वन्य जीव एवं जैव विविधता

भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजी सीर मछली की दो और प्रजातियां, जानें क्या है इनकी खासियत

Lalit Maurya

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) के वैज्ञानिकों ने भारतीय जल क्षेत्र में सीर मछली की दो और प्रजातियों की खोज की है। इनमें से एक प्रजाति तो ऐसी है जिसके बारे में पहले कोई वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध नहीं थी। 

इस मछली को अरेबियन स्पैरो सीर फिश (स्कोम्बेरोमोरस एविरोस्ट्रस) नाम दिया गया है। इसके साथ ही वैज्ञानिक रसेल्स स्पॉटेड सीर फिश (स्कोम्बरोमोरस लेपर्डस) को बहाल करने में भी कामयाब रहे हैं, जिसके बारे में पहले लोगों का मत था कि वो स्पॉटेड सीयर फिश नामक एक अन्य प्रजाति से मिलती-जुलती है। लेकिन अब यह साबित हो गया है कि रसेल्स स्पॉटेड सीर फिश भी एक अलग प्रजाति है।

आईसीएआर के मुताबिक यह खोज समुद्री मत्स्य पालन के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता है, क्योंकि सीर मछलियां व्यवसायिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण समझी जाती हैं।

टैक्सोनोमिस्ट के एक दल ने यह खोज सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) के प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर ई एम अब्दुस्समद के नेतृत्व में की है। इन वैज्ञानिकों के मुताबिक स्पॉटेड सीर फिश (स्कोम्बरोमोरस गुट्टाटस) जिसे पहले एक ही प्रजाति माना जाता था वास्तव में वो मछलियों की तीन अलग-अलग प्रजातियां हैं। इनमें से एक नई खोजी गई प्रजाति अरेबियन स्पैरो सीर फिश भी शामिल है।

वहीं दूसरी रसेल्स स्पॉटेड सीर फिश है, जिसकी आबादी को दोबारा बहाल किया गया है। वहीं तीसरी मौजूदा स्पॉटेड सीर फिश प्रजाति है। इस खोज के साथ ही भारतीय जल क्षेत्र में मौजूद सीर मछलियों की कुल प्रजातियां चार से बढ़कर छह हो गई हैं, जिनकी देश में सबसे अधिक मांग है।

कैसे दूसरी सीर प्रजातियों से अलग हैं यह मछलियां

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों को भारतीय तट रेखा के किनारे पाई जाने वाली स्पॉटेड सीर फिश के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। उन्हें पता चला है इन मछलियों में काफी विभिन्नता मौजूद है, इनका व्यवहार भी अलग-अलग है। इस शोध में मछलियों के आकार, संरचना और उनके जीनों में मौजूद विभिन्नता पर भी प्रकाश डाला गया है।

बता दें कि इस नई प्रजाति को उसकी पक्षी के चोंच जैसी थूथन के कारण वैज्ञानिकों ने अरेबियन स्पैरो सीर फिश नाम दिया है। यह मछलियां आमतौर पर मैंगलोर के उत्तर में अरब सागर के तट के आसपास निवास करती हैं। वहीं उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर पता चला है कि इनका वितरण अरब की खाड़ी तक फैला हुआ है। वहीं दो अन्य प्रजातियां अंडमान सागर और चीन सागर सहित नागपट्टिनम के पास उत्तर में बंगाल की खाड़ी के तट पर पाई जाती हैं।

रिसर्च से पता चला है कि यह तीनों सीर प्रजातियां अपने समकक्षों से आकार में छोटी होती हैं और ज्यादातर किनारों के पास रहती हैं। उनका बेहतर स्वाद और बाजार में अच्छी कीमत मिलने के कारण यह मछलियां व्यवसायिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण होती हैं।

इस खोज के बारे में डॉक्टर अब्दुस्समद का कहना है कि, "यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जो समुद्री जैवविविधता के बारे में और अधिक जानने में हमारी मदद कर सकती है।" उनके मुताबिक यह देश में मत्स्य उद्योग के लिए वास्तव में फायदेमंद साबित हो सकती है। उनका आगे कहना है कि "यह उपलब्धि समुद्री जीवन और मत्स्य पालन को लेकर किए जा रहे अनुसंधान में एक मील का पत्थर है, जो भारतीय तटों के आसपास समृद्ध जैवविविधता को उजागर करती है।"

बता दें की इससे  पहले वैज्ञानिकों ने बाराकुडा, चब मैकेरल और क्वीनफिश की एक-एक नई प्रजाति की खोज की थी।