वन्य जीव एवं जैव विविधता

भारत में फल-फूल रहा पैंगोलिन का अवैध व्यापार, पांच वर्षों में 1,200 से अधिक की तस्करी

भारत में इस चींटीखोर की दो प्रजातियां पाई जाती हैं। यह दोनों ही प्रजातियां वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित हैं

Lalit Maurya

इसमें कोई शक नहीं कि वन्यजीवों का होता अवैध व्यापार बड़े पैमाने पर भारत में भी फैल चुका है। इस अवैध शिकार से पैंगोलिन जैसे जीव भी नहीं बचे हैं। इसका सबूत है कि पिछले पांच वर्षों में 2018 से 2022 के बीच कम से कम 1,203 पैंगोलिन की अवैध तस्करी का पता चला है।

यह जानकारी वैश्विक स्तर पर वन्यजीवों के संरक्षण के लिए काम कर रहे एनजीओ ट्रैफिक और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा जारी नई रिपोर्ट “इंडियाज पैंगोलिन बरीड इन इलीगल वाइल्डलाइफ ट्रेड” में सामने आई है।

रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले पांच वर्षों में देश भर में इन जीवों के अवैध व्यापार और उन्हें जब्त किए जाने की कुल 342 घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं में 199 जीवित पैंगोलिन और 880 किलोग्राम से ज्यादा डेरिवेटिव मिले हैं, जिनमें इनके शल्क, त्वचा, पंजे, मांस, हड्डियां और शरीर के अन्य अंग शामिल थे।

वहीं रिपोर्ट से पता चला है कि बरामदी की करीब 50 फीसदी घटनाओं में जीवित पैंगोलिन पाए गए थे, जबकि 40 फीसदी घटनाओं में शल्क (स्केल) की बरामदगी हुई थी। पता चला है कि पैंगोलिन की अवैध तस्करी की यह घटनाएं देश के 24 राज्यों और एक केन्द्रशसित प्रदेश में दर्ज की गई थी। इन घटनाओं में ओडिशा सबसे ऊपर था। जहां इनकी बरमदगी की कुल 74 घटनाओं में 154 पैंगोलिन या उनके शरीर के हिस्से जब्त किए गए थे।

गौरतलब है कि पैंगोलिन एक ऐसा जीव है जिसके पूरे शरीर पर शल्क (स्केल) होते हैं। आमतौर पर चींटीखोर के रूप में जाना जाने वाला यह जीव वज्रशल्क के नाम से भी जाना जाता है। यह पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी किए जाने वाले जंगली स्तनधारियों में से है।

इनके शरीर पर केराटिन के बने शल्क (स्केल) जैसी संरचना होती है, जिससे वो अन्य प्राणियों से अपनी रक्षा करता है। देखा जाए तो पैंगोलिन दुनिया भर में ऐसे शल्कों वाला अकेला ज्ञात स्तनधारी जीव है। दुनिया भर में इसकी आठ प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से चार अफ्रीका में और चार एशिया में मिलती हैं। वहीं यदि भारत की बात करें तो वो पैंगोलिन की दो प्रजातियों का घर है। यहां भारतीय (मैनिस क्रैसिकाउडाटा) और चीनी पैंगोलिन पाए जाते हैं, जिसका वैज्ञानिक नाम मैनिस पेन्टाडैक्टाएला है। बता दें कि यह शर्मीले जीव करीब छह करोड़ वर्षों से पृथ्वी पर पाए जाते है। जो चींटी और दीमक जैसे कीड़ों को खाकर गुजारा करते हैं।

यदि इनकी तस्करी की बात करें तो विशेष रूप से इनका शिकार चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के अंतरराष्ट्रीय बाजारों के लिए किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी भारी कीमत होने के कारण इनकी भारत में भी बड़े पैमाने पर तस्करी की जाती है।

भारत में इनका ज्यादातर शिकार पारंपरिक दवाओं के लिए किया जाता है। माना जाता है कि इनके स्केल विभिन्न बीमारियों के इलाज में फायदेमंद होते हैं। साथ ही कथित तौर औषधीय गुणों के लिए इनके मांस का भी सेवन किया जाता है।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के मुताबिक, दुनियाभर में जितने वन्य जीवों की अवैध तस्करी होती हैं उनमें अकेले 20 फीसदी की हिस्सेदारी पैंगोलिन की है। यही वजह की इन्हें संकटग्रस्त प्रजातियों की सूचि में शामिल किया गया है। जिनकी आबादी तेजी से कम हो रही है।

भारत में हो रहे पैंगोलिन के अवैध व्यापार पर ट्रैफिक द्वारा 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2009 से 2017 के बीच देश में करीब 6,000 पैंगोलिन का अवैध शिकार किया गया था।

प्रतिबंध होने के बावजूद भी बदस्तूर जारी है अवैध व्यापार

यही वजह है कि 2017 से ही पैंगोलिन की सभी प्रजातियों को कन्वेशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इन्डेन्जर्ड स्पिशीज के परिशिष्ट I में सूचीबद्ध किया गया है, जो उनके वाणिज्यिक व्यापार पर रोक लगाता है।

वहीं भारत पाई जाने वाली इसकी दोनों प्रजातियां को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में सूचीबद्ध किया गया है। मतलब की इनका शिकार, व्यापार या उनके शरीर के अंगों और डेरिवेटिव का किसी भी अन्य रूप में उपयोग पूरी तरह प्रतिबंध है। इसके बावजूद इनके अवैध व्यापार की यह घटनाएं बड़ी चिंता का विषय हैं।

देखा जाए तो जिस तरह से पैंगोलिन की बरामदगी की यह घटनाएं भारत में सामने आई हैं वो स्पष्ट तौर पर दर्शाती हैं की इन शर्मीले जीवों के अस्तित्व पर संकट गहराता जा रहा है। इनकी आबादी और वितरण के बारे में सीमित जानकारी उपलब्ध है। इनका बढ़ता अवैध व्यापार पहले ही भारत सहित दुनिया भर में इनके आवासों में प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है।

रिपोर्ट की मानें तो प्रजातियों का ऑनलाइन फैलता अवैध व्यापार एक गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे में यह जरूरी है कि इनकी बढ़ती मांग को सीमित करने के वैश्विक प्रयास किए जाएं। साथ ही भारत सहित दुनिया भर में इनके संरक्षण के लिए कानूनों को सख्त करने के साथ उनका गंभीरता से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।