वन्य जीव एवं जैव विविधता

अप्रैल में उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाओं में तीन गुणा वृद्धि

15 फरवरी से 1 अप्रैल तक राज्य के वनों में कुल 154 अग्नि घटनाएं दर्ज हुई थीं। जबकि अप्रैल के इन 12 दिनों में ही 292 अग्नि घटनाएं हो चुकी हैं

Varsha Singh

अप्रैल में सामान्य से 6-7 डिग्री उपर चल रहा तापमान उत्तराखंड के वनों में आग की तीव्रता को बढ़ा रहा है। वन विभाग के लिए स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। कई जगह आग बुझाने के लिए पुलिस के साथ राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ) की मदद ली गई है।

11 और 12 अप्रैल को 48 घंटे में उत्तराखंड वन विभाग ने 133 जगहों पर वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की। जिसमें 248.4 हेक्टेअर वन क्षेत्र आग की चपेट में आए। इस साल 11 अप्रैल को एक दिन में सर्वाधिक 88 जगहों पर आग लगने की सूचना मिली।

राज्य में 15 फरवरी से अब तक आग लगने की कुल 446 घटनाएं दर्ज की गई हैं। आग का दायरा 593.19 हेक्टेअर रहा। जिसका आर्थिक आकलन 17,97,078 रुपए में किया गया है।  

आग लगने की ज्यादातर घटनाएं रिजर्व फॉरेस्ट में हुई हैं। 11 अप्रैल को गढ़वाल और कुमाऊं के कुल 122.1 हेक्टेअर रिजर्व फॉरेस्ट और 20.8 हेक्टेअर सिविल/वन पंचायत वनों में आग लगी। 12 अप्रैल को 61.45 हे. रिजर्व फॉरेस्ट और 14.05 हे. सिविल/ वन पंचायत के जंगलों में आग लगी।

मार्च की तुलना में अप्रैल में आग लगने की घटनाएं तकरीबन 3 गुना बढ़ गई हैं। 15 फरवरी से 1 अप्रैल तक राज्य के वनों में कुल 154 अग्नि घटनाएं दर्ज हुई थीं। जबकि अप्रैल के इन 12 दिनों में ही 292 अग्नि घटनाएं हुई हैं। 15 फरवरी से 1 अप्रैल तक 206.81 हे. वन आग की चपेट में आए। जबकि 1 अप्रैल से अब तक 386.38 हे. आग की चपेट में आए हैं।

जंगल की आग से रिहायशी इलाके भी खतरे की जद में आ गए हैं। उत्तरकाशी में शहर से सटे जंगल धधक रहे हैं। स्थानीय संस्था जाड़ी के संस्थापक द्वारिका प्रसाद सेमवाल वनों की आग को वन विभाग की असफलता करार देते हैं। वनाग्नि के लिहाज से संवेदनशील वन क्षेत्र चिन्हित होने के बावजूद हर साल वहां आग लग जाती है तो ये ज़िम्मेदारी किसकी है? वनों की सुरक्षा के लिए सालभर क्या प्रयास किये जाते हैं? यहां वरुणावत पर्वत के जंगल की आग के रिहायशी इलाके और पेट्रोल पंप तक पहुंचने का खतरा आ गया था। फायर ब्रिगेड की गाड़ियां तैनात करनी पड़ी थीं। वरुणावत के नज़दीक ही ज़िला मुख्यालय भी आग की लपटों से घिरा हुआ था। तो ये वन विभाग की कार्यशैली पर ही प्रश्न चिन्ह है

वे जंगल की निगरानी के लिए कैमरे लगाए जाने की मांग कर रहे हैं। ताकि जंगल की आग की हकीकत सामने आ सके। आग लगने के लिए विभाग लोगों को ज़िम्मेदार ठहराता है। छोटी-छोटी दुकानें की सुरक्षा के लिए कैमरे इस्तेमाल होते हैं। ऐसे ही ऑक्सीजन का भंडार कहे जाने वाले बहुमूल्य वनों की निगरानी के लिए भी कैमरे लगाए जा सकते हैं। इन कैमरों की मॉनीटरिंग वन विभाग को न देकर ज़िला प्रशासन को देनी चाहिए

 तैयारी

राज्य के मुख्य वन संरक्षक (वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन) निशांत वर्मा का कहना है कि तापमान बढ़ने और बारिश न होने के चलते वनों में आग की घटनाएं सामान्य से अधिक बढ़ गई हैं। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया समेत फायर क्रू स्टेशन और अन्य माध्यमों से आग लगने की जो भी सूचना मिल रही है उस पर हम तत्काल कार्रवाई कर रहे हैं। 

वन्यजीवों पर असर

जैव-विविधता के लिए वनाग्नि घातक मानी जाती है। मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा बताते हैं कि आग का असर वन्यजीवों के वास स्थल पर किस तरह पड़ता है और आग लगने के बाद वन्यजीव उस वास स्थल को किस तरह इस्तेमाल करते हैं इसके लिए एक अध्ययन शुरू किया गया है। हमने वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को एक शॉर्ट रिसर्च स्टडी दी है। जिसमें ये देखा जाएगा कि जंगल की आग का वन्यजीवों के हैबिटेट पर किस तरह असर डालती है। इसके लिए एक तय वन क्षेत्र में ये देखा जाएगा कि वहां कौन-कौन से वन्यजीव रहते हैं। आग लगने के बाद  उस वासस्थल के इस्तेमाल में कमी आती है। ताकि हम उस वनक्षेत्र के सुधार के प्रयास कर सकें

मौसम का असर

राज्य में इस साल मार्च में कोई बारिश नहीं हुई। अप्रैल में अब तक तकरीबन यही स्थिति रही। देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह ने बताया कि पिछले मार्च के दूसरे हफ्ते के बाद से राज्य में तापमान सामान्य से 4-7 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। इसे मैदानी क्षेत्रों में तापमान 38-40 डिग्री और पहाड़ी जिलों में 28-30 डिग्री तक पहुंच गया। उन्होंने वनाग्नि के लिहाज से पहाड़ों में जंगल से सटे गांवों में सतर्क रहने की हिदायत दी। साथ ही गांव के चारों तरफ अग्नि सुरक्षा पट्टी बनाने की सलाह दी। ताकि जंगल की आग गांव तक न पहुंच पाए।

मौसम विभाग के मुताबिक 13 अप्रैल को पर्वतीय जिलों में ऊंचाई वाले इलाकों में हलकी बारिश के आसार हैं। 15-16 अप्रैल को उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ के ऊंचाई वाले इलाकों में भी छिटपुट बारिश हो सकती है। इसके बाद तापमान फिर बढ़ने का अंदेशा है। तापमान बढ़ने का मतलब है कि वनों की आग और वन्यजीवों की मुश्किलें बढ़ना।