वन्य जीव एवं जैव विविधता

43 वर्षों में अतिक्रमण ने लील ली कर्नाटक में 204,229 एकड़ भूमि, केवल 130 चार्जशीट की गई दायर: आरटीआई

आरटीआई से पता चला है कि 1980 से अब तक कर्नाटक में 204,229 एकड़ भूमि अतिक्रमण के कारण नष्ट हो गई है, जबकि 104,065 एकड़ भूमि कर्नाटक द्वारा अवैध रूप से दी गई है

Himanshu Nitnaware, Lalit Maurya

26 जून, 2023 को दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) में दावा किया है कि 1980 से लेकर पिछले 43 वर्षों में कर्नाटक में होते अतिक्रमण के चलते हजारों एकड़ जंगल नष्ट हो गए हैं। वहीं सरकारी अधिकारियों की ओर से इस मामले में उचित कार्रवाई तक नहीं की गई है। गौरतलब है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय में दायर इस याचिका में जो दावे किए हैं, वो सूचना के अधिकार यानी आरटीआई से प्राप्त जानकारी पर आधारित हैं।

बता दें कि यह आरटीआई गिरीश आचार द्वारा दायर की गई थी। इसमें उन्होंने सरकार से कर्नाटक वन अधिनियम 1963 की प्रासंगिक धाराओं के तहत 1980 से लेकर अब तक वन अतिक्रमण से जुड़े मामलों की संख्या और उनपर की गई कार्रवाई के बारे में जानकारी मांगी थी। साथ ही इस आरटीआई में वन अतिक्रमण के खिलाफ अधिकार क्षेत्र के तहत 29 रेंजों में दायर प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) और आरोप पत्रों की संख्या के बारे में भी पूछा गया था। हालांकि इस सवाल पर केवल 12 रेंज वन अधिकारियों (आरएफओ) से प्रतिक्रिया मिली है।

उनसे प्राप्त जानकारी से पता चला है कि कर्नाटक वन विभाग ने जंगलों पर होते अतिक्रमण के मामले में अब तक 2,212 एफआईआर और 130 आरोपपत्र दायर किए गए हैं। इतना ही नहीं आरटीआई में यह भी सामने आया है कि कर्नाटक में पिछले 43 वर्षों में करीब 204,229.762 एकड़ वन क्षेत्र अतिक्रमण के कारण नष्ट हो गया है।

वहीं अन्य 104,065.96 एकड़ जमीन कर्नाटक द्वारा अवैध रूप से दी गई है। इस बारे में आरटीआई दायर करने वाले गिरीश आचार का कहना है कि सरकार द्वारा जो 892,618 एकड़ वन भूमि अधिसूचित की गई है, उसमें से करीब 308,295 एकड़ जमीन गुम हो चुकी है।

इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील वीरेंद्र पाटिल का कहना है कि वन अतिक्रमण एक असंज्ञेय अपराध है और वन अधिकारियों को कर्नाटक वन अधिनियम की धाराओं के अनुसार उचित कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है। उनका कहना है कि हालांकि इसके बावजूद वन विभाग ने असंज्ञेय रिपोर्ट (एनसीआर) का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा है। उनके मुताबिक, "1980 के बाद से, सभी आरएफओ ने अपने कार्यकाल में केवल पांच फीसदी आरोपपत्र दायर किए हैं। वहीं उन्होंने वन उद्देश्यों के अलावा भी वन भूमि के उपयोग की अनुमति दी है।"

ऐसे में याचिका में कोर्ट से अपील की गई है कि राज्य के सभी आरएफओ को निर्धारित अवधि के भीतर आरोप पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया जाए। साथ ही याचिका में संबंधित अधिकारियों से उन वन अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का भी अनुरोध किया है जो कानून द्वारा तय अवधि के भीतर आरोप पत्र दाखिल नहीं कर सके हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे हैं।

इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2016 में जारी निर्देशों के अनुसार एफआईआर को ऑनलाइन अपलोड करने की भी मांग की गई है। साथ ही वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के उल्लंघन के खिलाफ मामले दर्ज करने की अपील की गई है। याचिकाकर्ता ने पहले से लगाए गए पौधों को बचाने की भी गुहार लगाई है, जिससे अनावश्यक वृक्षारोपण में करदाताओं के होने वाली पैसों की अनावश्यक बर्बादी को रोका जा सके।

गौरतलब है कि एक कार्यकर्ता पेपे गौड़ा ने हाल ही में 30 जून, 2023 को कर्णाटक के मुख्यमंत्री और राज्य के अन्य संबंधित मंत्रियों को एक लिखित अनुरोध भेजा था। अपने अनुरोध में, उन्होंने तीन जून 2023 को भारत सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना के आधार पर कार्रवाई करने की मांग की थी।

उनका कहना है कि, "पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने आधिकारिक राजपत्र में एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत उप वन संरक्षक और अन्य संबंधित अधिकारियों को उन व्यक्तियों या संगठनों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए अधिकृत किया गया है, जो कानून का उल्लंघन करने के दोषी पाए जाते हैं।" उन्होंने समझाया कि इस उपाय का उद्देश्य वन संरक्षण अधिनियम के कार्यान्वयन के संबंध में कानूनी कार्यवाही में आने वाली किसी भी अनिश्चितता को दूर करना है।

गौड़ा के मुताबिक इस अधिसूचना के अनुसार वन संबंधी मुद्दों के बारे में शिकायतें उचित माध्यम से केंद्र सरकार को भेजी जानी चाहिए। साथ ही उन्हें 45 दिनों के भीतर अदालत में पेश किया जाना चाहिए।

उनका कहना है कि वन क्षेत्रों में सभी पेड़ों को अतिक्रमणकारियों से बचाया जाना चाहिए। बड़े पेड़ पर्यावरण को विभिन्न तरीकों से फायदा पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पेड़ प्रचुर मात्रा में पारिस्थितिकी तंत्र सम्बन्धी सेवाएं प्रदान करते हैं, जैसे कि वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को सोखना, जानवरों के लिए उपयुक्त आवास प्रदान करना।

साथ ही यह आर्थिक रूप से भी फायदेमंद हैं, क्योंकि इनके बायोमास का व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है। ऐसे में कार्यकर्ता ने राज्य और वन विभाग के अधिकारियों से जंगलों की रक्षा और किसी भी अन्य नुकसान को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है।