वन्य जीव एवं जैव विविधता

पर्यावरण मुकदमों की डायरी: पेड़ों की अवैध कटाई पर एनजीटी ने कहा आदेश के बाद भी गंभीर लापरवाही जारी

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें-

Susan Chacko, Dayanidhi

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पेड़ों की अवैध कटाई से निपटने के लिए अरुणाचल प्रदेश द्वारा की गई कार्रवाई पर निराशा व्यक्त की और राज्य को स्थिति की तात्कालिकता को देखते हुए अंतरिम उपाय करने पर विचार करने का निर्देश दिया।

एनजीटी ने सुझाव दिया कि राज्य को वन क्षेत्रों में हॉट-स्पॉट पर गश्त के लिए अनुबंध के आधार पर सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों को नियुक्त करने पर भी विचार करना चाहिए। इसमें वन विभाग के सेवानिवृत्त कर्मियों के साथ-साथ राज्य पुलिस के कर्मियों को भी शामिल किया जाए। 

याचिकाकर्ता जोर्जो तना तारा ने भी अवैधताएं वाले हॉट-स्पॉट की पहचान करने का सुझाव दिया था। एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि राज्य को वन सर्वेक्षण के उपग्रहों की मदद से तैयार किए गए फ़ॉरेस्ट कवर मैप का उपयोग करना चाहिए। यह मैप देहरादून वन सर्वेक्षण के द्वारा बनाया गया है, जो अधिक प्रभावित जिलों/हॉट स्पॉट के 10 साल की समयावधि में वन आवरण में आए बदलाव‍ का निरीक्षण करने में मदद करेगा, साथ ही यह मैप इस मुद्दे से निपटने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने में मददगार साबित होगा।

जोर्जो ताना तारा ने एक आरक्षित वन क्षेत्र में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर एनजीटी में एक याचिका दायर की थी जो पापुम आरक्षित वन और अरुणाचल प्रदेश में पक्के टाइगर रिजर्व का हिस्सा है। याचिकाकर्ता के अनुसार, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, हालांकि सरकारी अधिकारियों को इसकी जानकारी होने के बावजूद भी इस पर अंकुश लगाने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। इतने बड़े पैमाने पर कटाई के कारण मानव-पशु संघर्ष पैदा होने की आशंका है, क्षेत्र में बाघों के अस्तित्व को खतरा है।

एनजीटी ने कहा कि 30 अगस्त, 2019 के एनजीटी आदेश के बाद शायद ही कोई प्रगति हुई है। उस आदेश में, ट्रिब्यूनल ने राज्य द्वारा वन क्षेत्र के प्रति प्रशासन की गंभीर लापरवाही बताई थी। तब राज्य की ओर से बताई गई प्रमुख कठिनाई जनशक्ति की कमी थी जिसे राज्य सरकार ने बढ़ाने का प्रस्ताव दिया था।

अदालत को सूचित किया गया था कि पहले कदम के रूप में, राज्य सरकार का इरादा वन कर्मियों के मौजूदा खाली पदों को भरने का है और उसके बाद फॉरेस्टर और फॉरेस्ट गार्ड सहित फ्रंट लाइन स्टाफ के 200 से अधिक पदों पर नियुक्तियां करना है।

बारिश के मौसम में खनन पर एनजीटी ने कार्रवाई कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का दिया निर्देश

उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले के तहसील मंझनपुर, ग्राम जमुनापुर में शीश नारायण करवरिया पर खनन के दौरान पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगा था।

याचिकाकर्ता मणिशंकर दुबे ने कहा कि खनन पट्टा 4 जनवरी, 2020 को दिया गया था। पर्यावरण की मंजूरी 23 मई, 2019 को दी गई थी। यह क्षेत्र पानी में डूबा हुआ था और इस दौरान पर्यावरण मंजूरी की शर्तों के अनुसार खनन नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि मामला पानी में डूबे क्षेत्र में खनन का है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कहा कि शिकायत को संबंधित वैधानिक अधिकारियों - उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी), कौशाम्बी के जिला मजिस्ट्रेट और जिला खनन अधिकारी द्वारा इसकी जांच की जानी चाहिए। समन्वय और अनुपालन के लिए यूपीपीसीबी नोडल एजेंसी होगी। इस मामले की जांच के बाद, आगे की सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए, अदालत ने इस पर तीन महीने के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

एनजीटी ने ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 10 नवंबर को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को मथुरा के एसआरपी बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड द्वारा लगाए गए मोटर पंपों के खिलाफ उचित उपचारात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। पंप ध्वनि प्रदूषण कर रहे हैं।

यूपीएसपीसीबी ने पहले भी ऐसे पंपों को हटाने के निर्देश दिए थे। यहां तक कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 30 सितंबर को अपने पत्र के माध्यम से मथुरा के जिला मजिस्ट्रेट को इस मामले की जांच करने के लिए कहा था। हालांकि इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। एनजीटी ने 15 सितंबर को यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा दिए गए पत्र का भी संज्ञान लिया, यह पत्र 14 सितंबर को किए गए निरीक्षण पर आधारित था।

राष्ट्रीय राजमार्गों पर ग्रीन बेल्ट को बहाल करें : एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने महाराष्ट्र राज्य और अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 53 पर मुम्बई से कोलकाता तक नागपुर जिले के तहसील मौदा, ग्राम चिरवाह में ग्रीन बेल्ट को बहाल करें। इसके अलावा दो महीने के भीतर कानून का उल्लंघन कर बनाए गए किसी भी निर्माण को हटा दें। इसका क्रियान्वयन नागपुर कलेक्टर, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की समिति द्वारा किया जाएगा।

वायु प्रदूषण और धूल के प्रभाव को कम करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल राजमार्गों को विकसित करने हेतु एनएचएआई के पास वृक्षारोपण और रखरखाव नीति है। पेड़ और झाड़ियां प्राकृतिक तौर पर वायु प्रदूषण को अवशोषित कर लेते हैं। इसके विपरीत याचिकाकर्ताओं को पता चला कि ग्रीन बेल्ट में पुनर्वास की अनुमति देने के लिए महाराष्ट्र सरकार का एक प्रस्ताव भी था। याचिका इस तरह के प्रस्ताव को अलग करने और ग्रीन बेल्ट में आवंटन को रद्द करने के लिए थी, जिसमें पहले से निर्मित निर्माण को ध्वस्त करना भी शामिल था।