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स्वामित्व योजना: झारखंड में ड्रोन सर्वे का क्यों विरोध कर रहे हैं आदिवासी

स्वामित्व योजना के तहत ग्रामीणों को प्रॉपर्टी कार्ड दिए जाने हैं, जिसके लिए इन दिनों ड्रोन सर्वे कराया जा रहा है, लेकिन आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं

Md. Asghar khan
स्वामित्व योजना के तहत झारखंड के गांव में किए जा रहे ड्रोन सर्वे के खिलाफ आदिवासियों की एकजुटता बढ़ती जा रही है। खूंटी जिले के तोरपा और कर्रा प्रखंड में ग्रामसभाओं ने बैठक कर निर्णय लिया है कि वे अपने गांव के भीतर ड्रोन सर्वे नहीं होने देंगे।
 
सात फरवरी 2022 को तोरपा मुख्यालय के समक्ष हुई सभा में 32 ग्रामसभा के प्रधान शामिल हुए। सभा में शामिल उड़िकेल (प्रखंड तोरपा) के ग्राम प्रधान 40 वर्षीय अमृत कुंगकड़ी ने कहा, “हमारी ग्रामसभा ने तीन फरवरी को बैठक कर फैसला लिया है कि अपने गांव में ड्रोन से सर्वे नहीं होने देंगे। हमारे जैसे 77 गांव हैं, जिनके ग्राम प्रधान ने भी यही फैसला लिया है।”
 
भारत सरकार की प्रास्तवित स्वामित्व योजना के तहत देश के सभी राज्यों के 6,62,162 लाख गांवों का ड्रोन तकनीक के जरिए सर्वेक्षण कर ग्रामीणों को व्यक्तिगत अधिकार अभिलेख यानी प्रॉपटी कार्ड दिये जाएंगे। सरकार का कहना है कि इस कार्ड के माध्यम से ग्रामीणों को कई लाभ मिलेंगे और गांवों का विकास होगा।

सरकार का मानना है कि गांव के लोगों के पास पूर्व में जमीन के ठोस कागजात नहीं होते हैं। यह कार्ड उनका ठोस अभिलेख अधिकार होगा। इसके अलावा कानूनी सहायता, अतिक्रमण की समस्या से निजात, बैंक लोन, आदि आदि योजना का लाभ लोग ले सकेंगे।
 
लेकिन अमृत कुंगकड़ी कहते हैं कि उनके लोगों को विकास चाहिए, लेकिन उनकी परंपरा और संस्कृति की जो सीमा है, उसका उल्लंघन करके उन्हें कोई विकास मंजूर नहीं है।
कुंगकड़ी कहते हैं, “हम लोगों को जो लाभ चाहिए था, वो लाभ तो नहीं मिल पा रहा है। जैसे हमारे यहां बेरोजगारी है, भुखमरी है। स्वास्थ्य सेवाएं नहीं है। शिक्षा की कुव्यवस्था है।  कहा जा रहा है कि सिर्फ मकान का सर्वे किया जा रहा है, लेकिन नोटिस में कहीं भी मकान के सर्वे की बात नहीं है। हम लोगों को स्वामित्व 1932 के खतियान से मिला हुआ है। हमारी मांग है कि पुरानी परंपरा ही रहने दी जाए।”
 
प्रदर्शन में शामिल हुए तोरपा ब्लॉक के ही एक अन्य ग्राम प्रधान रेजन तोपनो कहते हैं, “1932 की जो खतियान है, उसमें हमारे दादा-परदादा के नाम दर्ज हैं। उसमें सारी बातें अंकित है। जिसमें सार्वजनिक सामुदायिक खेत भी आता है। हमको लगता है सर्वे होगा तो वो चला जाएगा। हमारे पास तो दस्तावेज हैं ही। अब सरकार जो संपत्ति कार्ड देगी, वो सही होगा या नहीं होगा, ये हमलोगों को कैसे पता।”
 
62 वर्षीय रेजन कहते हैं कि सर्वे के बारे में उनके लोगों को पूरी जानकारी नहीं दी जा रही है, जिसकी वजह कर ग्रामीण प्रदर्शन कर रहे हैं। रेजन आगे कहते हैं, "वे लोग (सरकार) कह रहे हैं कि मकान का सर्वे होगा। फिर संपत्ति कार्ड बनेगा। संपत्ति में केवल मकान ही आता है। क्या संपत्ति कार्ड में हमारे खेत, सामुदायिक जमीन, पेड़-पौधे, बैल बकरी भी शामिल होंगे। पहले पूरे गांव वालों को बैठा कर पूरी बात समझानी चाहिए। तो हो सकता है ग्रामीण मान जाए, लेकिन अधिकारी पूरी जानकारी ही नहीं दे रहे हैं।”
रेजन, तोरपा प्रखंड के मरचा पंचायत में आने वाले कर्रा गांव के प्रधान हैं। इन्हें डर है इनकी सामुदायिक जमीन चली जाएगी, जिसपर उनके  सामुदाय के लोग कई पीढ़ियों से खेतीबाड़ी करते आ रहे हैं। इसलिए कहते हैं कि वे लोग बिना ग्रामसभा के सहमति के कोई भी सर्वे नहीं होने देंगे।
 
