वन्य जीव एवं जैव विविधता

आसान नहीं है मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकना

उत्तराखंड में जगह-जगह जंगली जानवरों के हमले बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड वन विभाग कुछ नहीं कर पा रहा है

Varsha Singh

मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकना उत्तराखंड वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती है। पूरा राज्य जंगली जानवरों के हमले से प्रभावित है। गढ़वाल में गुलदारों का आतंक है तो कुमाऊं के रामनगर-हल्द्वानी बेल्ट में जंगली हाथियों के हमले बढ़ रहे हैं। गुलदार ख़ासतौर पर छोटे बच्चों पर हमला करते हैं। ग्रामीणों के मवेशियों पर घात लगाते हैं। इससे जंगल के ईर्दगिर्द रहने वाले लोग भी वन्यजीवों से नाराज रहते हैं।

राज्य में वर्ष 2017-18 में बाघ, तेंदुए और अन्य वन्यजीवों के हमले में कुल 85 लोग मारे गए। इसकी एवज में राज्य सरकार ने 130.90 लाख रुपये बतौर मुआवज़ा दिए। जबकि इसी अवधि में वन्यजीवों ने 436 लोगों को घायल किया। जिसकी एवज में उन्हें कुल 67.26 लाख रुपये बतौर मुआवज़ा दिया गया। वर्ष 2017-18 में वन्यजीवों के हमले में 12,546 पशु मारे गए। जिसके लिए 188.75 लाख रुपये बतौर मुआवजा दिया गया। जंगली जानवरों ने इस दौरान 1497.779 हेक्टेअर क्षेत्र में फसल को नुकसान पहुंचाया। जिसके एवज में वन विभाग ने 78.748 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति दी।

मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को आपदा में शामिल करने की मांग भी उठती रही है। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी का कहना है कि मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए चरणबद्ध तरीके से कार्य योजना तैयार की जा रही है। इसके लिए हम पिछले बीस वर्षों के आंकड़ों का अध्ययन करेंगे। इसकी समीक्षा के आधार पर अगले दस वर्षों के लिए नीति तैयार की जाएगी। वे कहते हैं कि वन्यजीवों के प्रति रिएक्टिव होने की जगह हम प्रो-एक्टिव बन सकते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग प्रजाति के जानवरों के मिजाज को समझना होगा। जैसे राजाजी टाइगर रिजर्व के रायवाला क्षेत्र में गुलदारों के हमले से मुश्किलें बनी रहती हैं। उधर, कार्बेट टाइगर रिजर्व के मोहान रेंज में हाथियों के हमले की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसलिए अलग-अलग क्षेत्र और वन्यजीव को ध्यान में रखकर योजना बनाई जाएगी। ताकि इन हमलों से निपटने के लिए सामान्य अप्रोच की जगह साइट स्पेसेफिक अप्रोच पर कार्य किया जा सके।

इसके साथ ही वन विभाग वन्यजीवों की आवाजाही पर नज़र रखने के लिए रेडियो कॉलर भी लगाएगा। राजीव भरतरी कहते हैं कि इससे हम ये भी जान सकेंगे कि मोतीचूर में एक छोटे से क्षेत्र में ही क्यों 40 गुलदार रह रहे हैं या फिर कार्बेट के मोहान रेंज में हाथियों के हमले की घटनाएं कैसे बढ़ गईं। रेडियो कॉलर लगाने से वन्यजीवों की आवाजाही पर निगरानी रखी जा सकेगी।                                                                                            

मानव-वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम के लिए लोगों को जागरुक करना भी बेहद जरूरी है। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के मुताबिक इसके लिए इको डेवलपमेंट कमेटी गठित की जाएगी। जिसमें गांव के लोगों को शामिल किया जाएगा। ये कमेटी लोगों को वन्यजीवों के हमले से बचने के लिए जरूरी सावधानी बरतने के बारे में समझाएगी। इसके लिए कमेटी को फंड, ड्रेस और अन्य सुविधाएं भी दी जाएंगी। साथ ही वन्यजीवों के हमले कम करने के लिए शासन स्तर पर नीति बननी चाहिए। जिससे इस कार्य में तेज़ी आ सके।

राज्य में कुछ जगहों पर वन्यजीवों की तादाद अधिक है। तो कुछ ऐसी भी जगहें हैं जहां वन्यजीवों के लिए नया आशियाना बनाया जा सकता है। कार्बेट में कुछ जगह बाघ काफी अधिक हैं, वहां और अधिक बाघों के लिए जगह नहीं बची। जबकि उसकी तुलना में राजाजी पार्क में बाघ कम हैं। नंधौर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी की भी कैरिंग कैपेसिटी बढ़ाकर बाघों को शिफ्ट किया जा सकता है। इससे वन्यजीवों के लिए भोजन और क्षेत्र की कमी नहीं होगी। जिससे वे रिहायशी इलाकों की तरफ रुख नहीं करेंगे।