वन्य जीव एवं जैव विविधता

भारत में गधों की तेजी से घटती संख्या के पीछे चीन का हाथ तो नहीं?

गणना के मुताबिक, देश में गधों की कुल आबादी 2012 में 3.2 लाख थी, जो 2019 में घटकर 1.2 लाख रह गई

Ishan Kukreti


पशुओं के कल्याण के लिए काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन, ब्रुक हॉस्पिटल फॉर एनिमल्स की भारतीय इकाई का मानना है कि देश में पिछले एक दशक में गधों की तेजी से घटती संख्या का संबंध चीन के बाजार में गधे के चमड़े की बढ़ती मांग से हो सकता है।

2019 में की गई पशुधन गणना के मुताबिक, देश में गधों की कुल आबादी 2012 में 3.2 लाख थी, जो 2019 में घटकर 1.2 लाख रह गई। जबकि 2007 में देश में गधों की तादाद 4.4 लाख थी। जहां तक घोड़े की प्रजाति के सभी जानवरों यानी घोड़ों, टटटुओं, खच्चरों और गधों का सवाल है, इनकी कुल आबादी 2012 से 51.9 फीसद कम हुई है। इनमें सबसे ज्यादा 61 फीसदी की गिरावट गधों की आबादी में आई है।

ब्रुक हॉस्पिटल के बाह्य मामले और संचार प्रमुख जोत प्रकाश कौर के मुताबिक, ‘ चीन में गधों के चमड़े से इजिओ नामक जिलेटिन बनाया जाता है, जो वहां की एक पारंपरिक दवाई है। इसलिए इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि हमारे देश में गधों की तेजी से घटती तादाद का संबंध चीन में इजिओ की बढ़ती मांग हो सकता है। इजिओ की बढ़ती मांग ने पूरी दुनिया में पहले से ही गधों की तादाद पर बुरा असर डाल रखा है। ‘ कौर ने यह बात 23 फरवरी को भारत में घोड़े की प्रजातियों पर एक कार्यशाला में हिस्सा लेने के दौरान कही। उन्होंने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखकर देश में गधों की घटती तादाद की जांच होनी चाहिए।

संगठन के मुताबिक, गधों की घटती तादाद का दूसरा पहलू यह है कि दूरदराज के शहरों और ग्रामीण इलाकों में यह कई लोगों की जीविका चलाने में मदद करता है। ईंट के भटठों, निर्माण, पर्यटन, खेती, सामान और लोगों की आवाजाही जैसे तमाम क्षेत्रो में गधे काम में लाए जाते हैं। ये अपने मालिकों के लिए पैसा कमाने में मददगार साबित होते हैं, जिससे कि उनके माालिक अपने बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर सकें और कुछ पैसा बचत के तौर पर जमा कर सकें। कौर के मुताबिक, इस लिहाज से गधों की कम होती आबादी गंभीर चिंता का मामला है।

दूसरी ओर आंध्र प्रदेश में गधे के मांस की खपत बढ़ने की रिपोर्ट भी आई है, जहां इसकी वजह यह बताई जा रही है कि गधे के मांस से पौरुषशक्ति बढ़ती है। आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले के काकीनाडा स्थित एक गैरसरकारी संगठन, एनीमल रेस्क्यू आर्गनाइजेशन के सचिव गोपाल आर सुराबाथुला ने मीडिया को बताया, ‘चूंकि आंध्र प्रदेश में गधे लगभग गुम हो चुके हैं, इसलिए मांस के लिए यहां राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक से गधे लाए जाते हैं। ’

गौरतलब है कि भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के खाद्य सुरक्षा और मानक 2011 के मुताबिक, गधे का मांस ‘एनीमल फूड’ के दायरे में नहीं आता है, जिसकी वजह से इसे जान से मारना और इसके मांस को खाना गैरकानूनी है।