एक ताजा रिसर्च से पता चला है कि उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वनों की बहाली के प्रयास में लगाए औसतन करीब आधे पेड़ पांच वर्षों से ज्यादा जीवित नहीं रहते हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में वन बहाली के प्रयास कैसे सफल होंगें यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं ने यह भी माना है कि इन परिणामों में भारी भिन्नता है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय एशिया में 176 बहाली क्षेत्रों में दोबारा लगाए पेड़ों के अस्तित्व और विकास के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण के नतीजों से पता चला है कि इन क्षेत्रों में औसतन 18 फीसदी पौधे पहले वर्ष के भीतर ही मर गए थे। वहीं औसतन करीब 44 फीसदी पौधे पांच वर्षों में मर गए थे।
वहीं रॉयल सोसाइटी बी के जर्नल फिलोसॉफिकल ट्रांसक्शंस में प्रकाशित नतीजों से पता चला है कि इन पेड़ों के जीवित रहने की दर, साइटों और प्रजातियों के बीच अलग-अलग पाई गई है। उदाहरण के लिए कुछ साइटों में 80 फीसदी से ज्यादा पेड़ पांच वर्षों के बाद अभी भी जीवित हैं। वहीं अन्य में करीब इतने ही पेड़ मर चुके हैं।
वन बहाली की इन परियोजनाओं का उपयोग जैव विविधता को बचाने, आवास को सुरक्षित रखने, वनों की बहाली, जलवायु परिवर्तन से निपटने और कार्बन ऑफसेटिंग के लिए किया जाता है। देखा जाए तो यह परियोजनाएं कितनी सफल हैं इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां कितने पेड़ लगाए गए हैं। लेकिन अध्ययन से पता चला है कि इनमें से कई पेड़ लम्बे समय तक जीवित नहीं रह पाते हैं।
गौरतलब है कि दुनिया के करीब 15 फीसदी उष्णकटिबंधीय जंगल दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाते हैं, हालांकि, हाल के दशकों में इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वनों का विनाश देखा गया है। अनुमान है कि 1990 से 2010 के बीच करीब 3.2 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र में कमी आई है। ऐसे में यह क्षेत्र वनों की बहाली के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बन गया है।
इस बारे में यूके सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी और शोध से जुड़ी शोधकर्ता डॉक्टर लिंडसे बनिन का कहना है कि, “इन बहाली साइटों पर पेड़ो के जीवित रहने में जो बड़ी भिन्नता है वो कई कारणों से हो सकती है, जिसमें रोपण घनत्व, पेड़ों की लगाई प्रजातियां, साइट की स्थिति, मौसम की चरम घटनाएं, पौधों के प्रबंधन और रखरखाव में मौजूद अंतर शामिल है।“
बहाली के प्रयासों के साथ मौजूदा जंगलों को बचाना भी है जरूरी
साथ ही उनका कहना है कि इसमें स्थानीय सामाजिक-आर्थिक कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उनके अनुसार एक बात जो पूरी तरह स्पष्ट है वो है कि इनकी सफलता बहुत हद तक साइट पर निर्भर करती है। ऐसे में हमें यह समझने की आवश्यकता है कि क्या चीजें हैं जो काम करती हैं और उनके पीछे की क्या वजह है। इस जानकारी को सबके साथ साझा करने की जरूरत है, जिससे सभी साइटों को सबसे सफल स्तर पर लाया जा सके और बहाली का पूरा लाभ प्राप्त किया जा सके।
उनका कहना है कि, “कोई भी ऐसा अवधारणा नहीं है जो सभी जगह फिट बैठती हो। ऐसे में बहाली की कार्रवाई स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप होनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि बहाली के लिए उपलब्ध दुर्लभ संसाधनों और भूमि का सर्वोत्तम उपयोग किया जाता है।“
अध्ययन से यह भी पता चला है कि जब किसी क्षेत्र में वनों का पूरी तरह विनाश कर दिया जाता है तो वहां उनकी बहाली के प्रयास उन स्थानों की तुलना में कम सफल रहते हैं जहां कुछ पेड़ बचे रह गए थे। पता चला है कि जिन क्षेत्रों में पहले से कुछ परिपक्व पेड़ थे वहां लगाए पौधों के जीवित रहने की सम्भावना करीब 20 फीसदी ज्यादा थी। ऐसे में जो क्षेत्र ज्यादा प्रभावित हैं वहां इनकी सुरक्षा और रखरखाव के लिए कहीं ज्यादा मेहनत और उपायों की आवश्यकता है।
इस बात के भी कुछ सबूत मिले हैं कि केवल प्रकृति को अपना काम करने देने की तुलना में सक्रिय रूप से बहाली के लिए किए प्रयास कहीं ज्यादा तेजी से परिणाम देते हैं। पता चला है कि जिन क्षेत्रों में वृक्षारोपण गतिविधियां चल रही थी वहां उन क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा तेजी से वनावरण विकसित हुआ जहां वनों को प्राकृतिक रूप से दोबारा बहाल होने के लिए छोड़ दिया गया था।
ऐसे में एबरडीन विश्वविद्यालय और इस शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता प्रोफेसर डेविड बर्सलेम का कहना है कि क्षेत्रों में सक्रिय रूप से बहाली के प्रयासों की सबसे ज्यादा जरूरत है जहां पहले से ही पेड़ों को साफ किया जा चुका है। साथ ही उन क्षेत्रों में बहाली के प्रयास सबसे ज्यादा जोखिम भरे हैं जहां मरने वाले पेड़ों की संख्या सबसे ज्यादा है।
उनके अनुसार ऐसे में हमें इसे बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है कैसे इन क्षेत्रों में पौधों के जीवित रहने की संभावनाओं को बेहतर बनाया जा सके। साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सके कि बहाली के सुखद परिणाम सामने आएं। साथ ही अध्ययन में इस बात को लेकर भी चेताया गया है कि हमें जितना संभव हो सके बाकी बचे जंगलों की रक्षा करने के प्रयास तेज करने चाहिए, क्योंकि बहाली के परिणाम अनिश्चित हैं।