वन्य जीव एवं जैव विविधता

गंगा में हैं 1150 डॉल्फिन, एक सर्वे में हुआ खुलासा

DTE Staff

एक ओर यह माना जा रहा है कि डॉल्फिन की संख्या कम होने जा रही है तो दूसरी ओर एक अच्छी खबर सामने आ रही है। बिहार में गंगा व उसकी दो सहायक नदी गंडक और घाघरा के लगभग 1,000 किलोमीटर क्षेत्र में किए गए एक व्यापक सर्वेक्षण में लगभग 1,150 डॉल्फिन पाई गईं। पर्यावरणविदों का कहना है कि यह एक “स्वस्थ नदी पारिस्थितिकी तंत्र” का संकेत है।

इसका मतलब कि गंगा और उसकी सहायक नदियों का परिस्थितिकी तंत्र अब भी बेहतर स्थिति में है। क्योंकि डॉल्फिन स्वच्छ व ताजे पानी में ही जीवित रह सकती हैं।

जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) के डिप्टी डायरेक्टर गोपाल शर्मा ने बताया, “यह सर्वेक्षण तीनों नदियों में एक साथ प्रत्यक्ष गणना पद्धति का उपयोग करते हुए किया गया था, जिसके तहत सांस लेने के लिए सतह पर आने वाले जलीय जानवरों की गणना उनके आकार व ऊंचाई के आधार पर की जाती है।” बिहार में यह स्थिति तब सामने आई है जब डॉल्फिन पृथ्वी से लुप्तप्राय: हो रही है।

इनकी घटती संख्या पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय रही है। यह सर्वेक्षण 18 नवंबर से 10 दिसंबर, 2018 के बीच किया गया। यह सर्वेक्षण जेडएसआई ने भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट और तिलका मांझी विश्वविद्यालय (भागलपुर) के साथ मिलकर किया। 23 दिनों तक चले व्यापक सर्वेक्षण के दौरान गंगा के मोकामा से मनिहारी तक 300 किलोमीटर लंबी सीमा में 700, बक्सर से मोकामा तक गंगा के अन्य हिस्सों में 300, गंडक नदी में 100 और घाघरा में 50 डॉल्फिन पाई गईं।

हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि वह इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते कि डॉल्फिन की संख्या में वृद्धि हुई है या इनकी संख्या घटी है क्योंकि यह पहली बार है जब इस तरह का एक व्यापक सर्वेक्षण किया गया है।

उल्लेखनीय है कि डॉल्फिन लोगों के लिए कौतूहल का विषय रही है। ज्यादातर लोग इसे मछली के रूप में जानते हैं, लेकिन डॉल्फिन मछली नहीं है, बल्कि एक स्तनधारी जल जीव है। एक मनमौजी जीव होने के कारण लोग इसे देखना बहुत पसंद करते हैं। डॉल्फिन का इंसानों के प्रति विशेष व्यवहार शोध का विषय रहा है। माना जाता है कि धरती पर डॉल्फिन का जन्म करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व हुआ और डॉल्फिन ने लाखों वर्ष पूर्व जल से जमीन पर बसने की कोशिश की, लेकिन धरती का वातावरण डॉल्फिन को रास नहीं आया और फिर उसने वापस पानी में ही बसने का मन बनाया।

प्रकृति ने डॉल्फिन के कंठ को अनोखा बनाया है, जिससे वह विभिन्न प्रकार की करीब 600 आवाजें निकाल सकती हैं। डॉल्फिन सीटी बजाने वाली एकमात्र जलीय जीव है। वह म्याऊं-म्याऊं भी कर सकती है तो मुंर्गे की तरह आवाज भी निकाल सकती है। इस जीव के संरक्षण के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की सहयोगी संस्था व्हेल और डॉल्फिन संरक्षण सभा द्वारा 2007 को डॉल्फिन वर्ष के रूप में मनाया गया। हमारे देश में भी वर्ष 2009 में गंगा की डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया और भारत सरकार ने डॉल्फिन के व्यक्तित्व को स्वीकार करते हुए इन जीवों को बंद रखते हुए इनके शो करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत, दुनिया का ऐसा पहला देश है, जिसने डॉल्फिन की बुदि्धमता और आत्मचेतना को मान्यता दी है।