सरायकेला में हाथी के मरने के बाद उसकी छानबीन करते अधिकारी और चिकित्सक 
वन्य जीव एवं जैव विविधता

झारखंडः तड़प-तड़प कर मरते हाथी, आंकड़े और वजह जानकर डर जाएंगे

मानव जनित दबाव, आवासीय क्षरण, आधारभूत संरचना, जंगलों में खनन की होड़ के बीच झारखंड में मानव-हाथी संघर्ष (एचईसी) एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरा है। हाथियों की मौत का अंतहीन सिलसिला कई सवाल खड़ा करता रहा है। अध्ययन और शोध में ऊभरे तथ्य, आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस संघर्ष का संकट और बढ़ सकता है

Niraj Sinha

मानव जनित दबाव, आवासीय क्षरण, आधारभूत संरचना, जंगलों में खनन की होड़ के बीच झारखंड में मानव-हाथी संघर्ष एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरा है। इंसानों की जान जाने के साथ हाथियों की मौत का अंतहीन सिलसिला जारी है। मृत्यु के आंकड़े, वजह, तथ्य चिंताजनक और डराने वाले हैं। हाथियों की मृत्यु दर गंभीर स्थिति तक पहुंच गई है, जबकि भारतीय हाथी को झारखंड का राजकीय पशु माना गया है। 

 हालिया, राज्य के कोल्हान रिजन के अलग-अलग फॉरेस्ट डिविजन में हाथियों की एक के बाद एक होती मौत की दर्दनाक घटनाएं कई सवालों के साथ हैरान करने वाली सबित हो रही हैं। सारंडा के जंगलों में सुरक्षाबलों के द्वारा माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे सघन अभियान में बाधा पहुंचाने के मकसद से माओवादियों द्वारा बिछाए गए कथित आईईडी विस्फोट की चपेट में आने से कम से कम तीन हाथियों की मौत से संरक्षण पर संकट आया है। विशेषज्ञ, संरक्षण और जैव विविधता के लिहाज से हाथियों मौतों को गंभीर बताते हुए इसके दूरगामी तथा प्रतिकूल प्रभाव से इनकार नहीं करते।

इस साल हाथियों की मौत की घटनाएं, वजहें, संरक्षण और सुरक्षा को लेकर की जा रही कार्रवाई, कार्य योजना पर तफ्सील से चर्चा से पहले भारतीय वन्य जीव संस्थान और भारत सरकार  के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय  के प्रोजेक्ट एलिफेंट (हाथी परियोजना) के द्वारा शोध और अध्ययन प्रासंगिक है, जिसमें ये तथ्य उभर कर सामने आए हैं कि साल 2000 से 2023 तक झारखंड में 225 हाथियों की मौत हुई है। इनमें 152 मौतें मानवीय कारणों से और 73 मौतें प्राकृतिक कारणों से हुई है। इसी अवधि में हाथियों के हमले में 1340 लोगों की मृत्यु हुई है। और 400 लोग घायल हुए हैं। जाहिर तौर पर यह संघर्ष सामाजिक-आर्थिक चुनौती के रूप में भी उभरा है।

यह अध्ययन वर्ष 2000 से 2023 तक मानव-हाथी संघर्ष (एचइसी) का विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें राज्य के 22 वन प्रभागों (फॉरेस्ट डिविजन) से एकत्रित आंकड़ों को शामिल किया गया है। इस अध्ययन में भूमि उपयोग और वन विखंडन के रुझानों की भी जांच की गई है, जिसमें फॉरेस्ट कवर में 14.97% परिवर्तन और बढ़ते पर्यावास विखंडन को संघर्ष के प्रमुख कारकों के रूप में उजागर किया गया है। संघर्ष के केंद्र रांची, पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला में केंद्रित हैं, जहां हाथियों के पारंपरिक गलियारों में मानव विस्तार ने टकराव को तेज कर दिया है। कृषि क्षेत्रों, मानव बस्तियों और खंडित वन क्षेत्रों के निकट स्थित क्षेत्रों में हाथियों की मृत्यु दर अधिक है।

 मर गया तो मर गया..

