान को ध्यान में रखकर डिज़ाइन की गई कृत्रिम रोशनी की बात करें तो उसमें नीली और पराबैंगनी रेंज की कमी होती है जो पतंगों को देखने के लिए बहुत जरुरी होती हैं। कई परिस्थितियों में इनकी कमी पतंगों के किसी भी रंग को देखने की क्षमता को बाधित कर देती है। जिससे उनके लिए जंगली फूलों को ढूंढना और परागण करना कठिन हो जाएगा। इसी तरह उनका अपने शिकारियों से बचने के लिए उपयुक्त स्थान खोजना मुश्किल हो रहा है। इसके विपरीत, पक्षियों की दृष्टि कहीं ज्यादा बेहतर होती है, जिसका मतलब है कि यह कृत्रिम प्रकाश उन्हें छुपे हुए पतंगों को ढूंढ़ने में मदद करेगा, जिससे वो सूरज छुपने और उगने से पहले भी अपने शिकार को ढूंढ लेंगें।

अध्ययन में यह भी पता चल है कि फॉस्फोर परिवर्तित एम्बर एलईडी लाइटिंग अक्सर रात्रिचर कीटों के लिए कम हानिकारक होती है। इसके साथ ही प्रकाश के स्रोत और कीटों के बीच दूरी कितने है वो भी मायने करती है साथ ही वो किस रंग की चीजों देख रहे हैं वो भी इसे प्रभावित करता है। सफेद रौशनी जिसमें नीले रंग के घटक होते हैं, वो पतंगों को प्राकृतिक रंगों को देखने में मदद करता है, लेकिन इन प्रकाश स्रोतों को अन्य प्रजातियों के लिए हानिकारक माना जाता है।

देखा जाए तो दुनिया भर में कीटों की संख्या घट रही है। वहीं कीटों की 40 फीसदी से अधिक प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन प्रकाश प्रदूषण विशेष रूप से रात्रिचर कीटों पर असर डाल रहा है, यह बात सही है और इसके पुख्ता प्रमाण हैं। ऐसे में शोधकर्ता

ऐसे में शोधकर्ताओं ने कहा है कि जहां तक मुमकिन हो रात्रि में कृत्रिम प्रकाश के उपयोग और उसकी तीव्रता को सीमित करने के प्रयास किए जाने चाहिए । जिससे उनपर पड़ने वाले प्रभावों को कम किया जा सके। यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर द्वारा किया गया यह शोध जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है।