वन्य जीव एवं जैव विविधता

जंगली जानवरों से संघर्ष के मुद्दे पर सहयोग करें केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक सरकारें: केरल उच्च न्यायालय

उच्च न्यायालय का कहना है कि राज्य की सीमाएं केवल इंसानी आबादी के लिए हैं, न कि उन जानवरों के लिए जो इन तीनों राज्यों में मानव बस्तियों से सटे जंगलों में स्वतंत्र रूप से घूमते हैं

Susan Chacko, Lalit Maurya

केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य के सीमावर्ती वन क्षेत्रों के आसपास रहने वाले लोगों को जंगली जानवरों के डर के साए में नहीं रहने दिया जा सकता। बता दें कि जंगली जानवरों के हमले से इन लोगों पर जान-माल का खतरा मंडराता रहता है।

ऐसे में कोर्ट ने केरल के सामान्य प्रशासन विभाग से दस दिनों के भीतर 23 फरवरी, 2024 तक इस बारे में योजना प्रस्तुत करने को कहा है। इस योजना में वायनाड जिले में जंगली जानवरों को मानव बस्तियों में प्रवेश करने से रोकने के लिए क्या अल्पकालिक उपाय किए जाएंगें इसकी रूपरेखा होनी चाहिए।

12 फरवरी, 2024 को दिए अपने आदेश में केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि विशेषज्ञों की समिति द्वारा प्रस्तावित दीर्घकालिक उपायों के साथ-साथ इस अल्पकालिक योजना को एक महीने के भीतर क्रियान्वित किया जाना चाहिए। वहीं दीर्घकालिक उपायों को धीरे-धीरे चरणों में लागू किया जाएगा।

केरल उच्च न्यायालय ने केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक सरकारों से आपस में सहयोग करने को भी कहा है। कोर्ट का कहना है कि राज्य सरकारों को इंसानों और जानवरों के बीच होते संघर्षों से निपटने और एक समझौते पर पहुंचने के लिए आपस में चर्चा करने की जरूरत है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि राज्य की सीमाएं केवल इंसानी आबादी के लिए हैं, न कि उन जानवरों के लिए जो इन तीनों राज्यों में मानव बस्तियों से सटे जंगलों में स्वतंत्र रूप से घूमते हैं।

उच्च न्यायालय ने क्षेत्र में जंगली जानवरों से संघर्ष की स्थिति को रोकने के लिए बुनियादी ढांचे की स्थापना में राज्य सरकार की धीमी रफ्तार पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।

गौरतलब है कि 29 मार्च, 2023 को, इंसानों और हाथी से जुड़े संघर्ष को संबोधित करते हुए, अदालत ने इस मामले में सलाह देने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति (सीओई) का गठन किया था। हालांकि, अदालत को जानकारी दी गई है कि समिति द्वारा नियमित रूप से बैठकें करने के बावजूद, सीओई को राज्य सरकारों से आवश्यक समर्थन प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। समिति का कहना है कि इस मामले में उन्हें राज्य से आवश्यक सहायता नहीं मिल रही है।

बता दें कि इंसानों और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष का यह मुद्दा नया नहीं है। जैसे-जैसे जंगलों की सीमाएं सिकुड़ रहीं हैं यह जीव अपने प्राकृतिक आवास से निकलकर इंसानी बस्तियों में पहुंच रहे हैं। हाल ही में ऐसी ही कई घटनाएं दिल्ली में देखने को मिली थी जब तेंदुओं को इंसानी बस्तियों के पास देखा गया था। इसी तरह असम, उत्तराखंड सहित देश के कई राज्यों से भी इस तरह की खबरे सामने आई थी। 

क्या बिना संघर्ष के साथ-साथ रह सकते हैं इंसान और वन्यजीव

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 2014-2015 से 2018-2019 के बीच 500 से अधिक हाथी मारे गए हैं, इनमें से अधिकांश की मौत इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष के कारण हुई है। वहीं दूसरी तरफ हाथियों के साथ संघर्ष के चलते इस दौरान 2,361 लोगों मौतें हुई हैं।

8 जुलाई, 2021 को वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष दुनिया की कई प्रजातियों के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है।

रिपोर्ट का कहना है कि इस तरह के संघर्ष न केवल जंगली जीवों को प्रभावित करते हैं साथ ही इनका प्रभाव उन इंसानों पर भी पड़ता है जो इन जंगली जीवों के साथ अपने आवास को साझा करते हैं। इसकी वजह से न केवल उन लोगों को चोट लगने का जोखिम बना रहता है साथ ही उनकी जीविका पर भी  इसका असर पड़ता है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि इंसानों और वन्यजीव के बीच होते संघर्ष से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में इंसानी आबादी के साथ-साथ बाघों, हाथियों, शेरों और गैंडों के अलावा अन्य प्रजातियों की भी अच्छी खासी आबादी बसती है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में हाथी के साथ होता संघर्ष इस समस्या का एक उदाहरण है। जो वनों के होते विनाश, आक्रामक प्रजातियों और जलवायु परिवर्तन के चलते अब अपने अपने मूल आवासों के केवल तीन से चार फीसदी हिस्से में ही रह रहे हैं। इसकी वजह से उन्हें संरक्षित क्षेत्रों के बाहर अपने भोजन की तलाश में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे उनकी इंसानों के साथ संघर्ष की आशंका बढ़ जाती है।

रिपोर्ट का यह भी कहना है कि इंसानों और वन्यजीवों के बीच होते संघर्षों को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं है। लेकिन इसे प्रबंधित करने के लिए सुनियोजित, एकीकृत दृष्टिकोण संघर्ष को कम कर सकते हैं और लोगों और जानवरों के बीच सह-अस्तित्व में मददगार साबित हो सकते हैं।