पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी 28 मार्च, 2020 को जारी अधिसूचना के मामले में 6 अक्टूबर, 2020 को एनजीटी के समक्ष एक हलफनामा दायर किया है। गौरतलब है कि इस अधिसूचना में कुछ गतिविधियों के लिए पहले पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) प्राप्त करने की शर्त में छूट दी गई थी।
गौरतलब है कि इस अधिसूचना को नोबल एम पिकाडा द्वारा अदालत में चुनौती दी गई थी।
इस अधिसूचना से पहले भी पर्यावरण मंत्रालय ने समय-समय पर कुछ कार्यालय ज्ञापन और परिपत्र जारी करके कुछ गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय मंजूरी सम्बन्धी नियम में छूट दी थी। इस अधिसूचना में उन गतिविधियों को स्पष्ट कर दिया था जिसमें पहले पर्यावरणीय मंजूरी लेने की शर्त को छूट दे दी गई थी।
हलफनामे के अनुसार यह अधिसूचना सार्वजनिक हित में जारी की गई थी और इसका मकसद आम जनता की सहायता करना था । यह अधिसूचना कुम्हारों, किसानों, ग्राम पंचायतों, वंजारा, गुजरात के ओड्स और राज्य सरकार द्वारा घोषित नियमों के तहत सभी गैर-खनन गतिविधियों को सहायता प्रदान करने के लिए जारी की गई थी।
इस अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में पहले भी (सोसाइटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ एन्वायरमेंट एंड बायोडायवर्सिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया / रिट पेटिशन नंबर 631 ऑफ 2020) चुनौती दी गई थी। इस हलफनामे में जानकारी दी गई है कि इस मामले में 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर याचिका को खारिज कर दिया गया था।
सासन पावर लिमिटेड (एसपीएल) की राख डंपिंग साइट के पास बने एक चेक डैम की तटबंध के टूटने में भूमिका है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। यह जानकारी एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में सामने आई है। यह रिपोर्ट मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) की संयुक्त जांच समिति ने तैयार की है। पूरा मामला सिद्धिखुर्द गांव का है जोकि सिंगरौली की तहसील वैधन, पोस्ट तियारा में स्थित है।
द्वीप 4 पर तटबंध के टूटने का यह मामला 10 अप्रैल, 2020 को हुआ था। यह तब हुआ जब एक पोकलेन तटबंध के शीर्ष को ठीक करने के लिए काम कर रही थी। जोकि नीचे की ओर ढलान पर फिसल गया थी। उस समय इसकी खुदाई करने वाली बाल्टी ने ढलान पर खुद को पकड़ने की कोशिश करते हुए ढलान के एक हिस्से को हटा दिया था।
यह साबित करने के लिए कि उत्तर प्रदेश में अवैध खनन हो रहा था, आवेदक अजय पांडे ने अतिरिक्त सबूत के रूप में एक हलफनामा कोर्ट में दायर किया है। जिससे यह साबित हो सके कि पंचनाद क्षेत्र में यमुना और उसकी सहायक नदियों से रेत का अवैध खनन किया जा रहा था। अवैध खनन का यह मामला उत्तरप्रदेश के औरैया, जालौन और कानपुर देहात एवं मध्य प्रदेश के भिंड जिले का है।
इसमें जानकारी दी गई है कि मानसून से पहले रेत माफिया रेत के विशाल भंडार को स्टोर करते हैं और फिर जुलाई से अक्टूबर तक उसे देश के विभिन्न राज्यों में बेच देते हैं। उसके बाद जैसे ही यमुना और उसके सहायक नदियों का जल स्तर गिरता है, अवैध खनन का यह सिलसिला उसे रोकने वालों की छत्रछाया में फिर से शुरू हो जाता है। जिसमें उन्हें उन लोगों की मदद भी मिलती है जो इस अवैध खनन को रोकने के लिए जिम्मेदार हैं।
एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में आवेदक ने एक घटना का उल्लेख भी किया है, जहां कानपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर औरैया जिले में अनंतराम टोल प्लाजा के पास 13 जून को एक ट्रक को अवैध रेत ले जाते हुए जब्त किया गया था। लेकिन बाद में जब पुलिस उसे हिरासत में लेने के लिए गई तो वह टोल प्लाजा से ही गायब हो गया था।
न्यायमूर्ति एस वी एस राठौड़ की अध्यक्षता वाली जांच समिति ने अवैध खनन के मामले में अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंप दी है। अवैध खनन का यह मामला उत्तरप्रदेश के औरैया जिले, इटावा और जालौन जिले का है, जहां नदी तल से अवैध रूप से रेत खनन किया जा रहा था।
समिति के अनुसार औरैया, जालौन और इटावा के जिलाधिकारियों द्वारा प्रस्तुत निरीक्षण रिपोर्टों से पता चला है कि संबंधित जिलों में कोई भी अवैध खनन नहीं किया जा रहा था। साथ ही पता चला है कि मुरादनगर में रेत का भंडारण नहीं किया गया था। जबकि बिजालपुर में पट्टाधारक पांडे ब्रदर्स को भूखंड संख्या 3 का विधिवत रूप से आवंटन किया गया था। वहीं मानसून के कारण इस क्षेत्र में कोई खनन गतिविधि नहीं हो रही थी। वहीं पंचनद क्षेत्र में भी कोई अवैध खनन नहीं हो रहा था।
इन सभी तथ्यों को देखते हुए समिति का विचार है कि इस मामले में कोई और कार्रवाई करने की जरुरत नहीं है।