मणिपुर बायोडायवर्सिटी बोर्ड ने एनजीटी के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य, जैव विविधता अधिनियम, 2002 के नियमों का पूरी तरह से पालन करने के लिए सभी आवश्यक प्रयास कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य भर में 2,282 जैव विविधता प्रबंधन समितियों के गठन को प्रस्तावित किया गया है। जिसमें से 84 फीसदी, मतलब 1908 समितियों को पहले ही गठित किया जा चुका है, जबकि केवल 374 समितियों को गठित करना बाकी है।
रिपोर्ट में जानकारी दी है कि बाकी समितियों के निर्माण में जो देरी हुई है उसके लिए मुश्किल और दुर्गम इलाके, ग्रमीणों का इंकार और कोरोनावायरस के कारण हुआ लॉकडाउन मुख्य रूप से जिम्मेवार है।
एनजीटी ने सलीम स्टोन क्रेशर द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका उसका लाइसेंस रद्द किए जाने के विरोध में दायर की गई थी। गौरतलब है कि 22 जुलाई को हरियाणा के क्षेत्रीय खान और भूविज्ञान विभाग के निदेशक ने हरियाणा के स्टोन क्रेशर अधिनियम, 1991 के प्रावधानों के तहत लाइसेंस रद्द कर दिया गया था। इसके साथ ही आवेदक ने अपने ऊपर लगाए गए 34,37,500 के जुर्माने के खिलाफ भी आवेदन किया था। यह जुर्माना अवैध खनन को लेकर पर्यावरण को हुए नुकसान के ऐवज में हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) ने 13 मार्च को लगाया था।
एनजीटी ने अपने फैसले में कहा कि क्षेत्रीय खान और भूविज्ञान विभाग द्वारा जो आदेश दिया है उसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके अलावा स्टोन क्रशर ने अवैध स्रोतों से खनिजों की खरीद की है, जोकि अवैध खनन को दर्शाता है। साथ ही जिसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई है।
सरकारी बंजर जमीन, जोकि एक संरक्षित वन है, उसपर अवैध और अनधिकृत गतिविधियों के बारे में एनजीटी के समक्ष एक हलफनामा दायर किया गया है। मामला हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले का है। जिसपर बढ़ते अतिक्रमण के चलते बारिश के पानी में रूकावट पैदा हो गई है। जिस कारण भूस्खलन का खतरा पैदा हो गया है। जिससे रोड, सामाजिक संपत्ति और लोगों की संपत्ति को खतरा पैदा हो गया है।
इसके साथ ही सुंदर सिंह द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि बार-बार शिकायत करने के बावजूद भी प्रशासन द्वारा इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। उनके अनुसार यह स्पष्ट रूप से सरकारी विभाग विशेष रूप से वन विभाग की लापरवाही को दर्शाता है।
एनजीटी ने 22 सितंबर को रामबन नगरपालिका समिति को जुर्माने की रकम को दो किश्तों में भरने का निर्देश दिया है। इस जुर्माने को छह महीने के भीतर जमा करना है। इसे जम्मू और कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा लगाया गया है। इसके साथ ही कोर्ट ने नगरपालिका को पर्यावरण सम्बन्धी मानदंडों पर सतर्कता बरतने की भी चेतावनी दी है।
इससे पहले जम्मू और कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने आदेश के माध्यम से 8 जुलाई को मुआवजे की राशि का आकलन किया था। जिसमें कचरे की गलत तरीके से डंपिंग को रोकने में असमर्थ रहने पर नगरपालिका समिति के खिलाफ जुर्माना लगाया था।
एनजीटी ने अपने फैसले में कहा कि यह निर्विवाद है कि पर्यावरण को जो नुकसान पहुंचा है उसके लिए स्थानीय निकाय जिम्मेवार है, क्योंकि उसने अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन सही से नहीं किया था। हालांकि, कोरोनोवायरस महामारी और नगरपालिका समिति द्वारा रखी गई वित्तीय बाधाओं की दलील के संबंध में कोर्ट ने मुआवजे की राशि को 50 फीसदी तक कम कर दिया है।
रेवाड़ी में तालाब पर अवैध अतिक्रमण और कचरे की डंपिंग का मामला 22 सितंबर को एनजीटी के सामने आया है। मामला हरियाणा के रेवाड़ी जिले के प्रताप पुर इलाके का है। हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा इस संबंध में एक रिपोर्ट भी दायर की गई है, जिसके अनुसार 20 नवंबर, 2019 को नगरपालिका परिषद के प्रतिनिधियों ने साइट का निरीक्षण किया था। जिसके आधार पर उसकी रोकथाम की कार्रवाई की गई थी और नगरपालिका परिषद को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
एनजीटी ने रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए निर्देश दिया है कि पर्यावरण सम्बन्धी कानूनों को ध्यान में रखकर आगे की कार्यवाही की जाए। साथ ही पर्यावरण से जुड़े नियमों की अनदेखी न हो इसलिए उसपर नजर रखी जाए।