एनजीटी ने समिति को ओसुदु झील पर 10 अगस्त तक अपनी रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है। यह आदेश 26 मई को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की दक्षिणी ब्रांच ने जारी किया है| गौरतलब है कि ओसुड्डु झील से पानी के निकले जाने पर उस क्षेत्र की वनस्पति और जीवों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इस मुद्दे पर समिति को अपनी रिपोर्ट करते में प्रस्तुत करनी थी| पर समिति अपनी रिपोर्ट नहीं जमा करा पाई थी जिसके मद्देनजर कोर्ट ने यह आदेश जारी किया है।
इस समिति का गठन एनजीटी द्वारा किया गया था| जिसमें तमिलनाडु और पुदुचेरी के मुख्य वन्यजीव वार्डन, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक, तमिलनाडु और पुदुचेरी राज्य के वेटलैंड प्राधिकरण के अधिकारी और वन्यजीव संस्थान, देहरादून के एक वैज्ञानिक को शामिल किया गया था|
इस रिपोर्ट में इस बात की जांच करनी थी कि इस झील से पानी निकलने पर इस क्षेत्र पर इसका क्या असर पड़ेगा और क्या इसे निकालनी की आज्ञा देनी चाहिए| इसके साथ ही इस समिति को झील के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले असर का भी अध्ययन करना था| जिसमें इस झील के संरक्षण को भी ध्यान में रखना था| साथ ही प्रवासी पक्षियों के साथ-साथ इस क्षेत्र के जीवों पर इसका क्या असर होगा इस पर भी रिपोर्ट देनी थी| इसके साथ ही समिति को इस बात पर भी विचार करना था कि क्या किसी अनुमोदन के लिए मुख्य वन्यजीव वार्डन के साथ-साथ राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया था।
26 मई, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की दक्षिणी ब्रांच ने केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की याचिका मंजूर कर ली है| गौरतलब है कि केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एर्नाकुलम जिले में कोनोथुपुझा नदी पर प्रदूषण सम्बन्धी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एनजीटी से दो महीने का अतिरिक्त समय मांगा था|
यह आदेश कोर्ट द्वारा 24 जनवरी को दिए आदेश से ही जुड़ा हुआ है| जिसमें न्यायाधिकरण द्वारा नदी प्रदूषण के मुद्दे पर एक जांच समिति बनाने के लिए कहा गया था| आदेश के अनुसार इस समिति में (1) जिला कलेक्टर, एर्नाकुलम (2) राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (3) लोक निर्माण विभाग (4) सचिव, जिला पंचायत, एर्नाकुलम (5) साथ ही संबंधित नगर पालिकाओं के आयुक्त और ग्राम पंचायत के कार्यकारी अधिकारियों को शामिल करने को कहा गया था| इसमें उन सभी अधिकारियों को शामिल किया गया था जिनके अधिकार क्षेत्र से यह नदी गुजरती है और जहां प्रदूषण पाया गया है।
इसके साथ ही समिति को निश्चित अवधि के भीतर एक उचित कार्य योजना बनाने का आदेश दिया गया था| जिससे कोनोथुपुझा नदी प्रदूषण को रोका जा सके| इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो योजना को नदी के अन्य हिस्सों पर भी लागु किया जा सकता है| और इसके लिए एक समग्र कार्य योजना तैयार की जा सकती है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गठित संयुक्त जांच समिति ने 28 मई, 2020 को अदालत में गैस रिसाव के मामले पर अपनी रिपोर्ट दायर कर दी है| गौरतलब है कि एनजीटी ने 7 मई 2020 की सुबह एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के विशाखापट्टनम प्लांट से स्टाइरीन गैस रिसाव की जांच के लिए संयुक्त निगरानी समिति बनायीं थी| इस गैस रिसाव में 11 लोगों कि दुखद मौत हो गयी थी, जबकि हजारों लोग इससे प्रभावित हुए थे।
इस मामले की जांच के लिए समिति ने आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के साथ मिलकर गैस रिसाव के घटनास्थल का दौरा किया था और इंडस्ट्री के अधिकारियों के साथ बातचीत की थी। इसके बाद एनजीटी समिति ने 12 मई, 2020 को एनजीओ, प्रभावित ग्रामीणों और उद्योगपतियों के साथ एक सार्वजनिक परामर्श बैठक आयोजित की थी।
इस मामले में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी शेषनारायण रेड्डी ने समिति के अन्य सदस्यों और एपीपीसीबी के अधिकारियों के साथ घटनास्थल का दौरा किया था और 17 मई को एक अंतरिम रिपोर्ट तैयार करके एनजीटी को सौंप दी थी| उसके बाद इस विषय पर समिति ने एक डिटेल रिपोर्ट 28 मई को कोर्ट के सामने प्रस्तुत कर दी है|
24 मार्च, 2020 को इस यूनिट में कामकाज बंद कर दिया गया था| जिसके 7 मई, 2020 को फिर से शुरू करने की तयारी की जा रही थी। पर 7 मई, 2020 की सुबह लगभग 3.00 बजे, प्लांट के टैंक में स्टोर की गई करीब 1830 टन स्टाइरीन गैस का रिसाव शुरू हो गया था। यह गैस वाष्प के रूप में टैंक से निकलकर ऊपर पश्चिम की ओर जिस तरफ हवा बह रही थी उसी दिशा में फैक्ट्री की सीमा से निकलकर आसपास के पांच क्षेत्रों में फैल गई थी| इसने आसपास के इलाकों जैसे वेंकटपुरम, वेंकटाद्रि नगर, नंदामुरी नगर, पीडिमाम्बा कॉलोनी और बीसी एवं एससी कॉलोनी को अपनी चपेट में ले लिया था। समिति को आस-पास के क्षतिग्रस्त पेड़ों की जांच से पता चला है कि यह गैस जमीन से लगभग 20 फीट की ऊंचाई तक फैल गई थी|
रिपोर्ट में एलजी पॉलिमर इंडिया और उसके प्रमुख कोरियाई उद्योग एलजी केम के अनुभवहीनता को इस दुर्घटना की सबसे बड़ी वजह माना है| यह कंपनी काम के बंद होने के बावजूद, कई हफ्तों तक स्टाइरीन से भरे टैंक की निगरानी और रखरखाव कर रही थी| जिसे उसने ठीक से नहीं किया| साथ ही जिस टैंक में यह गैस भरी थी वो भी काफी पुराने डिज़ाइन का टैंक था| जिसके कारण इसने इतना गंभीर रूप ले लिया था|