हसदेव अरण्य को लेकर आयी दो महत्वपूर्ण संस्थाओं भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआाईआई) और भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) की संयुक्त और अलग-अलग दो रिपोर्ट्स को कांग्रेस नीत छत्तीसगढ़ सरकार ने न केवल नजरअंदाज किया है, बल्कि इन दोनों रिपोर्ट्स के खिलाफ जाकर हसदेव अरण्य के सघन और समृद्ध नैसर्गिक वन क्षेत्र में कोयला खदानों के लिए रास्ता बनाया है।
उल्लेखनीय है कि हसदेव अरण्य में जो कोयला खदानें प्रस्तावित हैं वो राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आबंटित हैं जिन्हें संचालित करने का जिम्मा अडानी कंपनी को एमडीओ के तहत प्राप्त है। यानी कांग्रेस नीत दो राज्य सरकारें अडानी के लिए केंद्र सरकार की राह पर काम कर रही हैं।
अभी लंबा अरसा नहीं बीता जब परसा कोल ब्लॉक के लिए वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दूसरे चरण की वन स्वीकृति प्रदान किए जाने को लेकर गंभीर सवाल उठे थे। ताजा घटनाक्रम में एक नयी रिपोर्ट सामने आयी है, जिसे भारतीय वन्य जीव संस्थान ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) द्वारा 2014 में दिये गए आदेश के आधार पर तैयार किया है।
2014 में हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक को दी गयी वन स्वीकृति को चुनौती दी गयी थी, जिसके आधार पर एनजीटी ने इस क्षेत्र के बारे में समग्रता में एक अध्ययन करने को कहा था, ताकि हसदेव अरण्य में पर्यावरणीय व जैव विविधतता की परिस्थितियों का सही-सही आंकलन किया जा सके और इस क्षेत्र में वन्य जीवों की स्थिति पर भी गहन अध्ययन हो, ताकि पता लगे कि इस पूरे वन क्षेत्र में खनन के क्या प्रभाव होंगे?
एनजीटी के आदेश पर इस क्षेत्र की दो सर्वोच्च और प्रतिष्ठित संस्थाओं ने यह अध्ययन शुरू किया। हालांकि जिस कोयला खदान के मामले में इस तरह के प्रामाणिक अध्ययन की ज़रूरत बतलाई गयी थी, उसे न केवल तमाम स्वीकृतियां हासिल हो गईं, बल्कि आज की तारीख में वह पूरी क्षमता के साथ संचालित भी हो रही है। दिलचस्प है कि इन शीर्ष संस्थाओं ने अपने अध्ययन में इस संचालित हो रही कोयला खदान के तजुर्बों को भी शामिल किया है।
इस लेख में हम पहले भारतीय वन्य जीव संस्थान (डबल्यूआईआई),देहरादून की उस रिपोर्ट के बार में बात करेंगे जो अपने वैज्ञानिक और तकनीकी आंकलन के आधार पर स्पष्ट सिफारिश करती है कि हसदेव अरण्य वन क्षेत्र को नो-गो एरिया घोषित किया जाना चाहिए और यहां किसी भी नयी कोयला खदान को स्वीकृति नहीं दी जाना चाहिए ।
यह रिपोर्ट यह भी कहती है कि इस सघन वन क्षेत्र और हाथियों के नैसर्गिक पर्यावास में किसी भी प्रकार का दखल हाथी-मानव संघर्ष को उस स्थिति में ले जाएगी जिसे संभालना राज्य सरकार के लिए मुमकिन नहीं होगा ।
277 पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट में भारतीय वन्य जीव संस्थान ने इस रिपोर्ट में पर्यवरणीय व जैव विविधतता के साथ -साथ वन्य जीवों व मनुष्यों के बीच बढ़ रहे संघर्षों को लेकर भी विस्तार से बतलाया। इस रिपोर्ट में यह सिफारिश की गयी है कि परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान को अपवाद स्वरूप ज्यों का त्यों संचालित किया जा सकता है, लेकिन इसके अलावा एक भी कोयला खदान पूरे हसदेव अरण्य क्षेत्र में नहीं खोला जाना चाहिए, बल्कि इस पूरे इलाके को नो-गो एरिया घोषित किया जाना चाहिए।
इसके अलावा इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मौजूदा परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान के लिए अडानी द्वारा तैयार किया गया कंसर्वेशन प्लान बहुत ‘बुनियादी और सामान्य’ है जिसे व्यापक तौर पर संरक्षण के नज़रिये से दुरुस्त किए जाने की ज़रूरत है। क्योंकि इस क्षेत्र के लिए थोड़ी सी भी लापरवाही बहुत घातक होगी।
दिलचस्प है कि राज्य सरकार को यह रिपोर्ट कई सप्ताह पहले ही सौंपी जा चुकी थी, लेकिन सरकार ने इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशों व निष्कर्षों को पूरी तरह से न केवल नजरअंदाज किया, बल्कि परसा कोयला खदान के लिए दूसरे चरण की वन स्वीकृति की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।
इस तरह अगर देखें तो यह स्पष्ट तौर पर राज्य सरकार ने दो महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स यानी डब्ल्यूआईआई और आईसीएफआरई को ही खारिज किया, बल्कि 2015 से जारी स्थानीय ग्राम सभाओं के मुसलसल विरोध को भी ताक पर रख दिया।
क्या हैं भारतीय वन्य जीव संस्थान रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष व सिफारिशें?