हालांकि खूंटी के एसडीओ रियाज सैयद कहते हैं कि लोगों को भ्रमित किया जा रहा है। सर्वे के बारे में पूरी जानकारी लोगों को दी जा रही है। कर्रा प्रखंड में सर्वे का काम पूरा हो चुका है। तोरपा के 45 गांव में भी हो चुका है। ग्रामसभा के सहमति से ही काम किया जा रहा है। कर्रा में ग्रासभा में लोगों को योजना के बारे में जानकारी दी गई। तो वे लोग मान गए। तोरपा में भी ग्रामसभा के जरिए जानकारी दी जाएगी। 
 
सामुदायिक और रैयती जमीन का सर्वे के सवाल पर एसडीओ कहते हैं कि ऐसा कोई सर्वे नहीं होगा। ना ही सीएनटी-एसपीटी एक्ट का उल्लंघन होगा और ना पेसा कानून का। 1932 के खतियान में भी कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। सामुदायिक जमीन पर गांव वालों का अधिकार पहले की तरह रहेंगे।
 
एसडीओ कहते हैं, सार्वजनिक स्थानों और जगहों को चिन्हित किया जाएगा। उनकी गणना करनी है। उस गणना को रजिस्टर में मेनटेन करना है। रजिस्टर पंचायत में रखा जाएगा।  इस गणना से यह पता चलेगा कि गांव में क्या-क्या सरकारी संपत्ति है। कितनी सार्वजनिक जमीन है। ताकि इसका इस्तेमाल करके भविष्य में ग्राम पंचायत का डेवलपमेंट प्लान बनाया जा सके।
 
लेकिन आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच की संयोजक और एक्टिविस्ट दायामानी बारला कहती हैं कि झारखंड देश के बाकी राज्यों से अलग प्रदेश है। यहां आदिवासियों की अपनी भाषा, संस्कृति, परंपराएं हैं जो  जल, जंगल, जमीन के सह अस्तित्व पर अधारित है। इस राज्य के आदिवासियों का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक ताकत इसी जल जंगल जमीन के साथ जुड़ी है। उनके अपने अलग संवैधानिक अधिकार हैं। सीएनटी-एसपीटी एक्ट, पेसा कानून और मुंडारी खूंककट्टी। सरकार जो स्वामित्व योजना लागू करने जा रही है। हमारी सारी पंरपराएं, कानून, स्वतंत्रता, समानता को खारिज कर देगी। हमारी मांग है कि राज्य सरकार हर हालत में इसको रोके।
 
दायामनी बारला इस योजना के खिलाफ निरंतर आवाज उठा रही हैं। इस सिलसिले में वो खूंटी के उपायुक्त और संबंधित झारखंड पंचायती राज्य मंत्री आलमगीर आलम से दो बार मिलकर विरोध में ज्ञापन सौंप चुकी हैं।
 
गौरतलब है कि पॉयलट प्रोजेक्ट के तहत चार साल की अवधि में स्वामित्व योजना को पूरा किया जाएगा। 2020-21 के पहले चरण में छह राज्यों के 763 गांवों के एक लाख लोगों को प्रॉपर्टी कार्ड दिये जा चुके हैं। दूसरे चरण (2021-22) जिन 20 राज्यों में ड्रोन सर्वे से गांव की पैमाइश होनी है। उसमें झारखंड के खूंटी जिले 756 गांव में से 725 गांव शामिल हैं। इसके तहत ही खूंटी के कर्रा और तोरपा प्रखंड में ड्रोन सर्वेक्षण की प्रक्रिया जारी है, जिसका ग्रामीणों के द्वारा विरोध हो रहा है।
 
हालांकि बाकि दो चरणों (2022-23, 2023-24) में 18-18 राज्यों में ड्रोन सर्वे किया जाएगा, जिसमें झारखंड के क्रमशः 12,000 और 20,000 गांव में शामिल हैं। झारखंड सरकार के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 32620 गांव हैं. लेकिन स्वामित्व योजना की वेबसाइट के मुताबिक 32712 गांव में ड्रोन सर्वे किया जाना है।