एक अध्ययन के दौरान दुनिया भर के 220 से अधिक शोधकर्ताओं ने 163 स्तनपायी प्रजातियों पर 5,000 कैमरों से नजर रखी। जिससे पता चला है कि जंगली जानवर लोगों के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया करते हैं। वह इस बात पर निर्भर करता है कि जानवर कहां रहते हैं और क्या खाते हैं।
अध्ययन के मुताबिक, बड़े शाकाहारी जैसे हिरण या मूस जैसे पौधे खाने वाले जानवर जब लोगों के आसपास होते हैं तो अधिक सक्रिय हो जाते हैं, जबकि भेड़िये या वूल्वरिन जैसे मांस खाने वाले कम सक्रिय होते हैं और खतरों से भरे मुठभेड़ों से बचना पसंद करते हैं।
हिरण या रैकून जैसे शहरी जानवर लोगों के आसपास अधिक सक्रिय हो सकते हैं, क्योंकि वे लोगों की उपस्थिति के अभ्यस्त हो जाते हैं और कचरा या पौधों जैसा भोजन ढूंढते हैं, जिसे वे रात में हासिल करते हैं। लेकिन शहरों और अन्य विकसित क्षेत्रों से दूर रहने वाले जानवर लोगों का सामना करने से अधिक सावधान रहते हैं।
महामारी के दौरान वन्यजीव
नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि 161 संस्थानों के शोधकर्ताओं के सहयोग से, मानवजनित गतिविधि के बदलते स्तरों के बीच वन्यजीवों के व्यवहार का पता लगाया गया। इसके लिए उन्होंने कोविड-19 लॉकडाउन से पहले और उसके दौरान के आंकड़ों की तुलना की।
अध्ययन में कहा गया है कि कोविड-19 के दौरान लगे प्रतिबंधों ने शोधकर्ताओं को यह अध्ययन करने का अनूठा अवसर दिया, जब अपेक्षाकृत इस छोटी से अवधि में अपने इलाकों को साझा करने वाले लोगों की संख्या में भारी बदलाव आया तो जानवरों ने इस पर किस तरह से प्रतिक्रिया दी।
उस अवधि के आसपास उभरे लोकप्रिय चीजों के विपरीत, 'वन्यजीवों के स्वतंत्र रूप से भागने' का एक व्यापक पैटर्न नहीं देखा गया, जबकि इस दौरान इंसानों ने जगह-जगह आश्रय लिया था। लोगों और वन्यजीवों के गतिविधि पैटर्न में बहुत अंतर दिखा, सबसे अहम बात यह है कि जानवरों की प्रतिक्रियाएं उनकी रहने की जगहों, स्थितियों और खाद्य श्रृंखला में उनकी स्थिति पर निर्भर करती हैं।
अध्ययन में पाया गया कि जब मानवजनित गतिविधि अधिक थी तो वूल्वरिन, भेड़िये और कौगर जैसे मांसाहारी आम तौर पर कम सक्रिय पाए गए।
इनमें से कई पार्कों में और एडमोंटन जैसे शहरों में, बड़े शाकाहारी जीवों ने अक्सर अपनी गतिविधि बढ़ा दी, लेकिन लोगों की अधिक उपस्थिति के साथ वे अधिक रात्रिचर बन गए। अधिकांश मानव-प्रधान परिदृश्यों से बड़े मांसाहारी विशेष रूप से गायब थे।
कुशल संरक्षण उपायों के माध्यम से संघर्ष को रोकना
अध्ययन के निष्कर्ष वन्यजीवों पर लोगों के शोरगुल के किसी भी हानिकारक प्रभाव को कम करने के उपायों के महत्व पर प्रकाश डालते हैं, जिसमें एक दूसरे के इलाके में हस्तक्षेप को कम करना भी शामिल है, जो अक्सर संघर्ष का कारण बन सकता है।
लोगों के सीमित बुनियादी ढांचे वाले दूरदराज के क्षेत्रों में, वन्यजीवों पर वास्तविक उपस्थिति का प्रभाव विशेष रूप से मजबूत हो सकता है। जंगली जानवरों को उनकी आवश्यकता के अनुसार स्थान देने के लिए, हम संरक्षित क्षेत्रों या घूमने वाले गलियारों को मानवजनित गतिविधि से मुक्त करने पर विचार कर सकते हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि रणनीतियों को विशिष्ट प्रजातियों और जगहों के अनुरूप भी होना चाहिए। अधिक दूरदराज के क्षेत्रों में, संवेदनशील प्रजातियों की रक्षा के लिए मानवजनित गतिविधि को कम करना जरूरी है। उन क्षेत्रों में जहां लोग और जानवर अधिक मिलते हैं, जैसे कि शहर, रात का समय वन्यजीवों के लिए एक महत्वपूर्ण आश्रय है और इस तरह रखने से प्रजातियों को जीवित रहने में मदद मिल सकती है।
प्रयास अंधेरे के बाद मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने पर आधारित हो सकते हैं, जैसे मानव भोजन स्रोतों में प्रवेश करने वाले जानवरों की संख्या को कम करने के लिए कूड़ेदानों का अधिक सुरक्षित भंडारण, या वाहन से टकराने को कम करने के लिए सड़क शमन उपाय करना।
अध्ययन के मुताबिक, यह समझने से कि विभिन्न संदर्भों में वन्यजीव मानवजनित गतिविधि पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे प्रभावी संरक्षण योजनाएं विकसित करने में मदद मिलती है जिनका स्थानीय और वैश्विक प्रभाव होता है। इस कारण से, कैमरे से नजर रखने वाले उपकरणों का उपयोग करके वन्यजीव निगरानी प्रणालियों को बेहतर बनाने के लिए काम किए जा रहे हैं, जिससे महामारी के दौरान जानवरों के व्यवहार का निरीक्षण करना संभव हुआ था।