वन्य जीव एवं जैव विविधता

पहले के मुकाबले 29 फीसदी कम काटे जा रहे हैं जंगल फिर भी क्यों चिंतित हैं वैज्ञानिक

रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा नुकसान उष्णकटिबंधीय जंगलों को हुआ है जो इन 18 वर्षों में लगभग यूरोप जितना वन क्षेत्र खो चुके हैं, जोकि करीब 15.7 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में फैले थे।

Lalit Maurya

विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा मंगलवार को जारी रिपोर्ट “ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्सेज असेसमेंट रिमोट सेंसिंग सर्वे” से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर पिछले 10 वर्षों की तुलना में वन विनाश की रफ्तार में 29 फीसदी की गिरावट आई है। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट XV वर्ल्ड फॉरेस्ट्री कांग्रेस (डब्लूएफसी) में जारी की गई है। जो गत सोमवार से दक्षिण कोरिया के सियोल शहर में शुरू हो चुकी है।

रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर जहां 2000 से 2010 के बीच हर वर्ष औसतन 1.1 करोड़ हेक्टेयर वन काटे जा रहे थे वो पिछले आठ वर्षों यानी 2010 से 2018 के बीच घटकर 0.78 करोड़ हेक्टेयर प्रतिवर्ष रह गए हैं।

इतना ही नहीं यह भी पता चला है कि इस दौरान वन क्षेत्र को होता शुद्ध नुकसान भी घटकर लगभग आधा रह गया है। जहां 2000 से 2010 के बीच वनों को होने वाला यह शुद्ध नुकसान 0.68 करोड़ हेक्टेयर प्रतिवर्ष था वो 2010 से 2018 के बीच घटकर 0.31 करोड़ हेक्टेयर प्रतिवर्ष रह गया है।

आंकड़ों के मुताबिक 2000 से 2018 के बीच वन क्षेत्र को जो सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है वो दक्षिण अमेरिका में दर्ज किया गया है जहां इस दौरान 6.8 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल काट दिए गए थे। वहीं इसके बाद अफ्रीका की बारी आती है जहां इन 18 वर्षों में 4.9 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में वनों का सफाया कर दिया गया है।

उष्णकटिबंधीय जंगलों को बेतहाशा होते नुकसान को लेकर चिंतित है वैज्ञानिक

रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान सबसे ज्यादा नुकसान उष्णकटिबंधीय जंगलों को हुआ है जो इन 18 वर्षों में लगभग यूरोप जितना वन क्षेत्र खो चुके हैं। देखा जाए तो इस दौरान वैश्विक वनों को जितना नुकसान पहुंचा है उसका 90 फीसदी उष्णकटिबंधीय वनों के रूप में ही हुआ है, जोकि करीब 15.7 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में फैले थे। हालांकि पिछले 8 वर्षों में 2010 से 2018 के बीच उष्णकटिबंधीय जंगलों को होते विनाश में गिरावट दर्ज की गई हैं।

गौरतलब है कि जहां 2000 से 2010 के बीच हर साल औसतन 1.01 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल काटे गए थे वो आंकड़ा 2010-18 के बीच घटकर 70 लाख हेक्टेयर प्रतिवर्ष रह गया है। हालांकि इसके बावजूद अभी भी भारी संख्या में यह जंगल काटे जा रहे हैं जो पर्यावरण और जैवविविधता के लिए बड़ा खतरा है।

इसके विपरीत 2000 से 2018 के बीच दक्षिण अमेरिका और दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया में वन विनाश की दर धीमी पाई गई है। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय वनों में होते विनाश के लिए कहीं हद तक कृषि क्षेत्र का तेजी से होता विस्तार, पाम आयल और अनियंत्रित तरीके से की जा रही पशुओं की चराई जिम्मेवार है।   

आंकड़ों के अनुसार 2000 से 2018 के बीच हुए वन विनाश के लिए जहां कृषि का विस्तार और पाम आयल जिम्मेवार थे। वहीं पशुओं के अनियंत्रित चारण से 38.5 फीसदी वनों का विनाश हुआ है जबकि 6.2 फीसदी के लिए शहरीकरण और 5.8 फीसदी के लिए अन्य कारक जिम्मेवार थे। अनुमान है कि दक्षिण अमेरिका में जहां पशुओं की चराई के कारण वहीं एशिया में कृषि क्षेत्र के होते विस्तार के कारण बड़े पैमाने पर उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को नुकसान पहुंचा है।

इस रिपोर्ट के बारे में एफएओ की उप निदेशक जनरल, मारिया हेलेना सेमेदो का कहना है कि यह सर्वे न केवल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने वनक्षेत्र को होते नुकसान के बारे में नए आंकड़े दिए है साथ ही यह किस कारण से हो रहा है उसके बारे में भी आगाह करता है। यह हमें इस बात को समझने और निगरानी करने की क्षमता देता है कि चीजें कैसे बदल रही हैं। 

देखा जाए तो स्वस्थ पृथ्वी के बिना हम मजबूत अर्थव्यवस्था की कल्पना नहीं कर सकते। हमें प्रकृति और विकास को साथ लेकर चलना होगा। लेकिन इसके लिए पहले इन जंगलों को होते अनियंत्रित विनाश को रोकना होगा। अभी हम इन जंगलों का केवल दोहन कर रहे हैं लेकिन हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी और विकास की राह पर सबको साथ लेकर चलना होगा।