वन्य जीव एवं जैव विविधता

जलवायु परिवर्तन और बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ते जुगनू, खतरे में टिमटिमाते जीवों का अस्तित्व

Lalit Maurya

दुनिया में शायद ही कोई होगा जिसे जुगनुओं को टिमटिमाते देखना पसंद न हो। अंधेरी रात में एक साथ चमकते इन अलौकिक जीवों को देख कर आप मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकते। बच्चों के लिए तो जुगनू हमेशा से कौतुहल का विषय रहे हैं। लेकिन लगता नहीं कि आने वाली नस्लों को इन्हें निहारने का मौका मिलेगा।

आपने भी अनुभव किया होगा कि पहले के मुकाबले जुगनुओं का दिखना कम हो गया है और अब वो कुछ दूर-दराज के क्षेत्रों में सिमट गए हैं। ऐसा सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे कई देशों में भी अनुभव किया जा रहा है।

इनकों लेकर हाल ही में किए एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने उन कारणों पर प्रकाश डाला है जो इनकी घटती आबादी की वजह बन रहे हैं। इस अध्ययन के मुताबिक जुगनू पर्यावरण से जुड़े विभिन्न कारकों से प्रभावित होते हैं। इनमें थोड़े समय के लिए रहने वाले मौसम से लेकर लम्बे में समय में जलवायु में होने वाले बदलाव तक शामिल हैं।

इस अध्ययन में पेन स्टेट यूनिवर्सिटी, केंटकी विश्वविद्यालय, अमेरिकी कृषि अनुसंधान सेवा विभाग और बकनेल विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता शामिल थे। इन्होने अध्ययन में फायरफ्लाई एटलस की मदद से किए गए 24,000 से अधिक सर्वेक्षणों का विश्लेषण किया है। इसके लिए उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित उन्नत मशीन लर्निंग तकनीकों का उपयोग किया है।

वैज्ञानिक पहले से जानते हैं कि तेजी से पसरते शहर, गहन कृषि और जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता को प्रभावित करते हैं। लेकिन इस बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है कि ये कारक आपस में कैसे प्रतिक्रिया करते हैं और कैसे आम लोग जैव विविधता की मदद के लिए आगे आ सकते हैं।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पूर्वी अमेरिका में स्थानीय स्तर पर जुगनुओं की आबादी की सटीक भविष्यवाणी करने के लिए एआई आधारित मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग किया है। इसमें उन्होंने जुगनुओं के आवास, वहां के मौसम, जलवायु, मृदा, भूमि उपयोग आदि का भी अध्ययन किया है। इसकी मदद से उन्होंने यह जानने का प्रयास किया है कि पूर्वी अमेरिका में विभिन्न स्थानों पर जुगनुओं की कितनी आबादी मौजूद है।

कैसे जुगनुओं के अस्तित्व के लिए खतरा बन रहा है इंसानी विकास

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में जानकारी दी है कि जुगनू समशीतोष्ण परिस्थितियों में पनपते हैं। गर्मियों में नम और गर्म परिस्थितियां उनके प्रजनन के लिए आदर्श वातावरण पैदा करती हैं। वहीं ठंडी सर्दियां अंडे, लार्वा और प्यूपा जैसे चरणों में जुगनुओं के विकास में मददगार होती हैं।

लेकिन जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है और धरती गर्म हो रही है। मौसम जुगनुओं के लिए प्रतिकूल हो रहा है, जिसमें जुगनुओं का पनपना कठिन होता जा रहा है। इसी तरह बारिश के पैटर्न में आता बदलाव भी जुगनुओं को प्रभावित कर रहा है।

इससे या तो बहुत शुष्क या तो बहुत नम परिस्थितियां पैदा हो रही हैं, जो उनकी नस्लों को प्रभावित कर रही हैं। जहां अत्यधिक शुष्क परिस्थितियां लार्वा के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है। वहीं नम मौसम प्रजनन क्षेत्र में बाढ़ की वजह बन रहा है जो उनके जीवन चक्र पर असर डाल रहा है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डारिन मैकनील ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि जलवायु विशेषकर तापमान में आ रहे छोटे बदलाव भी जुगनुओं के प्रजनन चक्र और आवास की गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने कृत्रिम प्रकाश के खतरों को उजागर करते हुए जानकारी दी है कि कृत्रिम रोशनी संभवतः जुगनू के वयस्क और लार्वा दोनों चरणों को प्रभावित कर सकती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक जुगनू के लार्वा जो मिट्टी में रहते हैं, वो प्रकाश के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं, ऐसे में कृत्रिम प्रकाश उनके विकास चक्र और जीवित रहने की दर को प्रभावित कर सकता है।

