वन्य जीव एवं जैव विविधता

गुना में 100 हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण के आरोप की जांच के लिए समिति गठित

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गुना में 100 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि पर हुए अतिक्रमण के मामले को गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि यह मामला मध्य प्रदेश के गुना जिले की राघौगढ़ तहसील का है।

19 जनवरी 2024 को दिए अपने इस आदेश में एनजीटी ने समिति को क्षेत्र की पहचान कर उसका सीमांकन करने और वन भूमि से अतिक्रमण हटाकर क्षेत्र का कब्जा वन विभाग को सौंपने का काम सौंपा है। इसके साथ ही कोर्ट ने वन विभाग को इस क्षेत्र में तत्काल खंभे और कटीले तार लगाकर इस भूमि को सुरक्षित कर, उसपर गहन वृक्षारोपण का काम सौंपा है।

एनजीटी ने इससे पहले सात नवंबर, 2023 को इस मुद्दे को उठाया था और एक समिति को इस मामले में तथ्यात्मक और कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।

इस संयुक्त समिति  ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि वन क्षेत्र (पी678) में एक जनवरी 2021 से 30 नवंबर 2023 के बीच 64 से अधिक पेड़ काटे गए। वहां करीब 26.487 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण किया गया है और वर्तमान में उसका उपयोग खेती के लिए किया जा रहा है।

इस मामले में 7.457 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि पर अतिक्रमण के आरोपों की शिकायत दर्ज कराई गई थी, हालांकि इसके बावजूद अधिकारियों ने इसपर कोई कार्रवाई नहीं की है। इसके अतिरिक्त, 23 लोगों ने 19.030 हेक्टेयर भूमि पर एक और अतिक्रमण किया है।

एनजीटी की केंद्रीय पीठ का कहना है कि कि वन भूमि पर अतिक्रमण करने वालों को बार-बार नोटिस जारी किए गए हैं और इस बारे में राघौगढ़ जिला पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को भी जानकारी दी गई थी। इसके बावजूद अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण हटाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया है कि 57.402 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण हुआ है और एक अन्य मामले में 18 अक्टूबर 2023 को पत्र के माध्यम से गुना के वन अधिकारी ने 49.750 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर अतिक्रमण को हटाने के लिए गुना के कलेक्टर को सूचित किया था।

नियमों का उल्लंघन कर रहा संबलपुर का कामांदा स्टील प्लांट, आरोपों की जांच के दिए गए आदेश

क्या कामांदा स्टील प्लांट पर्यावरण संबंधी नियमों का उल्लंघन कर रहा है? नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी पीठ ने दावों की जांच के लिए दो सदस्यीय समिति को इसका काम सौंपा है। मामला ओडिशा के संबलपुर जिले का है।

एनजीटी के निर्देशानुसार समिति इस साइट की जांच करेगी और आरोपों के संबंध में हलफनामे पर चार सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी। इस मामले में अगली सुनवाई 11 मार्च 2024 को होगी।

नियमों के दायरे में किया जाना चाहिए झुंझुनू में बायो मेडिकल कचरे का निपटान: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने झुंझुनू नगर निगम को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि बायो मेडिकल कचरे का निपटान नियमों के अनुसार किया जाना चाहिए और इस मामले में पर्यावरण नियमों का कोई उल्लंघन नहीं होना चाहिए।

कोर्ट को दी जानकारी से पता चला है कि झुंझुनू में, कॉमन बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट (सीबीडब्ल्यूटी) सुविधा स्थापित करने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके लिए शामिल पक्षों के बीच समझौता हो चुका है। अदालत ने निर्देश दिया है कि इसके विकास में तेजी लाई जानी चाहिए।

राज्य में बायो मेडिकल कचरे से सम्बंधित नियमों का पालन हो रहा है इसकी निगरानी का भी आदेश एनजीटी ने राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दिया है। 19 जनवरी 2024 को दिए अपने इस आदेश में एनजीटी ने किसी भी उल्लंघन की स्थिति में, पर्यावरणीय मुआवजे के साथ-साथ नियमों के अनुसार आवश्यक कानूनी कार्रवाई शुरू करने की बात कही है।

गौरतलब है कि एक पत्र याचिका में, आवेदक, जन जागृति सेवा संस्थान राजस्थान ने चूरू, झुंझुनू, सीकर और नीमकाथाना में निजी अस्पतालों द्वारा जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का पालन न करने के बारे में चिंता व्यक्त की थी। याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया है इन अस्पतालों से निकले बायो मेडिकल कचरे को नगर निगम के कचरे में फेंक दिया जाता है, जिससे गंभीर बीमारियां फैलने का खतरा पैदा हो गया है।

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों/जिला अस्पतालों और सभी निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए एक बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन समिति बनाने की सिफारिश की है। इन समितियों का विवरण मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ साझा किया जाना है।