वन्य जीव एवं जैव विविधता

बिजली की लाइनों से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को बचाने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन का निर्देश

समिति को अपना कार्य पूरा करने और 31 जुलाई, 2024 या उससे पहले केंद्र सरकार के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है

Susan Chacko

सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेषज्ञ समिति के गठन का निर्देश दिया है, जो भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा राजस्थान और गुजरात में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) और लेसर फ्लोरिकन के लिए चिन्हित क्षेत्र में बिजली की ओवरहेड व भूमिगत लाइनों की व्यवहार्यता और सीमा निर्धारण का काम करेगी। 

समिति को जीआईबी के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में अपनाए जाने वाले उपायों की पहचान करने के लिए कहा गया है। एक अन्य कार्य जो विशेषज्ञ समिति को सौंपा गया है, वह भविष्य में लंबी बिजली लाइनों को बिछाने के मामले में सतत विकास के संदर्भ में उपयुक्त विकल्पों की पहचान करना हे, जो बिजली लाइनों की व्यवस्था के साथ-साथ जीआईबी के संरक्षण और सुरक्षा को संतुलित करेगा।

इस तरीके से "ऊर्जा के नवीकरणीय (रिन्यूएबल) स्रोतों को विकसित करने के लिए भारत द्वारा की गई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सुविधा होगी"।

संभावित क्षेत्र के रूप में वर्णित क्षेत्र के संबंध में 19 अप्रैल, 2021 के आदेश में जो निषेधाज्ञा लगाई गई है, उसे तदनुसार इस शर्त के अधीन शिथिल किया जाएगा कि कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति प्राथमिकता और दोनों को कवर करते हुए उपयुक्त पैरामीटर निर्धारित कर सकती है। यदि समिति मौजूदा और भविष्य की बिजली लाइनों पर बर्ड डायवर्टर स्थापित करने की प्रभावकारिता और उपयुक्तता पर विचार करने सहित उचित समझती है, तो प्राथमिकता और संभावित क्षेत्रों दोनों के संबंध में कोई भी अतिरिक्त उपाय लागू करने के लिए स्वतंत्र होगी।

यदि समिति ऐसा करना उचित और आवश्यक समझती है, तो वह अदालत को जीआईबी की सुरक्षा बढ़ाने के लिए आवश्यक किसी भी अन्य उपाय की सिफारिश करने के लिए स्वतंत्र होगी, जिसमें प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के अलावा उपयुक्त क्षेत्रों को शामिल करना भी शामिल है। 

विशेषज्ञ समिति को अपना कार्य पूरा करने और 31 जुलाई, 2024 को या उससे पहले केंद्र सरकार के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है।
19 अप्रैल, 2021 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने बड़े पैमाने पर क्षेत्रों में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना पर प्रतिबंध लगा दिया। कोर्ट ने उच्च वोल्टेज भूमिगत बिजली लाइनें बिछाने की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए एक समिति भी नियुक्त की थी।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि उन सभी मामलों में जहां "प्राथमिकता और संभावित जीआईबी क्षेत्रों में आज की तारीख में" ओवरहेड बिजली लाइनें मौजूद हैं, ओवरहेड केबलों को भूमिगत बिजली लाइनों में बदलने पर विचार होने तक डायवर्टर स्थापित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। इसके अलावा, यह निर्देश दिया गया कि सभी मामलों में, जहां ओवरहेड केबलों को भूमिगत बिजली लाइनों में परिवर्तित करना संभव हो, उन्हें एक वर्ष की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा।

भारत सरकार ने एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया था, जहां प्रस्तुत किया गया था कि उच्च वोल्टेज या कम वोल्टेज लाइनों को भूमिगत करने के लिए अदालत के निर्देश को लागू करना व्यावहारिक रूप से असंभव है। अदालत को सूचित किया गया, "केंद्र सरकार की भारत के कार्बन पदचिह्न को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबद्धता है और सौर प्रतिष्ठानों सहित ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का सहारा इन प्रतिबद्धताओं के कार्यान्वयन की कुंजी प्रदान करता है।"

इसके अलावा, केंद्र जीआईबी की लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए व्यापक कदम उठा रहा है। केंद्र ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि अदालत द्वारा लगाए गए प्रकृति के व्यापक निर्देश को लागू करना संभव नहीं है, लेकिन इससे जीआईबी के संरक्षण के उद्देश्य को हासिल नहीं किया जा सकेगा।

सुनवाई के दौरान, कई रिपोर्टों का संदर्भ दिया गया था जो भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा तैयार की गई थीं, जिसमें प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में वर्णित 13,663 वर्ग किलोमीटर की पहचान की गई थी। संभावित क्षेत्रों के रूप में 18,680 वर्ग किलोमीटर और 6654 वर्ग कि.मी. अतिरिक्त महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में पहचान की गई। ये क्षेत्र राजस्थान और गुजरात राज्यों के बीच हैं।

मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि 88,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र में ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना के संबंध में सामान्य निषेध लगाने का कोई पर्याप्त आधार नहीं है।