वन्य जीव एवं जैव विविधता

अमीर देशों के नागरिकों के खाने का शौक पूरा करने के लिए चार पेड़ों की चढ़ती है बलि

रिपोर्ट में इसके लिए कॉफ़ी, चॉकलेट, पाम आयल और मीट जैसे उत्पादों के बढ़ते उपभोग को जिम्मेवार माना है

Lalit Maurya

यदि अमीर देशों के खाने के शौक की बात करें तो उसके चलते जी7 देशों के हर व्यक्ति के लिए प्रतिवर्ष औसतन 3.9 पेड़ों को काटा जा रहा है। यह जानकारी हाल ही में अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित शोध में सामने आई है। रिपोर्ट में इसके लिए कॉफ़ी, चॉकलेट, पाम आयल और मीट जैसे उत्पादों के उपभोग को जिम्मेवार माना है। गौरतलब है कि ग्रुप ऑफ सेवन (जी7) एक अंतर-सरकारी संगठन है जो दुनिया की सबसे बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाओं से बना है जिसमें फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा शामिल हैं।

यदि जंगलों की बात करें तो वो न केवल हमें जरुरी संसाधन देते हैं साथ ही वायु प्रदूषण और बढ़ते उत्सर्जन को भी नियंत्रित करते हैं। इनका विनाश न केवल जलवायु परिवर्तन के असर को बढ़ा रहा है साथ ही वन्य जीवों और जैव विविधता के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जो दुनिया के प्रत्येक देश द्वारा आयात की जा रही वस्तुओं और उससे जुड़े जंगलों के विनाश के उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले मानचित्रों से जोड़ता है। शोध से पता चला है कि इन वस्तुओं के उपभोग और जंगलों के विनाश के बीच सीधा सम्बन्ध है।

अध्ययन के अनुसार एक तरफ जहां जी7 देशों और कई उभरते हुई अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत और चीन जैसे देशों में 2001 से 2015 के बीच जंगलों की कटाई में कमी देखी गई है, वहीं उनके आयात और बढ़ती खपत के कारण विदेशों में वनों की कटाई बढ़ गई है। उदाहरण के लिए यूके और जर्मनी में चॉकलेट की बढ़ती खपत के कारण आइवरी कोस्ट और घाना में वनों की कटाई बढ़ी है। जबकि अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन में बीफ और सोया की बढ़ती मांग से ब्राजील में वनों का विनाश हुआ है। इसी तरह चीन के लिए रबर की जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्तरी लाओस में वनों को काटा गया था।

इस शोध में शोधकर्ताओं ने सभी प्रकार के जंगलों पर विचार किया है जिसमें उत्तरी अक्षांश के बोरियल वनों से लेकर कार्बन-समृद्ध मैंग्रोव और वर्षा वन तक सभी शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने मांस, लकड़ी, कॉफी, सोयाबीन और कोको सहित कृषि और वानिकी से जुड़ी वस्तुओं के व्यापर और उसके प्रभावों की जांच की है।

विश्लेषण के अनुसार उष्णकटिबंधीय वर्षावन जो भूमि पर स्टोर कुल कार्बन का करीब एक चौथाई हिस्सा अकेले स्टोर करते हैं उनपर विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रभाव और खतरा बढ़ा है। शोध के अनुसार अंतरराष्ट्रीय व्यापार के साथ जिन जंगलों का सबसे ज्यादा विनाश हुआ है वहां जैवविविधता को भी सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। इनमें अमेजन, दक्षिण-पूर्व एशिया, मेडागास्कर और लाइबेरिया के जंगल शामिल हैं।

भारत और चीन के कारण भी छह गुना बढ़ी हैं जंगलों की कटाई

यदि भारत और चीन की बात करें तो 2000 के बाद से उनमें अच्छी-खासी वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार 2001 से 2014 के बीच इन दोनों देशों में वस्तुओं के आयात से जुड़े वन विनाश में छह गुना वृद्धि हुई है।

शोध के अनुसार हालांकि यदि प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो जी7 देशों द्वारा वनों का ज्यादा विनाश हो रहा है। जिनके कारण प्रति व्यक्ति औसतन 4 पेड़ों को काटा जा रहा है। वहीं अमेरिका में बढ़ती खपत के कारण 2015 में प्रति व्यक्ति 5 पेड़ों को काटा गया था। जबकि यूके में बढ़ती खपत के कारण औसतन प्रति व्यक्ति दो पेड़ काटने पड़ रहे हैं। 2001से 2015 के बीच यूके की जरूरतों को पूरा करने के लिए करीब 99 फीसदी तक जंगल विदेशों में काटे गए थे। हालांकि भारत और चीन को देखें तो यह नुकसान काफी कम है, पर उसमें बड़ी तेजी से वृद्धि हो रही है।