ओडिशा के अंगुल जिले में हाथी के हमले में पांच लोगों की मौत हो गई। इसमें एक महिला और दो नाबालिग लड़कियां शामिल हैं। इस घटना के बाद एक बार फिर हाथी और मनुष्य के बीच चल रहे इस संघर्ष को लेकर सवाल उठने लगे हैं। जानकारों का मानना है कि इस संघर्ष को रोकने के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।
यह हमला टस्कर हाथी ने किया है। इस हाथी ने अंगुल जिले के सांधा और संथापडा गांव में अलग अलग हमले किए। वन विभाग का कहना है कि इसी हाथी ने दो मार्च को भी तलछेर इलाके में एक व्यक्ति को मार दिया था। तलछेर वन मंडल अधिकारी त्रिलोचना बहेरा ने कहा कि वन विभाग की ओर से मृतक के परिवारों को 4 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा और इस घटना की पूरी जांच कराई जाएगी।
दिलचस्प बात यह है कि मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए काफी प्रयास हो रहे हैं, लेकिन कुछ जगहों पर इसका असर नहीं दिख रहा है। कर्नाटक और झारखंड में दो ऐसी परियोजनाएं चल रहीं हैं, जिससे लोगों को हाथी की गतिविधियों के बारे में चेतावनी मिल जाती है। इससे मानव-हाथी टकराव में कमी आने की उम्मीद जताई गई है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थायी समाधान नहीं है। मानव-हाथी संघर्ष पर विशेषज्ञों का मत है कि यह चेतावनी प्रणाली शुरुआती संघर्ष को अवश्य कम करने में मदद कर सकती है, लेकिन यह उपाय अल्पकालिक है।
पलामू स्थित हाथी विशेषज्ञ डी.एस. श्रीवास्तव ने बताया कि चेतावनी प्रणाली का सबसे प्रमुख लाभ अब यह हो रहा है कि इससे हम हाथियों की क्षेत्र में यथास्थिति तथा उनके विचरण के बारे में जानकारी हो जाती है। लेकिन हाथियों के रहने एवं और उनके प्रबंधन के बारे में बुनियादी जरूरतें अभी भी सुलक्ष नहीं पाई हैं। वर्तमान में चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से हम केवल जानवरों की निगरानी कर रहे हैं और आवश्यकतानुसार लोगों को मुआवजा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम हाथियों के अनुकूल स्थिति नहीं बना पा रहे हैं। श्रीवास्तव ने कहा कि बांस और साल के वनों काे नए तौर-तरीकों से ठीक करना जरूरी है। उन्होंने आगे कहा कि “इस मामले में हमने केवल अल्पकालिक समाधान तक ही खुद को सीमित कर रखा है।”
कर्नाटक वन क्षेत्रों में मैसूर स्थित वन्यजीव अनुसंधान संगठन और नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन (एनसीएफ) द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि 2010 और 2018 के बीच हाथी के हमलों में 38 लोगों ने अपनी जानें गवाईं। औसतन प्रति वर्ष 4.2 व्यक्ति मारे गए। ज्यादातर मौतें तब हुईं जब पीड़ित सड़कों पर थे। 38 में से 24 मामले ऐसे ही घटित हुए। ये घटनाएं सुबह 6 से 10 और शाम 4 से 8 बजे के दौरान हुईं। आमतौर पर देखा जाए तो इस समय में लोग अपने घरों और कार्यस्थलों के बीच में होते हैं। अधिकांश मामलों में पीड़ितों को हाथियों की उपस्थिति के बारे में पता नहीं था। इससे निपटने के लिए पिछले डेढ़ साल में एक सुरक्षा उपाय के रूप में यह प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली शुरू की गई है। एनसीएफ ने कर्नाटक वन विभाग के साथ मिलकर लोगों के लिए एसएमएस और वॉयस कॉल अलर्ट की शुरुआत की है। यह अलर्ट उन लोगों के लिए है जिन्होंने इसके लिए दैनिक आधार पर पंजीकरण कराया है।