2014 से शुरू हुए इस अध्ययन केलिए कुछ मुख्य सवाल राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने रखे थे जिनका जवाब यह रिपोर्ट स्पष्टतता के साथ देती है। एनजीटी द्वारा पूछे गए विशेष सवाल के जवाब में यह रिपोर्ट बहुत स्पष्टता से बताती है कि हसदेव अरण्य का पूरा क्षेत्र हमेशा से विलुप्त प्राय और संकटग्रस्त वन्य जीवों का पर्यावास रहा है और अभी भी है और इस क्षेत्र का संरक्षण की दृष्टि बहुत ही महत्वपूर्ण है।
दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से पिछले सात सालों में जब से राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने यह आदेश दिया है, परसा ईस्ट केते बसन कोयला खदान पहले ही खुल चुकी है जिसके कारण इस पूरे इलाके पर बहुत गंभीर असर हो रहे हैं जिनके बारे में अभी तक स्पष्ट आंकलन नहीं हुआ है। इस रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय निष्कर्ष इस प्रकार हैं-
• कैमरा ट्रैप्स और साइन सर्वेक्षणों के जरिये यह दर्ज किया गया है कि तारा, परसा, और केते एक्सटेंशन जैसे कोयला खदानों के क्षेत्र में स्तनपायी (मेमल्स) वन्य जीवों की 9 ऐसी प्रजातियां मौजूद हैं, जो अनुसूची -1 में शामिल हैं और जिन्हें संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है। भारत के संरक्षण कानूनों में इनके संरक्षण को प्राथमिकता में रखा गया है। इनमें हाथी, तेंदुआ, भालू, भेड़िया, धारीदार लकड़बग्घा जैसे वन्य जीव शामिल हैं।
• हसदेव अरण्य से लगे हुए उसके पड़ोसी अचानकमार और कान्हा टाइगर रिज़र्व और बोरामदेव वन्य जीव अभ्यारण्य के बीच भौगोलिक जुड़ाव और वन्य जीवों की आवाजाही को देखते हुए इस क्षेत्र में शेरों की आवाजाही से इंकार नहीं किया जा सकता।
• बहुत सीमित आंकलन के मुताबिक भी 40-50 हाथी हसदेव अरण्य के विभिन्न हिस्सों से आवाजाही करते हैं जिससे असामान्य रूप से मानव -हाथी संघर्ष में इजाफा हुआ है जो अपने आप में अन्य क्षेत्रों में हाथियों के नैसर्गिक पर्यावास से की गयी छेड़छाड़ का नतीजा है। हाथियों के नैसर्गिक पर्यावास से पलायन को बढ़ाने वाली कोई भी नकारात्मक गतिविधि इस स्थिति को भयावह बना देगी जिसे संभालना मुश्किल हो जाएगा।
• संकटग्रस्त स्तनपायी वन्य जीवों (मेमल्स) के अलावा, इस क्षेत्र में कम से कम 82 चिड़ियों की ऐसी प्रजातियाँ मौजूद हैं जिनमें 6 अनुसूची-1 में शामिल हैं, जिनमें सफेद आंखों वाली वजर्ड, ब्लैक सोलजर्स काईट आदि हैं। इसके अलावा तितलियों की लुप्तप्राय प्रजातियां और सरीसृप (राइप्टाइल्स) भी पाये जाते हैं।
• समृद्ध प्राणी जगत की मौजूदगी के साथ साथ इस क्षेत्र में 167 से ज़्यादा प्रजातियों के पेड़ पौधे हैं जिनमें 18 प्रजातियाँ बेहद संवेदनशील हैं और संकटग्रस्त हैं।