वहीं जुगनू के लार्वा जो अपने शिकार पर निर्भर होते हैं उन्हें नम मिट्टी की आवश्यकता होती है, क्योंकि नमी घोंघे और स्लग जैसे नरम शरीर वाले अकशेरुकी जीवों को सहारा देती है, जिन्हें जुगनू के लार्वा अपने शिकार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

रिसर्च के मुताबिक शहरी विकास भी इनके लिए खतरा पैदा कर रहा है। ऊंची इमारतों, सड़कों और अन्य तरह के निर्माण इन जुगनुओं के प्राकृतिक आवास पर अतिक्रमण कर रहे हैं। इनकी वजह से जुगनुओं का प्रजनन क्षेत्र सिमट रहा है जो जुगनुओं की आबादी के लिए खतरा पैदा कर रहा है।

इतना ही नहीं रात में तेज रोशनी जैसे स्ट्रीटलाइट आदि इन जीवों के लिए संकट पैदा कर रहा है क्योंकि वो जुगनुओं के चमकते संकेतों को प्रभावित कर रहा है। इनका उपयोग वे अपने साथी को खोजने के लिए करते हैं।

रिसर्च से यह भी पता चला है कि जिन क्षेत्रों में रात के समय बहुत अधिक प्रकाश होता है वहां जुगनुओं के पाए जाने की संभावना बेहद कम होती है। हालांकि जुगनू की आबादी में गिरावट सभी प्रजातियों या क्षेत्रों में एक समान नहीं।

शुष्क वातावरण के लिए अनुकूलित या विशिष्ट प्रजनन पैटर्न वाली कुछ प्रजातियां छोटे-मोटे बदलावों से कम प्रभावित होती हैं। बता दें कि दुनिया में जुगनुओं की करीब 2,000 प्रजातियां हैं। इससे पता चलता है कि प्रकृति हमारी समझ से कहीं ज्यादा जटिल है और ऐसे में संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों को परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किए जाने की आवश्यकता है।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने इन प्रभावों को कम करने के लिए संभावित संरक्षण उपायों पर भी प्रकाश डाला है। इसमें प्रकाश प्रदूषण को कम करना, प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करना और ऐसी कृषि पद्धतियों को लागू करना शामिल है, जो वन्यजीवों और जुगनुओं को नुकसान न पहुंचाती हो। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।

क्यों चमकते हैं जुगनू?

क्या आपने कभी सोचा है कि जुगनू क्यों टिमटिमाते हैं और इनमें यह प्रकाश कहां से आता है। बता दें कि जुगनुओं के शरीर में ल्युसिफेरस नामक एक खास प्रोटीन होता है। इसी का वजह से जुगनुओं को चमक मिलती है।

बता दें कि यह ल्युसिफेरिन जब आक्सीजन से मिलता है तो उसके रिएक्शन से एनर्जी रोशनी के रूप में निकलती है। हालांकि इस रिएक्शन के दौरान गर्मी पैदा नहीं होती। इनकी खोज सबसे पहले 1667 में रॉबर्ट बायल नाम के वैज्ञानिक ने की थी।

अब सवाल यह है कि जुगनुओं में यह प्रकाश क्यों होता है? वैज्ञानिकों के मुताबिक नर जुगनू मादाओं को रिझाने और दूसरे शिकारियों को अपने से दूर रखने के लिए टिमटिमाते हैं। हालांकि आपको जानकर हैरानी होगी की जुगनुओं की तरह ही उनके अंडे भी चमकते हैं। वहीं मादा जुगनुओं की बात करें तो उनके पंख नहीं होते और वो एक ही जगह पर चमकती हैं। इन जीवों द्वारा पैदा किए जाने वाले इस प्रकाश को बॉयोलुमिनिसेंस के नाम से जाना जाता है।