नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने निर्देश दिया है कि कछुए के अंडे देने का मौसम शुरू होने से पहले, गोवा के समुद्र तटों में सभी अनधिकृत निर्माणों को हटा दिया जाए। अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि कछुओं के अंडे देने के मौसम के दौरान समुद्र तटों को व्यवधान मुक्त रखा जाय। कछुओं के अंडे देने का मौसम नवंबर-दिसंबर में शुरू होकर मार्च-अप्रैल तक जारी रहता है।
यह आदेश 11 फरवरी, 2020 को गोवा तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (जीसीजेडएमए) के आदेश के खिलाफ विक्टर फर्नांडीस द्वारा दायर एक याचिका के मद्देनजर आया था। जीसीजेडएमए का आदेश गोवा के आश्रम मंड्रेम के नो डेवलपमेंट जोन में मेसर्स राय रिज़ॉर्ट द्वारा निर्मित एक अवैध संरचना को तोड़ने से सबंधित है। इसके अलावा रिसॉर्ट पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
एनजीटी ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि गोवा के कुछ समुद्र तटों को कछुओं द्वारा अंडे देने के लिए पसंद किया जाता हैं खासकर ओलिव रिडले कछुए इसमें शामिल हैं। इसलिए संबंधित अधिकारियों द्वारा ऐसे समुद्र तटों को व्यवधान मुक्त और पहले की स्थिति में बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।
इस तरह के समुद्र तटों में किसी भी संरचना, चाहे अस्थायी हो या स्थायी, को खड़ा नहीं किया जाना चाहिए और इन समुद्र तटों में किसी भी तरह की कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था या खाद्य पदार्थ या कूड़ा-कर्कट को फेंकने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
कृत्रिम रोशनी कछुओं को परेशान करती हैं क्योंकि वे बेहद संवेदनशील होते हैं। वे प्राकृतिक रोशनी और चंद्रमा की रोशनी में रहने के आदि होते हैं। समुद्र तटों पर कूड़ा नहीं होना चाहिए जो अवांछित शिकारियों को आकर्षित कर सकता है। आदेश में कहा गया है कि हैचिंग प्रक्रिया के दौरान कोई व्यवधान नहीं होना चाहिए और एक दूरी बनाए रखी जानी चाहिए। आदेश में कहा गया कि यदि कछुओं को परेशान किया जाएगा तो वे इन तटों पर अंडे देना बंद कर सकते है, इससे बचने के लिए कहा गया।
एनजीटी ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे इस बात का जवाब दें, कि राज्य में सौ से अधिक अवैध निर्माण संयंत्र, पीने के पानी के जार और डिब्बे कैसे सक्षम अधिकारियों के बिना किसी अनुमति के चल रहे हैं। इन इकाइयों की जांच करने वाला कोई क्यों नहीं है। मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि जिन इकाइयों के पास केंद्रीय भूजल प्राधिकरण से कोई अधिकार नहीं है या सक्षम प्राधिकारी से एनओसी नहीं है उन्हें तुरंत सील किया जाए और कानूनी / दंडात्मक कार्रवाई शुरू की जाए। मुख्य सचिव को आगे इन इकाइयों के कामकाज की जांच, पहचान और नियम के लिए उपचारात्मक उपाय करने के लिए निर्देशित किया गया।
एनजीटी इन अवैध पेयजल इकाइयों के खिलाफ विजयसिंह डब्बल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
एनजीटी ने कई दिशा-निर्देश भी पारित किए, जो निम्नलिखित हैं:
गुंजावानी सिंचाई परियोजना से प्रभावित लोगों ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में एक याचिका दायर की, जिसकी सुनवाई 20 अक्टूबर, 2020 को हुई।
याचिका में कहा गया है कि पुनर्वास के लिए जारी किए गए निर्देशों का अनुपालन नहीं किया गया है। महाराष्ट्र राज्य, पुनर्वास की जिम्मेदारी के मामले में, पर्यावरण मंजूरी से पूर्व की शर्तों को पूरा करने में विफल रहा है। चार साल से अधिक समय के बाद भी शर्तें पूरी नहीं हुई हैं।
न्यायमूर्ति श्यो कुमार सिंह की पीठ ने एक टीम के गठन का निर्देश दिया, जिसमें (i) कलेक्टर पुणे (ii) महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शामिल है। टीम को छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सौंपनी है। 20 जनवरी, 2021 को मामले को फिर से सूचीबद्ध किया जाएगा।