वन्य जीव एवं जैव विविधता

आबादी में स्थिरता लाने के लिए कूनो में कम से कम 50 चीतों की है जरूरत: विशेषज्ञ

Himanshu Nitnaware, Lalit Maurya

अब तक, मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में लाए गए आठ चीतों की मौत हो चुकी है। एक विशेषज्ञ ने सरकार को बताया है कि चीतों को दोबारा बसाने की यह परियोजना बेहद जटिल है। उनके अनुसार भारत में इन जंगली बिल्लियों की एक स्थिर आबादी बनाने के लिए कम से कम 50 चीतों की आवश्यकता होगी।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने बहाली की इस परियोजना की देखरेख और इस मामले में सलाह देने के लिए एक चीता परियोजना संचालन समिति का गठन किया था। 17 जुलाई, 2023 को प्रसिद्ध चीता विशेषज्ञ विंसेंट वैन डेर मेरवे ने इस बारे में अपने अवलोकन और परिप्रेक्ष्य साझा किए थे।

विशेषज्ञ ने पैनल को समझाया कि, "भारत में चीतों की आबादी स्थिर होने से पहले हमें कम से कम 50 संस्थापक चीतों की आवश्यकता होगी। उसके बाद, चीतों के अस्तित्व और आनुवंशिक विविधता को सुनिश्चित करने के लिए, हमें दक्षिणी अफ्रीकी और भारतीय आबादी के बीच चीतों का आदान-प्रदान करना होगा।“

उनके अनुसार दक्षिण अफ्रीका में, इनकी बहाली के लिए किए गए पहले दस प्रयासों में से नौ विफल रहे थे। वहां जंगली चीतों के परिचय और उनके प्रबंधन के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को स्थापित करने के इन प्रारंभिक प्रयासों के दौरान 200 से अधिक जंगली चीतों की आवश्यकता पड़ी थी।

गौरतलब है कि द मेटापॉपुलेशन इनिशिएटिव के प्रबंधक और प्रसिद्ध चीता विशेषज्ञ विंसेंट वैन डेर मेरवे ने भारत में चीतों को फिर से लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उनके अनुसार बहाली के पिछले अनुभवों से सीखे गए कठिन सबक संरक्षण के प्रयासों को आकार देने में मददगार रहे हैं। इनमें मेटापॉपुलेशन का प्रबंधन करना और बड़े मांसाहारियों के क्षेत्रों की रक्षा के लिए बाड़ लगाना शामिल है। मेरवे का कहना है कि, "इन दृष्टिकोणों ने दुनिया में एकमात्र बढ़ती जंगली चीतों की आबादी के विकास में योगदान दिया है।“

हालांकि इन प्रयासों के बावजूद, हम अभी भी गलतियां करते हैं, जैसा कि वायु और अग्नि को एक ही बाड़े के भीतर दक्ष तक अस्थाई पहुंच दिए जाने के मामले में देखा गया था। उनका कहना है कि अब तक पांच वयस्क चीते और तीन शावक खो चुके हैं और साल के खत्म होने से पहले और भी जंगली बिल्लियां खो सकते हैं। मेरवे ने पैनल को बताया, "इन्हें छोड़े जाने के बाद पहले वर्ष में संस्थापक आबादी के 50 फीसदी नुकसान की आशंका रहती है। यह नुकसान अगले वर्ष भी जारी रह सकता है।“

उनके अनुसार, ऐसे शावक जिनके जीवित रहने की अच्छी संभावना है और जो वयस्क होने में सक्षम हो, उनके 2024 तक पैदा होने की उम्मीद है। उन्होंने आगे बताया कि "जंगली चीते साल भर प्रजनन कर सकते हैं, लेकिन ऐसे विशिष्ट समय होते हैं जब प्रसव अधिक आम होता है। शुरूआती बच्चे आम तौर पर गर्मियों में देर से या शरद ऋतु की शुरूआत में पैदा होते हैं। यदि ये बच्चे जीवित नहीं रहते, तो मादाएं सर्दियों के अंत में या बसंत की शुरूआत में दूसरे बच्चों को जन्म देती हैं।“

वन्यजीव विशेषज्ञ ने बताया कि भारत में मादा चीतों को अभी भी अलग-अलग मौसमों के अनुरूप ढलना होगा और अपने पसंदीदा प्रसव अंतराल को स्थापित करने के लिए समय की आवश्यकता होगी। शुरूआती वर्षों में, शावकों की मृत्यु दर अधिक होने की आशंका है क्योंकि भारत में अधिकांश मादाएं पहली बार मां बनेंगी और उन्हें शावकों को पालने का अनुभव नहीं होगा।

हालांकि सकारात्मक पक्ष यह है कि तेंदुओं के साथ प्रतिस्पर्धा, जाल या स्थिरता सम्बन्धी जटिलताओं के कारण किसी भी चीते की मौत नहीं हुई है, जो एक महत्वपूर्ण संकेत है। विशेषज्ञ ने यह भी उल्लेख किया है कि कुछ चीतों की मृत्यु उनके द्वारा पहने गए रेडियो कॉलर के कारण हुए बैक्टीरिया (सेप्टिसीमिया) और उसके चलते रक्त में ही विषाक्तता के कारण हुई थी। जो मौजूदा नम परिस्थितियों में उनकी गर्दन के चारों ओर पहने जाने वाले रेडियो कॉलर का परिणाम थी।

उन्होंने समिति को बताया कि, "कुनो में कॉलर से जुड़े हालिया मुद्दे कुछ ऐसे हैं जो हमने अफ्रीका में नहीं देखे हैं। ऐसे में अधिक मौतों से बचने के लिए नई और रचनात्मक प्रबंधन रणनीतियों की आवश्यकता होगी।" अपनी अंतिम टिप्पणी में, मेरवे ने इस बात पर जोर दिया है कि प्रोजेक्ट चीता की सफलता के लिए अफ्रीका से अतिरिक्त आनुवंशिक और जनसांख्यिकीय समर्थन महत्वपूर्ण है।