वन्य जीव एवं जैव विविधता

झारखंड: आदिवासी क्यों नहीं लगवा रहे टीका?

झारखंड के आदिवासी जिलों में टीकाकरण की दर काफी कम है

Md. Asghar khan

झारखंड के आदिवासियों में कोरोना के टीकाकरण को लेकर जो भय-भ्रांतिया है उसका अंदाजा वाटर मैन के नाम से प्रसिद्ध पद्मश्री सिमोन उरांव से हुई बातचीत से लगाया जा सकता है। 87 साल के सिमोन उरांव रांची से करीबन 40 किलोमीटर दूर बेड़ो बजार में रहते हैं। उन्हें एक सप्ताह पूर्व बुखार, सिर दर्द, खांसी थी। 25 दिन तक वो इससे परेशान रहें। इसी तरह का लक्षण तीन दिन तक उनकी पत्नी को भी रहा। लेकिन इन दोनों ने कोई  दवा इलाज नहीं कराया, बल्कि अपनी देशी दवाओं से इलाज किया। उन्होंने जांच तक नहीं कराई। जांच और टीकाकरण के सवाल पर सिमोन उरांव का अपना जवाब है, “हम दवा, सुई नहीं लेते हैं। 90 साल के होने जा रहे हैं, ये सब कभी नहीं लिया।”

उन्हीं के साथ रह रही 22 वर्ष की उनकी पोती एंजेला कहती हैं कि टीके को लेकर गांव के लोग डरे हुए हैं। गांववासियों में चर्चा है कि टीके लेने के बाद लोग बीमार पड़ रहे हैं और कई लोग मर चुके हैं। इसलिए हमने भी अब तक टीका नहीं लगाया। इस तरह की भ्रांतियां आदिवासी समुदाय में गैर-आदिवासियों से ज्यादा देखने को मिल रही है। राज्य के 13 आदिवासी बहुल जिलों में जो टीकाकरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है उसके अनुसार टीकाकरण का प्रतिशत काफी कम है।

आदिवासियों के मसलों पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सिराज दत्ता कहते हैं, “आदिवासियों के बीच कोरोना टीकाकरण को लेकर काफी भ्रांतियां हैं। लोग इसे लेने से डर रहे हैं।अगर आदिवासियों को विश्वास में लेकर प्रयास किया जाए तो इस डर को दूर किया जा सकता है। टीका लगने के बाद कुछ लोगों के बीमार होने और कुछ लोगों की मौत तक हो चुकी है, लेकिन अगर सरकार पहले ही प्रचारित कर दे कि किन बीमारियों से ग्रस्त लोगों को टीका नहीं लगाना है या स्वास्थ्य कर्मियों को टीका लगाने से पहले पूरी जांच की जाती तो इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकता था। उन्होंने कहा कि मैंने अभीतक कहीं देखा कि राज्य सरकार ने टीकाकरण से पहले कोई गाइडलाइन से संबंधित गांव में होर्डिंग, पम्पलेट बांटा हो। जिससे गांव वालों को पता चले कि किस किस बिमारी के रहने पर टीका नहीं लेना है। ऐसा करने पर भी भ्रांतियां को दूर करने में मदद मिलेगी।

सिराज दत्ता आगे कहते हैं कि टीका लगने के बाद जब आदिवासियों को बुखार आया तो उन्हें सरकार की ओर से इलाज तक मुहैया नहीं कराया गया। जबकि सरकार को इसकी जिम्मेवारी लेनी चाहिए। वह कहते हैं कि केरल जैसा राज्य जहां सरकार पूरी जिम्मेवारी ले रही है, आदिवासियों के बीच टीकाकरण को लेकर कोई भय नहीं है। 

राज्य के पूर्व मंत्री और विधायक बंधु तिर्की भी कहते हैं कि आदिवासियों के बीच टीकाकरण को लेकर व्यापक जागरूकता कार्यकर्म चलाने की जरूरत है।

उधर, झारखंड स्टेट वैक्सीनेशन नोडल ऑफिसर ऐ दोद्दे का कहना है, “भ्रांतियों को दूर करने के लिए काफी प्रयास किया जा रहा है। गांव के प्रमुख, स्थानीय  नेता, धर्मगुरूओं को जोड़कर गांव में लोगों को जागरूक किया जा रहा है। हर गांव में चार पांच लोगों को हमलोग पहले वैक्सीन देंगे। फिर इन्हीं लोगों से ग्रामीणों के बीच प्रचार प्रसार कराएंगे। कहेंगे, ‘देखिए इन्होंने ने वैक्सीन ले लिया, इन्हें कुछ नहीं हुआ। आप भी वैक्सीन लें आपको भी कुछ नहीं होगा।’ ऐसा करके भी लोगों का भय दूर  किया जाएगा। धीरे धीरे लोगों को समझ आ जाएगा।”