• स्थानीय समुदायों, जिनमें मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों की निर्भरता इस क्षेत्र के जंगल पर है। उनकी वार्षिक आय का लगभाग 60 से 70 प्रतिशत इसी जंगल से हासिल होता है। इसलिए ये समुदाय स्वयं इन जंगलों के संरक्षण को प्राथमिकता देते हैं। इस रिपोर्ट में विशेष रूप से यह उल्लेख किया गया है कि स्थानीय समुदाय इस जंगल में खनन गतिविधियों का समर्थन नहीं करते क्योंकि वो इसे जंगलों के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं जिन पर उनकी निर्भरता बहुत ज़्यादा है। इसके अलावा इन समुदायों के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू भी हैं जिन्हें बचाने के लिए भी यहाँ खनन का विरोध करते हैं।
उल्लेखनीय है कि भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अपनी इस रिपोर्ट में एक पूरा अध्याय ही पहले से संचालित हो रही परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान के दुष्प्रभावों को समर्पित किया है। यह रिपोर्ट अडानी द्वारा संचालित इस कोयला खदान के लिए लागू मौजूदा संरक्षण योजना को ‘काम चलाऊ’ बताती है और इस समृद्ध जैव विविधतता और वन क्षेत्र को होने वाले नुकसान से निपटने के लिए अपर्याप्त बताया गया है।
दो अन्य अध्यायों में (लगभग 80 पेजों में) इस रिपोर्ट में उन मानकों को को अपनाए जाने की बात की है जिनसे परसा ईस्ट केते बासन के संचालन से पैदा होने वाले परिस्थितिकी नुक़सानों की भरपाई और पैदा होने होने वाली चुनौतियों से समुचित ढंग से निपटा जा सके। इस रिपोर्ट में सख्ती के साथ यह सिफ़ारिश की गयी है कि “इस क्षेत्र में अगर कोई नयी कोयला खदान नहीं भी खोली जाए तब भी पहले से संचालित परसा ईस्ट केते बासन और चोटिया कोयला खदानों से उत्पन्न हो रहे खतरों से बहुत संवेदनशील ढंग से निपटने की ज़रूरत है”।
बिना राज्य सरकार द्वारा सार्वजनिक किए ही यह रिपोर्ट आधिकारिक रूप से सार्वजनिक है। ऐसे में राज्य सरकार की कार्य-प्रणाली, वन्य जीव और पर्यावरण के साथ पाँचवीं अनुसूची में शामिल विशिष्ट क्षेत्र और आदिवासी समुदाय के प्रति मंशा पर कई गंभीर सवाल पैदा होते हैं।
• छत्तीसगढ़ राज्य सरकार से यह पूछा जाना चाहिए कि इस रिपोर्ट के आधार पर हसदेव अरण्य पर होने वाले दुष्प्रभावों को लेकर किस स्तर पर कितने परामर्श और चर्चाएं हुईं?
• राज्य सरकार ने डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट को गहन चर्चा और विमर्श के लिए सार्वजनिक क्यों नहीं किया? तब जबकि इस रिपोर्ट का महत्व राज्य व देश के हर नागरिक के लिए है और राज्य में इस क्षेत्र में खनन को लेकर पर्यावरणविद और स्थानीय समुदाय लगातार दशकों से विरोध कर रहे हैं?
• छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नीत राज्य सरकार को यह भी बताना चाहिए कि क्या उसे अडानी पर यह भरोसा है कि वो डब्ल्यूआईआई इस की रिपोर्ट में सुझाए गए सख्त व विस्तृत पर्यावरण संरक्षण के सुरक्षा मानक अपनाएगा तब जबकि वह इसमें पूरी तरह विफल रहे हैं और जिसका विशेष उल्लेख इस रिपोर्ट में किया गया है?
और अंत में, क्या वाकई छत्तीसगढ़ सरकार के लिए अडानी के आर्थिक हित उतने ही सर्वोपरि हैं जितना राहुल गांधी भाजपा और उसके शीर्ष नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बतलाते हैं?