वन्य जीव एवं जैव विविधता

पर्यावरण मुकदमों की डायरी: पक्षी विहार में हो रहा था अवैध निर्माण, एनजीटी ने दिए जांच के आदेश

पर्यावरण से संबंधित मामलों में सुनवाई के दौरान क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें-

Susan Chacko, Dayanidhi

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 18 सितंबर को निर्देश दिया कि सूर सरोवर पक्षी विहार, आगरा, उत्तर प्रदेश में अवैध निर्माणों के मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति का गठन किया जाए। इस समिति में मुख्य वन्यजीव प्रबंधक, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वन प्रभाग के सदस्य शामिल होंगे।

एनजीटी के समक्ष दायर एक याचिका में कहा गया है कि हिंदुस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट (एचआईटी) और आनंद इंजीनियरिंग कॉलेज (एईसी) सूर सरोवर पक्षी अभ्यारण्य, जिला आगरा के भीतर हैं।

न्यायालय ने उल्लेख किया कि यद्यपि अभयारण्य के मानचित्र में संरक्षित क्षेत्र 403.09 हेक्टेयर था, अभयारण्य का क्षेत्रफल 1020.25 हेक्टेयर था। 403.09 हेक्टेयर के बाहर निर्माण हैं लेकिन यह 1020.25 हेक्टेयर के भीतर है।

यदि वे वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा थे, तो वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 27 के तहत, ऐसे निर्माणों की अनुमति नहीं थी और वे तब तक अवैध थे जब तक कि वन्य जीवन अभयारण्य की सीमा अधिनियम की धारा 26 ए के तहत बदल न दी गई हो।

निर्माण 1991 की अधिसूचना के बाद होने की बात कही गई थी। इस प्रकार या तो यह स्पष्ट रूप से घोषित किया जाना चाहिए कि यह क्षेत्र वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है। ऐसे में उक्त क्षेत्र के सभी निर्माणों को हटा दिया जाना चाहिए या वन्यजीव अभयारण्य की सीमा को उचित रूप से सीमांकित और निर्धारित किया जाना चाहिए।

मचकी की ओआईएल परियोजना जांच के घेरे में

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 17 सितंबर को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह ऑइल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) द्वारा असम के तिनसुकिया जिले में मचकी, मचकी एक्सटेंशन, बागजान और तिनसुकिया एक्सटेंशन पीएमएलएस को कवर करते हुए प्रस्तावित ऑनशोर तेल और गैस विकास ड्रिलिंग और उत्पादन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करे।

प्रस्तावित परियोजना एक पारिस्थितिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील और नाजुक क्षेत्र में बताई गई है, जहां मचकी ब्लॉक डिब्रू-साइकोवा नेशनल पार्क, मगुरी-मोटापुंग आर्द्रभूमि परिसर के करीब स्थित है और यह देहिंग पटकई हाथियों के लिए आरक्षित (रिजर्व) क्षेत्र का हिस्सा है।

यह आरोप लगाया गया है कि पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 का उल्लंघन करके पर्यावरणीय मंजूरी दी गई है। क्योंकि परियोजना के अधिवक्ता ने संचयी प्रभाव मूल्यांकन की आवश्यकता के साथ-साथ पारिस्थितिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील और जैव विविधता वाले स्थान के बारे में फॉर्म -1 में जानकारी छिपाई थी। यह भी उस समृद्ध परिदृश्य में जिसमें एक राष्ट्रीय उद्यान, एक महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र और साथ ही एक हाथियों के लिए आरक्षित (रिजर्व) क्षेत्र भी शामिल है।

एमटीएचएल परियोजना 2011 सीआरजेड अधिसूचना का उल्लंघन नहीं करती है: लार्सन एंड टुब्रो

मुंबई ट्रांस-हार्बर लिंक (एमटीएचएल) वनस्पतियों और जीवों पर खराब प्रभाव नहीं डालेगा। लार्सन एंड टुब्रो (एल  एंड  टी) लिमिटेड परियोजना के अधिवक्ता ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए गए हैं। आसपास निर्माण के कार्य से वहां की वनस्पतियां और जीव प्रभावित नहीं हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (एमसीजेडएमए) द्वारा ज़रूरी तौर पर सभी आवश्यकताओं को पूरा किया गया था।

यह एल एंड टी द्वारा 19 सितंबर, 2020 के हलफनामे में कहा गया था कि कंपनी ने एमटीएचएल परियोजना की स्थिति और पर्यावरणीय प्रभाव शमन उपायों की स्थिति निर्धारित की है। एमटीईएल और 25 जनवरी 2016 को तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना 2011 के तहत केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दी गई स्वीकृति पर दिलीप बी. नेवतिया द्वारा अपील की गई थी।

रिपोर्ट में कहा गया है 2011 की सीआरजेड अधिसूचना और 2006 पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना दोनों का उद्देश्य विकास को रोकना नहीं है, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए विकास करना है। पर्यावरण को होने वाले किसी भी नुकसान को कम करना है।

2011 के सीआरजेड अधिसूचना के खंड 3 (iv) के अनुसार सीआरजेड क्षेत्रों में एक ट्रांस-हार्बर समुद्री लिंक का निर्माण अनुमन्य था। इसके अलावा, खंड 8 (i) प्रदान करता है कि सीआरजेड की विभिन्न श्रेणियों में विकास या निर्माण गतिविधियों को संबंधित तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (सीजेडएमए) द्वारा नियमित किया जाएगा।

प्रोजेक्ट के जनरल कंसल्टेंट ने 15 जनवरी को एल एंड टी को एक पत्र भेजा था जिसमें सीआरजेड मंजूरी में निर्धारित शर्तों के अनुपालन का ब्यौरा देते हुए एक जांच-सूची (चेकलिस्ट) दी गई थी। इनमें से एक शर्त 'प्रतिपूरक मैंग्रोव बहाली' की थी।

मुख्य वन संरक्षक (मैंग्रोव सेल) को 200 हेक्टेयर से अधिक में  मैंग्रोव वन लगाने का काम सौंपा गया था। इन उपायों के लिए मुख्य वन संरक्षक को परियोजना अधिवक्ता द्वारा लगभग 5.05 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि पालघर और मुंबई उपनगरीय क्षेत्रों में मैंग्रोव सेल ने 105 हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण किया।