 वन्य प्राणियों के जीवन, संरक्षण, प्रबंधन पर गहरी समझ रखने वाले राज्य के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक लाल रत्नाकर सिंह कहते हैं, “हाथियों के पर्यावास निरंतर डिस्टर्ब हो रहे हैं। साल दर साल  एरिया और जंगलों के घनत्व कम हो रहे। हाथी तेजी से मानव-प्रधान भूभागों में भटकने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इसलिए संघर्ष बढ़ रहे हैं। इस संघर्ष को केवल संख्या और आंकड़ों में देखा जा रहा है। अगले बीस सालों में यह और भयावह होने वाला है। तत्काल इसका कोई समाधान भी नहीं है।”

 आखिर संरक्षण को लेकर जरूरी क्या हैं, इस सवाल पर रत्नाकर सिंह डाउन टू अर्थ से कहते हैं, “देखिए, एक रिवाज घर करता जा रहा है कि हाथी मर गया तो मर गया, क्या फर्क पड़ता है. जैव विविधता और वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिहाज से यह खतरनाक है। हाथियों के भोजन और मिजाज को जानेंगे तो पता चलेगा कि वे कतई नहीं चाहते जंगल खत्म हो। जहर और बिजली के झटके से होने वाली मौतों को  कड़ाई से रोका जाना चाहिए। दोषियों के खिलाफ ‘वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट’ में केस हो। ट्रेनों से जो लगातार मौतें हो रही हैं, उसके लिए तमाम निर्देश का सख्ती से फॉलो हो। हाथियों के प्रक्षेत्र वाले कुओं को सुरक्षित बनाने के अलावा एलीफेंट रेस्कयू सेंटर, वेटरनरी यूनिट को सुदृढ़ करने की योजना को तत्काल मूर्त रूप दिए जाएं।  बिसरा रिपोर्ट मिलने में महीनों की देरी भी संरक्षण की दिशा में बड़ी अचड़न बनती है।”

गौरतलब है कि साल 2023 के नवंबर महीने में पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला अनुमंडल अंतर्गत मुसाबनी के बेनियासाई गांव में बिजली की करंट लगने से पांच हाथियों की मौत हो  गई थी।  इनमें दो हाथियों के बच्चे थे। जबकि इस साल के सितंबर महीने में रामगढ़ फॉरेस्ट डिविजन के परसाडीह जंगल में स्थित एक गहरे कुएं में एक हाथी और उसके बच्चे के गिर जाने के बाद घंटों चले रेस्क्यू अभियान में बचाया जा सका। कुएं में पानी कम होने से दोनों की जान बच गई।  इससे पहले जनवरी महीने में बोकारो जिले में गोमिया प्रखंड के महुआटांड़ थाना क्षेत्र के गोपो गांव में एक जंगली हाथी के कुएं में गिर जाने से मौत हो गई थी।

भारतीय वन्यजीव संस्थान ने देशभर में हाथियों की गतिविधियों के आधार पर एलिफेंट कॉरिडोर्स ऑफ इंडिया 2023 रिपोर्ट तैयार की है। इसके तहत झारखंड के भीतर और दूसरे राज्यों से जुड़े 17 इलिफेंट कॉरिडोर चिह्नित किए गए हैं। अब ये गलियारे जहां-जहां खंडित हैं, उन्हें अवरोध मुक्त बनाने के प्रयास किए जाएंगे।

 मई 2024 में, झारखंड वन विभाग ने  ‘हमार हाथी’ नामक एक मोबाइल-आधारित एप बनाया, जिसका इस्तेमाल राज्य में हाथी गलियारों के पास रहने वाले लोगों को हाथियों की आवाजाही के बारे में जानकारी देने के लिए किया जाता है.

 मृत्यु दर गंभीर स्तर तक

फ्रंटियर्स इन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित भारतीय वन्य जीव संस्थान की रिपोर्ट इसकी भी तस्दीक करती है कि झारखंड में हाथियों की मृत्यु दर गंभीर स्तर तक पहुँच गई है, जो मुख्य रूप से मानवीय दबाव और आवासीय क्षरण के कारण है, जिसने उन्हें मानव-प्रभावित क्षेत्रों की ओर जाने के लिए मजबूर किया है।  इन 23 वर्षों की अवधि में राज्य के कुल 122 गांवों में हाथियों की मृत्यु की सूचना  एकत्रित की गई है।

जबकि गांव स्तर पर किए गए विश्लेषण से पता चला कि ऐसे क्षेत्र जहां सड़क घनत्व अधिक है और वन क्षेत्र कम है, वहाँ हाथियों की मृत्यु दर अधिक है। इन क्षेत्रों में रेलवे ट्रैक के विस्तार और बिजली लाइनों के खराब रखरखाव ने हाथियों की मृत्यु में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जो बुनियादी ढांचे में सुधार और सुरक्षा उपायों की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है। साथ ही इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई व्यावहारिक उपाय लागू करने की जरूरतों पर भी जोर दिया गया है।

रिसर्च के मुताबिक इन अवधि में 60 हाथियों की मौतें प्राकृतिक कारणों से- 13 क्षेत्रीय लड़ाई के अलावा 152 मौतें मानव जनित कारणों से हुई, जिनमें 13 आकस्मिक मौतें, 33 मानवजनित तनाव, 67 बिजली का झटका, 1 लैंडमाइन विस्फोट, 4 शिकार, 11 जहर, 1 प्रतिशोध में हत्या, 17 ट्रेन दुर्घटना और 5 वाहन दुर्घटना से (कुल 225) शामिल है।

 इस साल मौत की कुछ प्रमुख घटनाएं

 झारखंड का भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 79,714 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 29.5 प्रतिशत क्षेत्र वनों से आच्छादित है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की 2017 की रिपोर्ट  के अनुसार, झारखंड में हाथियों की आबादी लगभग 679 थी, जबकि उनका प्राकृतिक आवास क्षेत्र घटकर लगभग 3,800 वर्ग किलोमीटर रह गया है।

 मानव-हाथी संघर्ष को लेकर वर्ष 2023 के बाद के हालात पर गौर करें, तो वर्ष 2024-25 में 15 हाथियों की मौत दर्ज की गई है। यह झारखंड सरकार के वन विभाग का आंकड़ा है। इनमें दो हाथियों की मौत ट्रेन व सड़क दुघर्टना और दो की मौत बिजली के झटके से हुई। जबकि इस साल (2025) कम से कम 16 हाथियों की मौत हुई है। दूसरी तरफ पिछले चार वर्षों (2021-2025 मार्च) तक में हाथियों ने 397 लोगों की जान ली है।

 राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक परितोष उपाध्याय डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि सारंडा के जंगल में आईइडी विस्फोट से हाथियों की होती क्षति को लेकर पुलिस विभाग को पत्र भेजकर चिंता से वाकिफ कराया गया है। इनके अलावा मानव-हाथी संघर्ष टालने, वन्य प्राणियों के संरक्षण को लेकर समय-समय पर समीक्षा के साथ सतर्कता बरतने और मुकम्मल इलाज के प्रयास किए जाते रहे हैं। 

 1.       14 दिसंबरः सरायकेला डिविजन में नीमडीह थाना के चातरामा गांव में एक हाथी की मौत।

2.       07 दिसंबरः चाईबासा के पपरागरा इलाके में घायलावस्था में एक हाथी ( नर काफ) की मौत।

3.       25 नवंबरः प. सिंहभूम के कुदाहातू (बाइसाही) टोला के पास नर हाथी मृत अवस्था में मिला।

4.       14 नवंबरः पश्चिम सिंहभूम में जुगीनंदा के स्कूलसाई टोला में दो मादा हाथियों के शव मिले।

5.       12 अक्टूबरः  सारंडा जंगल में कथित आईईडी विस्फोट से घायल हथिनी की मौत।

6.       5 अक्टूबरः लातेहार में बालूमाथ के बघौताटोला में हाथी का बच्चा मृत मिला।

7.       18 अगस्तः सरायकेला के कुटाम टोला चोगाटांड़ गांव में एक हथिनी की मौत।

8.       10 जुलाईः चाईबासा रेंज के सेरंगसिया (पालीबासा टोला) में नर हाथी की मौत

9.       06 जुलाई सारंडा के जंगल में विस्फोट से घायल हाथी की इलाज के दौरान मौत।

10.   25 जूनः सरायकेला में नीमडीह के हेवन गांव में एक हाथी मृत मिला।

11.   05 जूनः सरायकेला के नीमडीह में आमबेड़ा के पास खेत में पड़ा मिला एक हाथी का शव।

12.   02 मई  चाईबासा रेंज के सेरंगसिया (मुंडासाई) में आठ साल के एक हाथी की मौत।

हैरान करने वाले, बिसरा का इंतजार

 कोल्हान की क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक स्मिता पंकज डाउन टू अर्थ से कहती हैं, “माइग्रेशन का पैटर्न हाथियों की जीवनशैली से जुड़ा है।  हालिया, कई घटनाएं हमारे लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रहीं, क्योंकि हाथियों की जान बचाने और मुकम्मल इलाज की तमाम कोशिशें की गईं। पोस्टमार्टम में पता चला है कि 7 दिसंबर को छह-आठ महीने के काफ (नर) की मौत हर्ट फेल होने से हुई। जबकि 14 नवंबर को दो मादा हाथियों की मौत हाइपरवोल्मिया के लक्षण मिले हैं। मौत के कई मामलों में बिसरा रिपोर्ट का इंतजार है। फिलहाल पोचिंग और जहर के मामले सामने नहीं आए हैं। दांत भी इंटैक्ट मिले हैं। संघर्ष टालने के लिए सतर्कता और जागकरूकता पर लगातार जोर दिए जा रहे हैं। क्विक रिएक्शन टीम (क्यूआरटी) और वन रक्षक क्षेत्र में हाथियों के झुंड की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं।”

सांरडा के डीएफओ अपूर्व सिन्हा डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “सांरडा के जंगल बेहद दुर्गम और कठिन हैं। विस्फोट में घायल हाथी कई दिनों बाद विजिबल एरिया में दिखे। विस्फोट से तीन हाथी बुरी तरह जख्मी हुए थे। काफी मात्रा में रक्त बह चुका था। जख्म गंभीर थे और रेस्कयू भी कठिन। हाथियों की जान बचाने खातिर गुजरात से वनतारा की रेस्कयू टीम को भी बुलाया जाता रहा है। तीन मौतों के पोस्टमार्टम में विस्फोट से गहरे जख्म के लक्षण मिले हैं। चौथे का इलाज के दौरान हड्डियां काटने पड़े थे। चारों को बचाने का आखिरी तक प्रयास किया गया।”

इन हालात में कार्य योजना के सवाल पर वन अधिकारी  सिन्हा कहते हैं, “हमलोगों ने वेटरनरी यूनिट को सुदृढ़ किया है। मोबाइल वेटरनरी यूनिट को भी बेहतर बनाने में लगे हैं। दूसरा जो महत्वपूर्ण है- वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट प्लान में ‘एलीफेंट रेस्कयू सेंटर’ की स्थापना स्वीकृत है। फंड उपलब्ध होते ही इसे स्थापित कर लिया जाएगा।”